अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 11
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
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इन्द्रो॑ युनक्तु बहु॒धा पयां॑स्य॒स्मिन्य॒ज्ञे सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । यु॒न॒क्तु॒ । ब॒हु॒ऽधा । वी॒र्या᳡णि । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे। सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.११॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो युनक्तु बहुधा पयांस्यस्मिन्यज्ञे सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । युनक्तु । बहुऽधा । वीर्याणि । अस्मिन् । यज्ञे। सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समाज की वृद्धि करने का उपदेश।
पदार्थ
(सुयुजः) सुयोग्य (इन्द्रः) प्रतापी पुरुष (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (बहुधा) अनेक प्रकार (वीर्याणि) अपने वीर कर्मों को (अस्मिन्) इस (यज्ञे) परस्पर मेल में (युनक्तु) लगावे ॥११॥
भावार्थ
विद्वान् उत्साही पुरुष समाज की उन्नति में सदा प्रयत्न करता रहे ॥११॥
टिप्पणी
११−(इन्द्रः) प्रतापी पुरुषः (वीर्याणि) वीर-यत्। वीरकर्माणि ॥ ०५।०२६।१२ ॥
विषय
वीर्याणि
पदार्थ
१. (सयुज:) = उत्तम कर्मों में प्रेरित करनेवाला (इन्द्रः) = शत्रुविद्रावक प्रभु (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (बहुधा) = बहुत प्रकार से (वीर्याणि) = वीर्यों को (युनक्तु) = हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = हम उस इन्द्र के प्रति अपना समर्पण करते हैं।
भावार्थ
हम जितेन्द्रिय बनते हुए वीर्य को अपने में सुरक्षित रक्खें।
सूचना
गतमन्त्र में 'सोमः, पयांसि' शब्दों का प्रयोग संकेत करता है कि हम सौम्य भोजन ही करें। इस मन्त्र का 'इन्द्र: 'जितेन्द्रियता का द्योतक है। एवं, वीर्य-रक्षा के लिए 'सौम्य जीवन व जितेन्द्रियता' प्रमुख साधन हैं।
भाषार्थ
(इन्द्रः) सम्राट् (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञकर्म में (बहुधा) बहुत प्रकार के (वीर्याणि) निज सामर्थ्यों या दानवीरता आदि के कर्मों को (युनक्तु) सम्बद्ध करे, (सुयुजः) और उत्तम योजनाओं को सम्बद्ध करे , ताकि (स्वाहा) स्वाहा शब्दोच्चारणपूर्वक आहुतियां होती रहें ।
टिप्पणी
[मन्त्र ३ में इन्द्र का वर्णन हो चुका है। वहाँ इन्द्र का अर्थ है परमैश्वर्यवान् परमेश्वर, अतः पुनः इन्द्र पद भिन्नार्थक होना चाहिए। वह है सम्राट्, यथा 'इन्द्रश्च सम्राट (यजु:० ८।३७)। वेदानुसार राजा और सम्राट का सम्बन्ध यज्ञकर्म में दर्शाया है। यथा "यज्ञसंयोगाद् राजा स्तुति लभेत" (निरुक्त ९।२।११; रथ: पद )। राजा द्वारा दान और सह-योग प्राप्त कर यज्ञों की समृद्धि हो जाती है । यज्ञों के प्रसार में सम्राट् और राजा द्वारा दिया दान और सहयोग तथा एतत्सम्बन्धी उत्तम योजनाएँ भी यज्ञाङ्ग हैं, उत्तम योजनाएँ हैं-राज्य द्वारा नियुक्त 'यज्ञाधिकारी' तथा यज्ञसम्बन्धी 'स्थिरनिधि' आदि । सम्राट् और साम्राज्य= संयुक्त राजाओं द्वारा निर्वाचित मुखिया है सम्राट्, यह राजाओं पर भी राज्य करता है "राजसु राजयाते" (अथर्व० ६।५८।१)। साम्राज्य है भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की 'संयुक्त राज्य संस्था'।]
विषय
योग साधना।
भावार्थ
हे (सु-युजः) उत्तम योगियो ! (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञमय आत्मा में (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सर्वशक्तिमान्, तेजोमय प्रभु (बहुधा) नाना प्रकार से (वीर्याणि) बलों, शक्तियों को (युनक्तु) प्राप्त करावे।
टिप्पणी
बलेषु हस्तिबलादीनि। यो० सू०॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna in the New Home
Meaning
May Indra, spirit of omnipotence, and man of power and initiative, real companion friend, come and join this yajna and bring us manifold powers and new possibilities. This is my prayer and submission in right earnest.
Translation
May the resplendent Lord (indra) use his appropriate vigours in various ways in this sacrifice. Svaha
Translation
Let the accomplished man possessing spiritual wealth use his powerful efforts to accomplish this yajna. Whatever is is uttered herein is correct.
Translation
O excellent yogis, may the Refulgent God, endow this sacrificing soul with innumerable powers. This is the best oblation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(इन्द्रः) प्रतापी पुरुषः (वीर्याणि) वीर-यत्। वीरकर्माणि ॥ ०५।०२६।१२ ॥
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