अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 10
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - सोमः
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
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सोमो॑ युनक्तु बहु॒धा पयां॑स्य॒स्मिन्य॒ज्ञे सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । यु॒न॒क्तु॒ । ब॒हु॒ऽधा। पयां॑सि । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो युनक्तु बहुधा पयांस्यस्मिन्यज्ञे सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । युनक्तु । बहुऽधा। पयांसि । अस्मिन् । यज्ञे । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समाज की वृद्धि करने का उपदेश।
पदार्थ
(सुयुजः) बड़ा योग्य (सोमः) शान्तस्वभाव पुरुष (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (बहुधा) अनेक प्रकार (पयांसि) अन्नों को (अस्मिन्) इस (यज्ञे) परस्पर मेल में (युनक्तु) लगावे ॥१०॥
भावार्थ
मनुष्य विद्या आदि प्रचार में अन्नदान करके अपनी योग्यता बढ़ावे ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(सोमः) शान्तस्वभावः पुरुषः (पयांसि) अन्नानि−निघ० २।७। अन्यद् गतम् ॥
विषय
पयांसि
पदार्थ
१. (सुयुज:) = उत्तम कर्मों में व्याप्त करनेवाला (सोमः) = शान्त प्रभु (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन यज्ञ में बहुधा बहुत प्रकार से (पांसि) = [अन्नानि-नि० २.७] आप्यायन के साधनभूत अन्नों को (युनक्तु) = हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = उस प्रभु के प्रति मैं अपना अर्पण करता हूँ।
भावार्थ
उत्तम अन्नों का प्रयोग करते हुए हम इस जीवन-यज्ञ में अपना आप्यायन करें।
भाषार्थ
(सोमः) सोम-औषध (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (बहुधा) बहुत प्रकार के (पयांसि) पेय ओषधि-रसों को ( युनक्तु) सम्वद्ध करे, (सुयुज:) तथा उत्तम योजनाओं का सम्पादन करे और (स्वाहा ) स्वाहा के उच्चारणपूर्वक आहुतियाँ हों।
टिप्पणी
["सोमो वीरुधामधिपतिः" (अथर्व० ५।२४।७)। सोम औषध के अद्भुत गुणों का वर्णन मन्त्रों में हुआ है, अतः वीरुधों में इसे मुख्य औषध माना है और वीरुधों का अधिपति कहा है।]
विषय
योग साधना।
भावार्थ
हे (सु-युजः) सु-योगियो ! (अस्मिन् यज्ञे) इस ब्रह्ममय अध्यात्म यज्ञ में (सोमः) सब का प्रेरक प्रभु अथवा आनन्द-रस का उत्पादक सोम प्रभु (बहुधा) नाना प्रकार के (पयांसि) आनन्द जलों का (युनक्तु) हमारे अन्तःकरण में प्रकट करे। ‘ततो धर्ममेधः समाधिः’। यो० सू०॥ तब धर्ममेध समाधि का उदय होता है। ‘ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा’। यो० सू०॥ वहां सत्यपूर्ण प्रज्ञा का उदय होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna in the New Home
Meaning
May Soma, divine spirit of peace and bliss, the man of peace and joy, spontaneous cooperative friend, join us here in this yajna and lead us to many forms of new exhilarating and dynamic ways of wealth and peaceful joy. This is my earnest prayer and submission.
Translation
May the blissful Lord (soma) use appropriate waters (milks) in various ways in this sacrifice. Svaha.
Translation
Let the wise priest who possess very genial temperament use various waters in this yajna. Whatever is uttered herein is correct.
Translation
O excellent yogis, may the All-Goading God, endow our heart, withall sorts of joy, in this spiritual yoga yajna. This is the best oblation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(सोमः) शान्तस्वभावः पुरुषः (पयांसि) अन्नानि−निघ० २।७। अन्यद् गतम् ॥
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