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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 10
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
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    अप॑थे॒ना ज॑भारैणां॒ तां प॒थेतः प्र हि॑ण्मसि। अधी॑रो मर्या॒धीरे॑भ्यः॒ सं ज॑भा॒राचि॑त्त्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑थेन । आ । ज॒भा॒र॒ । ए॒ना॒म् । ताम् । प॒था । इ॒त: । प्र । हि॒ण्म॒सि॒ । अधी॑र: । म॒र्या॒ऽधीरे॑भ्य: । सम् । ज॒भा॒र॒ ।अचि॑त्त्या ॥३१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपथेना जभारैणां तां पथेतः प्र हिण्मसि। अधीरो मर्याधीरेभ्यः सं जभाराचित्त्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपथेन । आ । जभार । एनाम् । ताम् । पथा । इत: । प्र । हिण्मसि । अधीर: । मर्याऽधीरेभ्य: । सम् । जभार ।अचित्त्या ॥३१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपथेन) कुमार्ग से (एनाम्) इस (हिंसा) को (आ जभार) वह लाया था, (ताम्) उसको (पथा) सुमार्ग से (इतः) इस स्थान से (प्र हिण्मसि) हम निकालते हैं। (अधीरः) वह अधीर [शत्रु] (मर्याधीरेभ्यः) मर्यादा धारण करनेवाले पुरुषों के लिये (अचित्त्या) अपने अज्ञान से [उस] हिंसा को (सम् जभार) लाया था ॥१०॥

    भावार्थ

    जो कुमार्गी पुरुष सत्पुरुषों के साथ दोष करते हैं, सत्पुरुष उनको कुमार्ग से छुड़ा कर सुमार्ग में ले आते हैं ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(अपथेन) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति अ+पथिन्−अप्रत्ययः। कुमार्गेण (आ) (जभार) जहार। आनिनाय (एनाम्) कृत्याम् (ताम्) (पथा) सुमार्गेण (इतः) अस्मात् स्थानात् (प्र हिण्मसि) हि गतिवृद्धयोः। हिनुमीना। पा० ८।४।१५। इति णत्वम्। प्रेषयामः। अपसारयामः (अधीरः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः−क्रन्। अधारकः। अपण्डितः (मर्याधीरेभ्यः) मर्यादाधारकेभ्यः (सम्) सम्यक् (जभार) निनाय (अचित्त्या) अज्ञानेन ॥

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    विषय

    अधीरः धीरेभ्यः

    पदार्थ

    १. (अपथेन) = बुरे मार्ग से (एनाम्) = इस हिंसक को एक (अधीर:) = नासमझ पुरुष (आजभार) = यहाँ राष्ट्र में ले-आया (ताम्) = उस हिंसा को (पथा) = मार्ग पर चलने के द्वारा (इत:) = यहाँ से-राष्ट्र से (प्र हिण्मसि) = दूर भगाते हैं। अनीति के कारण उपस्थित हिंसा को नीति के द्वारा दूर करते हैं। २. (अधीर:) = मूर्ख मनुष्य (अचित्त्या) = नासमझी से (मर्याधीरेभ्य:) = मर्यादा धारण करनेवाले पुरुषों के लिए (सं जभार) = उस हिंसा को ला-पटकता है।

    भावार्थ

    अधीर पुरुषों से नासमझी के कारण राष्ट्र में अनीति से हिंसा की स्थिति प्राप्त कराई जाती है, उसे नीति के द्वारा दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

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    भाषार्थ

    [हे राष्ट्रपति !] (अपथेन) बिना मार्ग द्वारा (एनाम् ) इस हिंस्र - क्रिया को (आ जभार) शत्रु लाया है, (ताम् ) उस हिंस्रक्रिया को (पथा) मार्ग द्वारा (इतः) यहाँ से ( प्रहिण्मसि) हम भेजते हैं, वापस करते हैं। (अधीरः) निर्बुद्धि पुरुष ने (अचिन्त्या) बिना विचारे ( मर्याधीरेभ्यः) आधियों अर्थात् मानसिक चिन्ताओं द्वारा कम्पित मनुष्यों अर्थात् निज प्रजावर्ग के लिए, मानो (सं जभार) हिंस्त्रक्रिया का संग्रह किया है।

    टिप्पणी

    [शत्रु विना निश्चित-मार्ग द्वारा हिंस्रक्रिया लाया है, इस भय से कि मार्ग द्वारा हिंस्र वस्तु को ले-जाने पर मार्गस्थ रक्षकों द्वारा मैं कहीं पकड़ा न जाऊँ, परन्तु हे राष्ट्रपति हम इस हिस्रक्रिया को निश्चित मार्ग द्वारा ही वापस करते हैं, हम शक्तिशाली हैं, हमें पकड़े जाने का भय नहीं। अधीरः=अ+धी बुद्धि+ रः (मत्वर्थे)। मर्याधीरेभ्यः= मर्य +आधि (मान-सिक चिन्ता)+ईर (कम्पने, अदादिः)। कम्पन इसलिए कि शत्रु की प्रजा यह जानती है कि युद्ध हो जाने पर हमारा विनाश अवश्यंभावी है। मर्याधीरेभ्यः=अथवा मर्याश्च ते अधीराश्च तेभ्यः च।]

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    विषय

    गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।

    भावार्थ

    जो दुष्ट पुरुष (एनां) इस कुकृत्य, करतूती को (अपथेन) बुरे मार्ग से (आ जभार) राष्ट्र में लाता है (तां) उस करतूत को हम (इतः पथा) इसी मार्ग से (प्र हिण्मसि) राष्ट्र से बाहर निकाल दें और प्रायः (अधीरः) मूर्ख, बेवकूफ लोग अपने (अचित्या) अज्ञान या मूर्खता से ऐसे बुरे काम (मर्या धीरेभ्यः) बुद्धिमान् लोगों के लिये (सं जभार) ला पटकते हैं। इसलिये राजा उन दुष्ट कार्यों को कभी न चलने दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Refutation of Evil

    Meaning

    The mischief maker brought about the mischief by a crooked path. That mischief we undo and throw out by the correct path. Thoughtless fools out of ignorance and wantonness bring about such trouble for people of patient mind and fortitude.

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    Translation

    He brought this fatal contrivance in a wrong way. We despatch it from here in a proper way. That unwise, man brought it unwisely for the wise one.

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    Translation

    I drive it back from here by the right path though the man who uses this harmful artificial device, brings it by improper path. The man who is not firm indiscriminately brings this to use against the men who observe established bounds of conduct.

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    Translation

    A wicked person has brought this mischief in the country through unfair means, we drive it back through fair means. A foolish person in follybrings it to those who observe established laws.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(अपथेन) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति अ+पथिन्−अप्रत्ययः। कुमार्गेण (आ) (जभार) जहार। आनिनाय (एनाम्) कृत्याम् (ताम्) (पथा) सुमार्गेण (इतः) अस्मात् स्थानात् (प्र हिण्मसि) हि गतिवृद्धयोः। हिनुमीना। पा० ८।४।१५। इति णत्वम्। प्रेषयामः। अपसारयामः (अधीरः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः−क्रन्। अधारकः। अपण्डितः (मर्याधीरेभ्यः) मर्यादाधारकेभ्यः (सम्) सम्यक् (जभार) निनाय (अचित्त्या) अज्ञानेन ॥

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