अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
ऋषिः - अङ्गिराः
देवता - द्यौः
छन्दः - त्रिपदा महाबृहती
सूक्तम् - सन्नति सूक्त
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दि॒व्या॑दि॒त्याय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्। यथा॑ दि॒व्या॑दि॒त्याय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वि । आ॒दि॒त्याय॑ । सम् । अ॒न॒म॒न् । स: । आ॒र्ध्नो॒त् । यथा॑ । दि॒वि । आ॒दि॒त्याय॑ । स॒म्ऽअन॑मन् । ए॒व । मह्य॑म् । स॒म्ऽनम॑: । सम् । न॒म॒न्तु॒ ॥३९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
दिव्यादित्याय समनमन्त्स आर्ध्नोत्। यथा दिव्यादित्याय समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठदिवि । आदित्याय । सम् । अनमन् । स: । आर्ध्नोत् । यथा । दिवि । आदित्याय । सम्ऽअनमन् । एव । मह्यम् । सम्ऽनम: । सम् । नमन्तु ॥३९.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(दिवि) आकाश में वर्तमान (आदित्याय) सूर्य को वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं, (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (दिवि) आकाश में वर्तमान (आदित्याय) सूर्य को (सम्-अनमन्) वे यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मुझ को (सन्नमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत् (नमन्तु) नमें ॥५॥
भावार्थ
पहिले ऋषि महात्माओं के समान सूर्य के प्रकाश आदि से उपकार लेकर आनन्द प्राप्त करें ॥५॥
टिप्पणी
५−(दिवि) आकाशे वर्तमानाय (आदित्याय) अ० १।९।१। प्रकाशमानाय सूर्याय। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
विषय
द्युलोक में आदित्य
पदार्थ
१. (दिवि) = मस्तिष्करूप धुलोक में (आदित्याय) = ज्ञानसूर्य के लिए (समनमन्) = सब संनत होते हैं। (स:) = वह ज्ञानरूप सूर्य (आनोत्) = सफलता का कारण बनता है। २. (यथा) = जैसे (दिवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (समनमन्) = संनत होते हैं-आदर के भाववाले होते हैं, (एव) = इसप्रकार (महाम) = मेरे लिए (संनमः) = अभिलषित फलों की प्राप्तियाँ (संनमन्तु) = संनत हों।
भावार्थ
मस्तिष्करूप धुलोक में ज्ञानसूर्य ही प्रमुख देव है। इसके होने पर धुलोक के अन्य सब देव उपस्थित होंगे ही। ज्ञान सब अभिलषितों को प्राप्त कराता है।
भाषार्थ
(दिवि) द्युलोक में (आदित्याय) आदित्य के लिए (समनमन्) सब प्रह्लीभूत हुए, झुके, (सः) वह आदित्य (आर्ध्नोत्) ऋद्धि अर्थात् समृद्धि को प्राप्त हुआ। (यथा) जिस प्रकार (दिवि) द्युलोक में (आदित्याय) आदित्य के लिए (समनमन्) सब प्रह्वीभूत हुए (एव= एवम्) इसी प्रकार (मह्यम्) मेरे लिए (संनमः) अभिलषित पदार्थों के झुकाव (सं नमन्तु) संनत हों, झुकें, अर्थात् मुझे प्राप्त हों।
टिप्पणी
[मन्त्र में द्युलोक को राष्ट्र-भूमि माना है, आदित्य को राजा, और प्रह्वीभूत वस्तुओं को प्रजाएँ। यही भावना मन्त्र १, ३ में भी जाननी चाहिए। संनमः= सम्+ णम प्रह्वत्वे शब्दे च (भ्वादिः)। आदित्य के लिए प्रह्वीभूत हैं, आदित्य से उत्पन्न ग्रह, उपग्रह तथा धूमकेतु आदि। यह सब सौरपरिवार, आदित्य का है, अत: उसके प्रति प्रह्वीभूत है; उसी द्वारा चलाया चल रहा है।]
विषय
विभूतियों और समृद्धियों को प्राप्त करने की साधना।
भावार्थ
(दिवि) द्यौलोक, उपरिस्थ आकाश में (आदित्याय समनमन्) आदित्य अर्थात् सूर्य के समक्ष सब ग्रह, उपग्रह आदि प्रजाएं झुकती हैं क्योंकि उन में से (सः आर्ध्नोत्) वही सब से अधिक समृद्धिमान्, शक्तिशाली है। (यथा दिवि आदित्याय समनमन्) जिस प्रकार द्यौलोक में सब प्रजाएं सूर्य के आगे झुकती हैं (एवा संनमः मह्यं सं नमन्तु) इसी प्रकार सब सम्पत्तियां और सब प्रजाएं मेरे समक्ष भी झुकें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अंगिरा ऋषिः। संनतिर्देवता। १, ३, ५, ७ त्रिपदा महाबृहत्यः, २, ४, ६, ८ संस्तारपंक्तयः, ९, १० त्रिष्टुभौ। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Prosperity
Meaning
People honour and adore the sun in heaven. The light and warmth of the sun from heaven blesses them with prosperity. Just as people adore the sun in heaven, so may favours of the sun come to me and lead me to prosperity and humility.
Translation
In the space, all the beings bow in homage to the sun. Thus he thrives. As in the space, they bow in homage to the sun, so the attainments (of my heart's desires) bow down to me,
Translation
In the heavenly region is resplendent sun. People bow down to the powers of the sun and it is accomplished with all energies. As the People bow down to the powers of sun in the heavenly region so let all Prosperities bow down to me.
Translation
Sages have paid homage to the Sun in heaven, and the Sun has made them great. Just as they have bowed before the Sun in heaven, so let these persons who have come to honor me, bow before me.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(दिवि) आकाशे वर्तमानाय (आदित्याय) अ० १।९।१। प्रकाशमानाय सूर्याय। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
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