ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 14
ऋषिः - भिषगाथर्वणः
देवता - औषधीस्तुतिः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒न्या वो॑ अ॒न्याम॑वत्व॒न्यान्यस्या॒ उपा॑वत । ताः सर्वा॑: संविदा॒ना इ॒दं मे॒ प्राव॑ता॒ वच॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्या । वः॒ । अ॒न्याम् । अ॒व॒तु॒ । अ॒न्या । अ॒न्यस्याः॑ । उप॑ । अ॒व॒त॒ । ताः । सर्वाः॑ । स॒म्ऽवि॒दा॒नाः । इ॒दम् । मे॒ । प्र । अ॒व॒त॒ । वचः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्या वो अन्यामवत्वन्यान्यस्या उपावत । ताः सर्वा: संविदाना इदं मे प्रावता वच: ॥
स्वर रहित पद पाठअन्या । वः । अन्याम् । अवतु । अन्या । अन्यस्याः । उप । अवत । ताः । सर्वाः । सम्ऽविदानाः । इदम् । मे । प्र । अवत । वचः ॥ १०.९७.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 14
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अन्यः) एक (अन्याम्) एक दूसरी ओषधि को (अवतु) सुरक्षित करे परस्परगुणयोग से (अन्या) एक ओषधि (अन्यस्याम्) दी हुई एक ओषधि के (उप-अवत) ऊपर रहे (ताः) वे (सर्वाः) सब ओषधियाँ (संविदानाः) सम्मिलित हुई (मे) मेरे (इदं वचः) इस वचन को (प्र अवत) परिपालित करें ॥१४ ॥
भावार्थ
वैद्य ऐसे युक्ति का विचारकर चिकित्सा करें कि एक दी हुई ओषधि दूसरी दी हुई ओषधि के प्रतिकूल न जावे, अपितु गुणवृद्धि करे तथा एक ओषधि से अधिक गुणकारी हो, सब ओषधियाँ मिलाकर दी जानेवाली रोगी अच्छा करने में वैद्य की प्रसिद्धि का निमित्त बनें ॥१४॥
विषय
ओषधियों का परस्पर मेल
पदार्थ
[१] हे ओषधियो ! (वः) = तुम्हारे में से (अन्या) = एक (अन्याम्) = दूसरी को (अवतु) = रक्षित करनेवाली हो। अर्थात् एक ओषधि से होनेवाले अनिष्ट प्रभाव को दूसरी ओषधि दूर करे। (अन्या) = एक (अन्यस्या उप) = दूसरी के समीप होती हुई (अवत) = रक्षा को करे । अर्थात् एक दूसरे से मिलकर वे अधिक गुणकारी हो जाएँ । सम्भवतः एक ओषधि का पान होता है, तो यह सहायक ओषधि अनुपान के रूप में होती है । [२] (ताः सर्वाः) = वे सब ओषधियाँ (संविदाना:) = परस्पर संज्ञान [= मेल] वाली होती हुई (मे) = मेरे (इदं वच:) = इस वचन को (प्रावता) = प्रकर्षेण रक्षित करनेवाली हों। 'ये ओषधियाँ गुणकारी हैं' इस वचन का ओषधियाँ रक्षण करें, अर्थात् सचमुच रोग को दूर करके वे उक्त वचन की तथ्यता को ही प्रमाणित करें। 'इन ओषधियों का वाञ्छनीय प्रभाव न हो' ऐसी बात न हो।
भावार्थ
भावार्थ - ओषधियाँ परस्पर मिलकर एक दूसरे के अवाञ्छनीय प्रभाव को दूर करती हुई, रोग का उन्मूलन करनेवाली हों ।
विषय
ओषधियों का परस्पर रक्षक-पोषक होना।
भावार्थ
(वः अन्या अन्याम् अवतु) तुम में से एक दूसरे की रक्षा करे। (अन्यस्याः उप अवत) एक दूसरे के समीप आओ, (ताः) वे सब आप (संविदानाः) परस्पर अच्छी प्रकार सलाह करती हुई प्रजाओं के तुल्य, एक दूसरे को प्राप्त करती हुई, (मे इदं वचः प्र अवत) मेरे इस वचन की रक्षा करो। ये ही उपदेश सेना और प्रजा के मनुष्यों की भी रक्षक है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अन्या-अन्याम्-अवतु) एका खल्वेकामोषधिं रक्षतु परस्परगुणयोगेन (अन्या-अन्यस्याः-उप-अवत) अन्या काचिदो-षधिरन्यस्या दीयमानाया ओषधेरुपरि तिष्ठेत् ‘लकारवचन-व्यत्ययश्छान्दसः’ (ताः सर्वाः संविदानाः) ताः सर्वा ओषधयः सम्मिलिताः (मे-इदं वचः प्र अवत) ममेदं रोगिणं प्रत्युक्तं यत्स्वस्थं करिष्यामि तत्परिपालयत ॥१४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let one medicine supplement and cover another, and let the other follow another with the same effect, and let them all thus accordant and cooperative justify and prove this word of mine in effect.
मराठी (1)
भावार्थ
वैद्याने विचारपूर्वक युक्तीने चिकित्सा करावी. एक औषधी दुसऱ्या औषधीच्या प्रतिकूल नसावी, तर गुणवृध्दी करणारी असावी व एका औषधीपेक्षा अधिक गुणकारी असावी. सर्व औषधी मिसळून दिल्यास रोग्याला बरे वाटते व वैद्याची प्रसिद्धी होते. ॥१४॥
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