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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 44/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भृगु देवता - आञ्जनम् छन्दः - त्रिपदा निचृद्गायत्री सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
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    सिन्धो॒र्गर्भो॑ऽसि वि॒द्युतां॑ पुष्प॑म्। वा॑तः प्रा॒णः सूर्य॒श्चक्षु॑र्दि॒वस्पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सिन्धोः॑। गर्भः॑। अ॒सि॒। वि॒ऽद्युता॑म्। पुष्प॑म्। वातः॑। प्रा॒णः। सूर्यः॑। चक्षुः॑। दि॒वः। पयः॑ ॥४४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिन्धोर्गर्भोऽसि विद्युतां पुष्पम्। वातः प्राणः सूर्यश्चक्षुर्दिवस्पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिन्धोः। गर्भः। असि। विऽद्युताम्। पुष्पम्। वातः। प्राणः। सूर्यः। चक्षुः। दिवः। पयः ॥४४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] तू (सिन्धोः) समुद्र का (गर्भः) गर्भ [उदरसमान आधार] और (विद्युताम्) प्रकाशवालों का (पुष्पम्) विकाश [फैलाव रूप] (असि) है। (वातः) पवन (प्राणः) [तेरा] प्राण [श्वास], (सूर्यः) सूर्य (चक्षुः) [तेरा] नेत्र है, और (दिवः) आकाश (पयः) [तेरा] अन्न है ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य विराट्-रूप परमात्मा को सर्वनियन्ता जानकर सदा पुरुषार्थ करें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(सिन्धोः) समुद्रस्य (गर्भः) उदारसमान आधारः (असि) (विद्युताम्) विविधदीप्यमानानाम् (पुष्पम्) पुष्प विकसने-अच्। विकाशरूपः (वातः) वायुः (प्राणः) तव श्वासरूपः (सूर्यः) आदित्यः (चक्षुः) नेत्ररूपः (दिवः) दिवु-क। आकाशः (पयः) तवान्नम् ॥

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! आप (सिन्धोः) नदियों और समुद्रों के (गर्भः) जन्मदाता (असि) हैं, (विद्युताम्) विद्योतमान बिजुलियों और सूर्य-नक्षत्र-तारा-गणों को (पुष्पम्) विकसित करते हैं। (वातः) आपकी वायु (प्राणः) हमें प्राण प्रदान करती है, (सूर्यः) सूर्य (चक्षुः) चक्षु अर्थात् दृष्टिशक्ति प्रदान करता, तथा (दिवः) द्युलोक (पयः) जल प्रदान करता है। [पुष्पम्=पुष्प विकसने। दिवम्=Heaven (आप्टे)।]

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    विषय

    'सिन्धुगर्भ, विद्युत्-पुष्प'

    पदार्थ

    १. (सिन्धो: गर्भ: असि) = हे आञ्जन [वीर्यमणे]! तू सिन्धु-ज्ञानसमुद्र का अपने में धारण करनेवाला है। सुरक्षित वीर्य ही ज्ञानाग्नि का ईधन बनता है। (विद्युताम्) = विशिष्ट दीसियों का तू (पुष्पम्) = विकासक है। वीर्य के सुरक्षित होने पर तेजस्विता टपकती है, अंग-प्रत्यंग पुष्ट हो जाता है। २. यह सुरक्षित वीर्य (वात:) = [वा गतौ] हमें गतिशील बनाता है। (प्राण:) = यह हमारा प्राण है। (सूर्य:) = यह जीवन-गगन में ज्ञान-सूर्य का उदय करता है। (चक्षुः) = मार्गदर्शक बनता है अथवा चक्षु की शक्ति को बढ़ाता है। यह (दिवः पय:) = ज्ञान का आप्यायन करनेवाला है।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य ज्ञान का गर्भ है। तेजस्विता का पोषक है। यह रक्षक को गतिशील बनाता है, उसकी प्राणशक्ति को बढ़ाता है, उसमें ज्ञान-सूर्य को उदित करता है, चक्षुशक्ति को बढ़ाता है। ज्ञान का आप्यायन करनेवाला है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Bhaishajyam

    Meaning

    You are the progenitor of rivers and seas, you are the flower of thunder and lightning, life giver of the wind, light giver of the sun, and living bliss of the light of heaven.

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    Translation

    You are embryo of the ocean and flower of the lightnings. You are the wind, (our) breath, the sun, (our) vision, and the sap of heaven.

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    Translation

    Let this vital one protect my vital breath, Let this dispeller of trouble make me happy for safety of vital force and Let this ointment which is it self a catastrophe to disease release us from the snares of calamity (of disease).

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    Translation

    O Anjana, thou art the very essence of the waters of the rivers the flower of electric powers, the vital breath of the air, the eye (the means of seeing) of the sun, and the sweet juice of the bright heavens, i.e., vested with the good qualities of all these natural forces.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(सिन्धोः) समुद्रस्य (गर्भः) उदारसमान आधारः (असि) (विद्युताम्) विविधदीप्यमानानाम् (पुष्पम्) पुष्प विकसने-अच्। विकाशरूपः (वातः) वायुः (प्राणः) तव श्वासरूपः (सूर्यः) आदित्यः (चक्षुः) नेत्ररूपः (दिवः) दिवु-क। आकाशः (पयः) तवान्नम् ॥

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