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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
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    यां ते॑ च॒क्रुः सेना॑यां॒ यां च॒क्रुरि॑ष्वायु॒धे। दु॑न्दु॒भौ कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ते॒ । च॒क्रु: । सेना॑याम् । याम् । च॒क्रु॒: । इ॒षु॒आ॒यु॒धे । दु॒न्दु॒भौ । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां ते चक्रुः सेनायां यां चक्रुरिष्वायुधे। दुन्दुभौ कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ते । चक्रु: । सेनायाम् । याम् । चक्रु: । इषुआयुधे । दुन्दुभौ । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरी (सेनायाम्) सेना में (चक्रुः) उन [शत्रुओं] ने किया है, और (याम्) जिसको तेरे (इष्वायुधे) बाण आदि शस्त्रों में (चक्रुः) उन्होंने किया है। (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को तेरी (दुन्दुभौ) दुन्दुभि में... म० १ ॥७॥

    भावार्थ

    सेनापति अपनी सेना और अस्त्र-शस्त्र बाजे आदि की सावधानी से रक्षा करे ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(सेनायाम्) योद्धृसमूहे (इष्वायुधे) बाणादिशस्त्रे (दुन्दुभौ) बृहड्ढक्कायाम्। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    सभा, अधिदेवन, अक्ष, सेना, इष्यायुध, दुन्दुभि

    पदार्थ

    १.(याम्) = जिस हिंसा के कार्य को (ते) = वे शत्रु (सभायां चक्रुः) = सभा में करते हैं, संसद् के विषय में जिस घातपात की क्रिया को करते हैं [संसद् भवन को ही बारूद आदि से उड़ाने की सोचते हैं], (याम्) = जिस कृत्या को (अधिदेवने) = तेरी क्रीड़ा के स्थल उपवन आदि में (चक्रुः) = करते हैं, (या कृत्याम्) = जिस छेदन-भेदन के कार्य को (अक्षेषु) = व्यवहारों में करते हैं, (ताम्) = उस सब हिंसन-क्रिया को (पुनः) = फिर (प्रतिहरामि) = वापस उन्हीं को प्राप्त कराता हूँ। २. (याम्) = जिस हिंसन-क्रिया को (ते) = वे शत्रु (सेनायां चक्रुः) = सेना के विषय में करते हैं-सेना में असन्तोष आदि फैलाने का प्रयत्न करते है, (याम्) = जिस कृत्या को (इषु आयुधे) = बाण आदि अस्त्रों के विषय में (चक्रुः) = करते हैं, (याम्) = जिस कृत्या को (दुन्दुभौ) = युद्धवाद्यों के विषय में (चक्रुः) = करते हैं, (ताम्) = उस सब कृत्या को (पुन:) = फिर (प्रतिहरामि) = वापस उन शत्रुओं को ही प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ

    'सभा को, क्रीड़ास्थल को तथा सब व्यवहारों को शत्रुओं के हिंसा-प्रयोगों से बचाया जाए। इसीप्रकार सेना को, शस्त्रास्त्रों को, युद्धवाद्यों को शत्रुकृत कृत्याओं से सुरक्षित करना चाहिए।

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    भाषार्थ

    [हे राष्ट्रपति !] (ते) तेरी (सेनायाम् ) सेना में (याम् ) जिस हिंस्रक्रिया को (चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (याम् ) जिस हिंस्रक्रिया को ( चक्रु:) किया है (इष्वायुधे) इषुओं और आयुधों के आगार अर्थात् स्टोर में; (दुन्दुभौ) तथा सेना की दुन्दुभि में (याम् कृत्याम्) जिस हिंस्रक्रिया को (चक्रुः) किया है। (ताम् ) उस प्रकार की हिंस्रक्रिया को (पुनः) फिर (प्रति ) प्रतिक्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं सम्राट् ले-जाता हूँ [पहुँचाता या वापस करता हूँ।]

    टिप्पणी

    [दुन्दुभि भी सेनाङ्ग है (निरुक्त ९।२।११), दुन्दुभि के पीटने पर सैनिकों में युद्ध सम्बन्धी जोश पैदा होता है, और विजय घोपणा की जाती है। उसकी हिंस्रक्रिया है उसे तोड़-फोड़ देना।]

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    विषय

    गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।

    भावार्थ

    (ते) वे दुष्ट पुरुष (यां) जिस घातक व्यवहार को (सेनायां) सेना में और (यां इषु-आयुधे) धनुषों और बाणों में (चक्रुः) करते हैं, और (यां कृत्यां) जिस घातक व्यवहार को (दुन्दुभौ) नक्कारे में करते हैं, उसके बदले में उसी अनर्थकारी प्रयोग को मैं उनके प्रति भी करूं। सेना में परद्रोह, धनुष बाण में कूट और विषैले बाणों का प्रयोग, नक्कारों में विष आदि लगा कर सेना वालों को देने से उनकी मृत्यु हो जाती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Refutation of Evil

    Meaning

    Whatever damage they do in the defence forces or in arms and ammunition or in reconnaissance and signals, all that I counter and recharge on the doer.

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    Translation

    What fatal contrivance they have put for you in your army, what they have put in arrows (isu) and weapons (āyudha) and what they have put in your war drum (dundubhau), that I hereby take away and send it back again.

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    Translation

    I send back to them their harmful artificial device which they use in army, which they fix in the arms and ammunitions and which they fix on drum.

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    Translation

    The mischief that they have committed upon the army, shafts andweapons, and upon the drum, the same do I remove.

    Footnote

    In army they spread disloyalty in shafts they commit the mischief of using poisoned arrows. On drums they sprinkle poison and thus harm those who play on them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(सेनायाम्) योद्धृसमूहे (इष्वायुधे) बाणादिशस्त्रे (दुन्दुभौ) बृहड्ढक्कायाम्। अन्यद् गतम् ॥

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