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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - दिशः छन्दः - त्रिपदा महाबृहती सूक्तम् - सन्नति सूक्त
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    दि॒क्षु च॒न्द्राय॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्। यथा॑ दि॒क्षु च॒न्द्राय॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒क्षु । च॒न्द्राय॑ । सम् । अ॒न॒म॒न् । स: । आ॒र्ध्नो॒त् । यथा॑ । दि॒क्षु । च॒न्द्राय॑ । स॒म्ऽअन॑मन् । ए॒व । मह्य॑म् । स॒म्ऽनम॑: । सम् । न॒म॒न्तु॒ ॥३९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिक्षु चन्द्राय समनमन्त्स आर्ध्नोत्। यथा दिक्षु चन्द्राय समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिक्षु । चन्द्राय । सम् । अनमन् । स: । आर्ध्नोत् । यथा । दिक्षु । चन्द्राय । सम्ऽअनमन् । एव । मह्यम् । सम्ऽनम: । सम् । नमन्तु ॥३९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 39; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (दिक्षु) सब दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्रमा को वे [ऋषि लोग] (सम्) यथाविधि (अनमन्) नमे हैं। (सः) उसने [उन्हें] (आर्ध्नोत्) बढ़ाया है। (यथा) जैसे (दिक्षु) सब दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्रमा को (सम्-अनमन्) वे यथावत् नमे हैं, (एव) वैसे ही (मह्यम्) मुझ को (सन्नमः) सब सम्पत्तियाँ (सम्) यथावत् (नमन्तु) नमें ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य चन्द्रमा के पुष्टिकारक गुणों से उपकार लेकर आनन्दित हों ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(दिक्षु) प्राच्यादिषु (चन्द्राय) आह्लादकाय चन्द्रमसे। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥

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    विषय

    दिशाओं में चन्द्रमा

    पदार्थ

    १. (दिक्षु) = पूर्व-पश्चिम आदि शरीर के दिग्भागों में (चन्द्राय) = आहाद-[विकास]-रूप चन्द्रमा के लिए (समनमन्) = सब प्राणी संनत होते हैं। शरीर के सब प्रदेश आह्लादित व विकसित हों तो सबको अच्छा लगता है। (स:) = वह आह्वाद व विकास (आघ्नोंत्) = सफलता प्राप्त कराता है। २. (यथा) = जैसे (दिक्ष) = शरीर के सब प्रदेशों में (चन्द्राय) = आहाद व विकास के लिए (समनमन) = संनत होते हैं, (एव) = इसी प्रकार (मह्यम्) = मेरे लिए (संनमः) = अभिलषित फलों की प्राप्तियाँ (संनमन्तु) = संनत हों। सब शरीरावयवों के विकास में ही अभिलषित प्राप्ति होती है।

    भावार्थ

    शरीर के सब देश-अङ्ग आह्लादमय हों। ऐसा होने पर ही सब अभिलषित सिद्ध होते हैं।

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    भाषार्थ

    (दिक्षु) दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्र के लिए (समनमन्) सब प्रह्वीभूत हुए, झुके; (सः) वह चन्द्र (आर्ध्नोत्) ऋद्धि अर्थात् समृद्धि को प्राप्त हुआ। (यथा) जिस प्रकार (दिक्षु) दिशाओं में (चन्द्राय) चन्द्र के लिए (समनमन्) सब प्रह्वीभूत हुए (एव= एवम्) इसी प्रकार (मह्यम्) मेरे लिए (संनमः) अभिलषित पदार्थों के प्रह्वीभवन अर्थात् झुकाव (सं नमन्तु) संनत हों, झुकें, अर्थात् मुझे प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    [दिशाओं को राष्ट्रभूमि और चन्द्र को राष्ट्राधिपति कहा है, राजा कहा है। जैसे राजा के लिए प्रजाएँ झुकती हैं, इसी प्रकार चन्द्र के लिए प्रह्वीभूत वस्तुओं को चन्द्र की प्रजाएँ कहा है। चन्द्र दिशाओं का अधिपति है। अमावास्या के पश्चात् चन्द्र का उदय प्रथम पश्चिम दिशा में होता है। इस दिशा की ओर मुख करने से दाहिनी ओर उत्तर, पीठ की ओर पूर्व, और बाई ओर दक्षिण दिशा होती है। इस प्रकार रात्रि-काल में दिशाओं के परिज्ञान में चन्द्र कारण होता है, अत: चन्द्र को दिशाओं का अधिपति कहा है। रात्रि के काल में चन्द्र का सहचारी होता है द्युलोक, अर्थात् द्युलोकस्थ नक्षत्र और तारामण्डल। ये सब प्रजाएँ हैं चन्द्र की, ये मानो चन्द्र के प्रति प्रह्वीभूत हो रही होती हैं। यथा "चन्द्रमा नक्षत्राणामधिपतिः" (अथर्व० ५।२४।१०)। नक्षत्रपद उपलक्षक है द्युलोक के अन्य तारामण्डलों का भी।]

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    विषय

    विभूतियों और समृद्धियों को प्राप्त करने की साधना।

    भावार्थ

    (दिक्षु चन्द्राय समनमन्) दिशाओं में आह्लादकारी चन्द्र के प्रति सब प्रजाएं कार्य सम्पत्ति के लिये नत होती है। (सः अर्ध्नोत्) वही सब दिशाओं में समृद्ध हैं। (यथा दिक्षु चन्द्राय समनमन्) जिस प्रकार सब दिशाओं में आह्लादकारी चन्द्र के आगे झुकते हैं, उसके आश्रय पर कार्य साधन करते हैं (एवा मह्यं संनमः संनमन्तु) उसी प्रकार समस्त प्रजाएं मेरे समक्ष झुकें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। संनतिर्देवता। १, ३, ५, ७ त्रिपदा महाबृहत्यः, २, ४, ६, ८ संस्तारपंक्तयः, ९, १० त्रिष्टुभौ। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Prosperity

    Meaning

    People love and adore the moon in quarters of space. The moon blesses them with the prosperity of peace and herbal soma. Just as people turn to the moon and adore her in space, so may favours of the moon come to me and lead me to abundance of peace and joy with humility.

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    Translation

    In the regions of heaven, all the beings bow in homage to the moon. Thus he thrives. As in the regions of heaven, they bow in homage to the moon, so may the attainments of my heart 's desire bow down to me.

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    Translation

    In the quarters of the space shines the moon and it is accomplished with all energies. As People bow down to the Powers of the moon in the quarters of the space so let all Prosperities bow down to me.

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    Translation

    Sages have paid homage to the Moon in the quarters, and the Moon has made them great. Just as they have bowed before the Moon in the quarters, so let these persons who have come to honor me, bow before me

    Footnote

    Me may refer to a king or a big personage.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(दिक्षु) प्राच्यादिषु (चन्द्राय) आह्लादकाय चन्द्रमसे। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥

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