अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 11
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्याप्रतिहरणम्
छन्दः - बृहतीगर्भानुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
0
यश्च॒कार॒ न श॒शाक॒ कर्तुं॑ श॒श्रे पाद॑म॒ङ्गुरि॑म्। च॒कार॑ भ॒द्रम॒स्मभ्य॑मभ॒गो भग॑वद्भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठय: । च॒कार॑ । न । श॒शाक॑ । कर्तु॑म् । श॒श्रे । पाद॑म् । अ॒ङ्गुरि॑न् । च॒कार॑ । भ॒द्रम् । अ॒स्मभ्य॑म् । अ॒भ॒ग: । भग॑वत्ऽभ्य: ॥३१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
यश्चकार न शशाक कर्तुं शश्रे पादमङ्गुरिम्। चकार भद्रमस्मभ्यमभगो भगवद्भ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । चकार । न । शशाक । कर्तुम् । शश्रे । पादम् । अङ्गुरिन् । चकार । भद्रम् । अस्मभ्यम् । अभग: । भगवत्ऽभ्य: ॥३१.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जिस [दुष्ट] ने (कर्तुम्) हिंसा को (चकार) किया था, वह (न शशाक) समर्थ न था, उसने (पादम्) अपना पैर और (अङ्गुरिम्) अंगुरी (शश्रे) तोड़ डाली। उस (अभगः) अभागे पुरुष ने (अस्मभ्यम्) हम (भगवद्भ्यः) ऐश्वर्यवालों को (भद्रम्) आनन्द (चकार) किया ॥११॥
भावार्थ
दुर्बलात्मा पापी दण्ड पाकर अपने हाथ पैर में कष्ट पाकर धर्मात्माओं को नहीं सता सकता ॥११॥ यह मन्त्र कुछ भेद से अ० ४।१८।६। में आया है ॥
टिप्पणी
११−(यः) दुष्टः (चकार) कृतवान् (न) निषेधे (शशाक) शक्त आसीत् (कर्तुम्) अ० ४।१८।६। कृञ् हिंसायाम्−तुन्। हिंसाम् (शश्रे) शीर्णवान् (पादम्) चरणम् (अङ्गुरिम्) अङ्गुलिम् (चकार) (भद्रम्) कल्याणम् (अस्मभ्यम्) धर्मात्मभ्यः (अभगः) अनैश्वर्यः (भगवद्भ्यः) ऐश्वर्यवद्भ्यः ॥
विषय
हिंसा का सहन
पदार्थ
१. (य:) = जो (चकार) = हिंसा करता है वह (कर्तुं न शशाक) = हिंसा कर नहीं सका, अपने ही (पादम् अंगरिम) = पाँव व अंगुली को (शश्रे) = उसने शीर्ण कर लिया। २. वह (अभगः) = अभागा (भगवद्भ्यः अस्मभ्यम्) = सौभाग्यशाली हम लोगों के लिए तो (भद्रं चकार) = कल्याण करनेवाला ही हुआ। वस्तुत: उसने हमें हिंसा में न घबराने व प्रसन्न रह सकने के अभ्यास का अवसर ही दिया।
भावार्थ
न 'पापे प्रति पापः स्यात्' के अनुसार हम हिंसक की हिंसा करनेवाले न हों। हिंसकों को राजदण्ड ही हिंसा से रोकनेवाला हो।
भाषार्थ
[हे राष्ट्रपति !] (यः) जिस [शत्रु राजा ] ने (चकार) हिंस्रक्रिया की है, परन्तु (कर्तुम्) हिंस्रक्रिया को वस्तुत: करने में ( न शशाक) जो सशक्त नहीं हुआ, और जिसने [युद्ध में] (पादम् अंगुरिम्) निज पैरों और अङ्गुलियों आदि अवयवों को (शश्रे) हिंसित कर लिया है, वह ( अभगः) निज ऐश्वयों से रहित हो गया है, (अस्मभ्यम्) और हम ( भगवद्भ्यः) भगवाले विजेताओं के लिए (भद्रम् चकार) उसने भद्रकार्य किया है।
टिप्पणी
[युद्ध तो हुआ है जिसमें युद्ध प्रारम्भ करनेवाले शत्रु राजा के शरीरावयवों को क्षति पहुँची है, परन्तु उसे मारा नहीं गया। हार जाने पर वह निजराज्य और राज्य सम्पत्ति से रहित हो गया है, और उसका राज्य तथा राज्य सम्पत्ति विजेता के अधीन हो गई है, और विजेता भगवाला हो गया है। मानो कि 'अभग' राजा ने भगवालों के लिए भद्रकार्य किया है। भग=ऐश्वर्य, श्री, यश।]
विषय
गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।
भावार्थ
और (यः) जो (चकार) किसी बुरे काम को कर ठबैता तो है और तो भी (कर्तुं) उसको करने में (न शशाक) समर्थ न हो तो वह अपने (पादम्) पैर और (अंगुरिम्) हाथों को भी (शश्रे) तोड़ लेता है। वह (अभगः) भाग्यहीन मूर्ख ऐसा करके भी (अस्मभ्यम्) हम (भगवद्भ्यः) ऐश्वर्यवान् पुरुषों के लिये तो (भद्रं चकार) भलाई ही करता है। यह बुरे काम में हाथ डाल कर अपना सत्यानाश आप कर लेता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Refutation of Evil
Meaning
The fool that did the mischief, or wanted to do but was not able to accomplish it, after all broke his own leg and burnt his own fingers. Any way, the unfortunate wretch did good to us who, blest and fortunate, happy and prosperous, are now warned and stand on guard against mischief, sin and crime.
Translation
He, who did it, could not accomplish it, He has injured only a quarter of a finger. That fortunate one has done good for us, the fortunate ones.
Translation
He who makes effort to commit this violent act is unable to malarialize it. In this way he himself breaks his foot and his toes. The Unfortunate one in this way does good for us who have all fortunes.
Translation
He who tries to commit mischief but has no power to do it, hurts his own foot and hand before hurting others, The unlucky fellow does good indisguise to us, the virtuous. By his failure in achieving success in his evil act, he warns us to be on the alert, and thus does good in disguise unto us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(यः) दुष्टः (चकार) कृतवान् (न) निषेधे (शशाक) शक्त आसीत् (कर्तुम्) अ० ४।१८।६। कृञ् हिंसायाम्−तुन्। हिंसाम् (शश्रे) शीर्णवान् (पादम्) चरणम् (अङ्गुरिम्) अङ्गुलिम् (चकार) (भद्रम्) कल्याणम् (अस्मभ्यम्) धर्मात्मभ्यः (अभगः) अनैश्वर्यः (भगवद्भ्यः) ऐश्वर्यवद्भ्यः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal