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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
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    यां ते॑ च॒क्रुरेक॑शफे पशू॒नामु॑भ॒याद॑ति। ग॑र्द॒भे कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ते॒ । च॒क्रु:। एक॑ऽशफे । प॒शू॒नाम् । उ॒भ॒याद॑ति । ग॒र्द॒भे । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां ते चक्रुरेकशफे पशूनामुभयादति। गर्दभे कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ते । चक्रु:। एकऽशफे । पशूनाम् । उभयादति । गर्दभे । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरे (पशूनाम्) पशुओं के मध्य (एकशफे) एक खुरवाले और (उभयादति) दोनों ओर दाँतवाले [अश्व आदि] पर (चक्रुः) उन्होंने किया है। (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को (गर्दभे) गधे पर... म० १ ॥३॥

    भावार्थ

    घोड़े गधे आदि उपकारी पशुओं की राजा रक्षा करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(एकशफे) एकखुरयुक्ते अश्वादौ (पशूनाम्) चतुष्पदां मध्ये (उभयादति) छान्दसो दीर्घः। उभयदति। ऊर्ध्वाधोभागयोर्दन्तयुक्ते (गर्दभे) कॄगॄशलिकलिगर्दिभ्योऽभच्। उ० ३।१२२। इति गर्द शब्दे−अभच्। खरे। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    न मारने योग्य प्राणी

    पदार्थ

    १. (याम्) = जिस (कृत्याम्) = घातक प्रयोग को (ते) = वे ककवाको मोर आदि सुन्दर पक्षियों पर (अजे) = बकरे व बकरियों के समूह पर (वा कुरीरिणि) = वा अन्य सौंगवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं, (यां कृत्याम्) = जिस घातक प्रयोग को (ते) = वे (अव्याम्) = हमारी भेड़ों पर (चक्रुः) = करते हैं, (ताम्) = उस घातक प्रयोग को (पुनः प्रतिहरामि) = फिर उन्हें ही वापस प्राप्त कराता है, उस घातक प्रयोग से उन्हें ही दण्डित करता हूँ। २. (याम्) =  जिस हिंसा-कार्य को (ते) = वे (एकशफे) = एक खुरवाले पशु पर (वा पशूनाम् उभयादति) = अथवा दोनों जबड़ों में दाँतवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं। (यां कृत्याम्) = जिस हिंसा-कार्य को (गर्दभे) = गधे पर (चा:) = करते हैं, (ताम्) = उस हिंसा को मैं (पुनः प्रतिहरामि) = फिर वापस उन्हें ही प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ

    राष्ट्र में 'मोर, अज, कुरीरी [सींगवाले] पशु, भेड़, घोड़े, गाय व गर्दभ आदि का मारना दण्ड योग्य कार्य समझा जाए।  

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    भाषार्थ

    [हे राष्ट्रपति !] (पशूनाम् ) पशुओं में से (एकशफे) एक शफवाले अर्थात् अनफटे खुरोंवाले, तथा (उभयादति) दोनों ओर अर्थात् ऊपर और नीचे के जबाड़ों में दांतोंवाले (ते) तेरे पशु में (याम कृत्याम्) जिस हिंस्र-क्रिया को (चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (गर्दभे) गदहे में (याम्) जिस हिंस्र-क्रिया को (चक्रुः) किया है, (ताम् ) उस प्रकार की हिंस्रक्रिया को (पूनः) फिर (प्रति) प्रतिक्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं [सम्राट्] ले-जाता हूँ [पहुंचाता हूँ, या वापस करता हूँ। एकशफ पशु है अश्व आदि।]

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    विषय

    गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।

    भावार्थ

    (यां) जिस हिंसाकार्य को वे (एकशफे) एक खुर वाले पशु पर या (गर्दभे) गधे की जाति के पशु पर (यां) जिस हिंसा को (उभयादति) दोनों जबाड़ों में दांत वाले पशुओं पर (चक्रुः) करते हैं वही हत्या का दण्ड उन्हें मैं पुनः दूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Refutation of Evil

    Meaning

    Whatever they have done to one hoof animals such as the horse or to animals of double teeth or to the donkey, all that I counter and return to the doer.

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    Translation

    What fatal contrivance they have put for you in one-hoofed animal, in cattle that have two sets of teeth, and what they have put in a donkey, that I hereby take away and send it back again.

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    Translation

    I strike back on them their harmful artificial device which use in the beast which hat un-cloven hooves, which they use in the beasts which have teeth in both their jaws and which they use in the ass.

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    Translation

    The mischief the enemies have committed upon thy beast that hath uncloven hooves, the ass with teeth in both his jaws, the same doI remove.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(एकशफे) एकखुरयुक्ते अश्वादौ (पशूनाम्) चतुष्पदां मध्ये (उभयादति) छान्दसो दीर्घः। उभयदति। ऊर्ध्वाधोभागयोर्दन्तयुक्ते (गर्दभे) कॄगॄशलिकलिगर्दिभ्योऽभच्। उ० ३।१२२। इति गर्द शब्दे−अभच्। खरे। अन्यद् गतम् ॥

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