Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 28

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    अ॒ग्निः सूर्य॑श्च॒न्द्रमा॒ भूमि॒रापो॒ द्यौर॒न्तरि॑क्षं प्र॒दिशो॒ दिश॑श्च। आ॑र्त॒वा ऋ॒तुभिः॑ संविदा॒ना अ॒नेन॑ मा त्रि॒वृता॑ पारयन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: । सूर्य॑: । च॒न्द्रमा॑: । भूमि॑: । आप॑: । द्यौ: । अ॒न्तरि॑क्षम् । प्र॒ऽदिश॑: । दिश॑: । च॒ । आ॒र्त॒वा: । ऋ॒तुऽभि॑: । स॒म्ऽवि॒दा॒ना: । अ॒नेन॑ ।मा॒ । त्रि॒ऽवृता॑ । पा॒र॒य॒न्तु॒ ॥२८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निः सूर्यश्चन्द्रमा भूमिरापो द्यौरन्तरिक्षं प्रदिशो दिशश्च। आर्तवा ऋतुभिः संविदाना अनेन मा त्रिवृता पारयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: । सूर्य: । चन्द्रमा: । भूमि: । आप: । द्यौ: । अन्तरिक्षम् । प्रऽदिश: । दिश: । च । आर्तवा: । ऋतुऽभि: । सम्ऽविदाना: । अनेन ।मा । त्रिऽवृता । पारयन्तु ॥२८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. (अग्निः, सूर्यः, चन्द्रमा:) = अग्नि, सूर्य और चन्द्र, (भूमिः आप: द्यौः) = पृथिवी, जल और धुलोक (अन्तरिक्षम् प्रदिश: दिशः च आर्तवा: ऋतुभि: संविदाना:) = अन्तरिक्ष, दिशाएँ, उपदिशाएँ तथा ऋतुओं के साथ मेल खाते हुए सब कालविभाग (मा) = मुझे (अनेन त्रिवृता पारयन्तु) = इस त्रिवृत् के द्वारा पार करें। २. गतमन्त्र में 'हरित, रजत और अयस्' में विष्ठित जिस त्रिवत् का वर्णन हुआ है, उसके द्वारा मैं भवसागर से पार हो जाऊँ। अग्नि आदि सब देव, पृथिवी आदि सब लोक तथा सब कालविभाग इस कार्य में मेरे लिए अनुकूलतावाले हों।

    भावार्थ -

    सब देवों, सब लोकों व सब कालों की अनुकूलता से मैं नव प्राण-सम्पन्न नव इन्द्रियों के द्वारा इस भव-सागर को पार करनेवाला बनूं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top