अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 8
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - त्वष्टा
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
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त्वष्टा॑ युनक्तु बहु॒धा नु रू॒पा अ॒स्मिन्य॒ज्ञे यु॑नक्तु सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वष्टा॑ । यु॒न॒क्तु॒ । ब॒हु॒ऽधा । नु । रू॒पा: । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑॥२६.८॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वष्टा युनक्तु बहुधा नु रूपा अस्मिन्यज्ञे युनक्तु सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठत्वष्टा । युनक्तु । बहुऽधा । नु । रूपा: । अस्मिन् । यज्ञे । सुऽयुज: । स्वाहा॥२६.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समाज की वृद्धि करने का उपदेश।
पदार्थ
(सुयुजः) सुयोग्य (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी पुरुष (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (बहुधा) अनेक प्रकार (नु) शीघ्र (रूपाः) अनेक रूपवाली क्रियाओं को (अस्मिन्) इस (यज्ञे) परस्पर मेल में (युनक्तु) प्रयुक्त करे ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य अनेक प्रकार से क्रियाकुशल होकर परस्पर उन्नति करें ॥८॥
टिप्पणी
८−(त्वष्टा) अ० २।५।६। सूक्ष्मदर्शी पुरुषः (नु) क्षिप्रम् (रूपाः) अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति रूप−अच् भूम्नि। अनेकरूपवतीः क्रियाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
विचारपूर्वक कर्म
पदार्थ
१. (सयुज:) = हमें उत्तम कर्मों में लगानेवाला (त्वष्टा) = वह निर्माता व ज्ञानदीस प्रभु [त्विषेर्वा] (नु) = अब (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (बहुधा) = अनेक प्रकार से (रूपा:) = पदार्थों के निरूपणों को अथवा उत्तम रूपों को (युनत्तु) = युक्त करे। (स्वाहा) = उस त्वष्टा के प्रति हम अपना अर्पण करें।
भावार्थ
हम सब बातों का ठीक से निरूपण करके कर्तव्यकर्मों में प्रवृत्त हों।
भाषार्थ
(त्वष्टा) पदार्थों का निर्माण करनेवाला कारीगर परमेश्वर (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (बहुधा) बहुत प्रकार की (रूपा:= रूपाणि) रूप-आकृतियों को (युनक्तु) संयुक्त करे, सम्बद्ध करे।
टिप्पणी
[त्वष्टा१ =त्वक्षू तनूकरणे (भ्वादिः)। मन्त्र में 'त्वष्टा' पद द्वारा परमेश्वर को 'तक्षा' अर्थात् तरखान के सदृश कारीगर कहा है। तक्षा काष्ठ से नानाविध उपकरणों में नानाविध रूप-आकृतियों का निर्माण करता है। परमेश्वर भी प्रकृतिरूपी वन के, एकदेशीरूपी वृक्ष से ब्रह्माण्ड की नानाविध वस्तुओं की नानाविध रूप-आकृतियों का निर्माण करता है। यथा "किं स्विद् वनं क उ स वृक्ष आस यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षुः" (यजु:० १७।२०)। यज्ञ में यज्ञशाला के निर्माण और उसे सजाने के लिए नानाविध योजनाएँ करनी होती हैं, अतः ये रूप-आकृतियाँ तथा योजनाएँ यज्ञाङ्ग हैं। स्वाहा तो मुख्य यज्ञाङ्ग है, स्वाहा के उच्चारणपूर्वक आहुतियाँ देना ही तो यज्ञ है।] [१. त्वक्षतेर्वा स्यात् करोतिकर्मणः (नि० ८।२।१४)। ]
विषय
योग साधना।
भावार्थ
हे (सुयुजः) उत्तम योगियो ! (अस्मिन् यज्ञे) इस योगमय आत्मयज्ञ साक्षात्कार में (त्वष्टा) सबका उत्पादक प्रभु (बहुधा रूपा) नाना प्रकार के रूपों-इन्द्रियों को (युनक्तु) युक्त करे (स्वाहा) यही उत्तम आहुति है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna in the New Home
Meaning
May Tvashta, formative spirit of nature, and the man of subtle and refined thoughts and forms, companionable friend, come, join us in this yajna and bless us with many forms of yajna and yajnic achievements. This is my prayer and submission in truth.
Translation
May the supreme architect (tvastr) use appropriate forms also in various ways in this sacrifice. Svaha.
Translation
Let the celebrated man possessing highest penetration apply to perform various forms of yajna in this feat of yajna. Whatever is uttered here-in is correct.
Translation
O excellent yogis, may the All-creating God, yoke your various organs, in this spiritual yoga-yajna. This is the best oblation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(त्वष्टा) अ० २।५।६। सूक्ष्मदर्शी पुरुषः (नु) क्षिप्रम् (रूपाः) अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति रूप−अच् भूम्नि। अनेकरूपवतीः क्रियाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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