अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - सविता
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
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यु॒नक्तु॑ दे॒वः स॑वि॒ता प्र॑जा॒नन्न॒स्मिन्य॒ज्ञे म॑हि॒षः स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒नक्तु॑ । दे॒व: । स॒वि॒ता । प्र॒ऽजा॒नन् । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । म॒हि॒ष: । स्वाहा॑ ॥२६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
युनक्तु देवः सविता प्रजानन्नस्मिन्यज्ञे महिषः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठयुनक्तु । देव: । सविता । प्रऽजानन् । अस्मिन् । यज्ञे । महिष: । स्वाहा ॥२६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समाज की वृद्धि करने का उपदेश।
पदार्थ
(महिषः) महान्, (देवः) व्यवहारकुशल (प्रजानन्) बड़ा ज्ञानी (सविता) प्रेरक पुरुष (अस्मिन्) इस (यज्ञे) संगति में (स्वाहा) सुन्दर वाणी से [पूजनीय कर्मों और विद्या आदि प्रकाश क्रियाओं को म० १] (युनक्तु) उपयुक्त करे ॥२॥
भावार्थ
बली विद्वान् पुरुष सभा आदि करके उत्तम कर्मों का प्रचार करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(युनक्तु) उपयोगे करोतु−यजूंषि समिध इति अनुवर्त्तेते, म० १ (देवः) व्यवहारकुशलः (सविता) प्रेरकः प्रधानपुरुषः (प्रजानन्) प्रविद्वान् (महिषः) अ० २।३५।४। महान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
ध्यान+प्रभुपूजन
पदार्थ
१. वह (सविता देव:) = सबका प्रेरक, दिव्य गुणों का पुञ्ज प्रभु (प्रजानन्) = हमारी स्थिति को ठीक-ठीक जानता हुआ (युनक्तु) = हमें योगयुक्त करे-समाहित करे। २. (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (महिषः) = वह पूजनीय प्रभु ही (स्वाहा) = अर्पणीय है। हम प्रभु के प्रति अपना अर्पण करके जीवन-यज्ञ को सुन्दर बनाएँ।
भावार्थ
हमारा जीवन ध्यान तथा प्रभुपूजनवाला हो।
भाषार्थ
(प्रजानन्) प्रज्ञावाला, (महिषः) महान् ( सविता देव: ) सविता देव, (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (युनक्तु) तुम्हें नियुक्त करे, (स्वाहा) तथा स्वाहा वाणी का उच्चारण हो।
टिप्पणी
[सविता=प्रेरक-देव परमेश्वर यज्ञकर्म के लिए तुम्हें प्रेरित करे। षू प्रेरणे (तुदादिः)। सविता को 'प्रजानन्' कहा है, अतः यह देव प्रज्ञानी है, चेतन है, प्रातःकालीन सूर्य नहीं। मन्त्र में कथित यज्ञाङ्ग हैं, (१) सविता देव द्वारा प्रेरणा; (२) तथा 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण कर हविर्यज्ञों में दी जानेवाली आहुतियाँ।]
विषय
योग साधना।
भावार्थ
(सविता देवः) सब का प्रेरक आत्मा (महिषः) महान् (प्र-जानन्) समस्त पदार्थों को भली प्रकार जानता हुआ (अस्मिन् यज्ञे) इस श्रेष्ठतम ब्रह्म-यज्ञ में (युनक्तु) हमें समाहित करे, (स्वाहा) यही उत्तम आहुति है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna in the New Home
Meaning
May the generous Savita, all inspiring creative genius, mighty potent and all aware, use the verses of Yajurveda and fragrant havis here in this yajna in the home. This is my prayer and submission in truth of heart and soul.
Translation
May the divine inspirer lord (savitr) knowing everything, use important things (mahisah) in this sacrifice. Svaha.
Translation
Let the man of constructive genius and grandeur apply yajna samagri in this yajna. Whatever is uttered herein is correct.
Translation
May the strong, goading soul, full of knowledge, concentrate breaths onthe most Glorious God. This is the best oblation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(युनक्तु) उपयोगे करोतु−यजूंषि समिध इति अनुवर्त्तेते, म० १ (देवः) व्यवहारकुशलः (सविता) प्रेरकः प्रधानपुरुषः (प्रजानन्) प्रविद्वान् (महिषः) अ० २।३५।४। महान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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