ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 23
ऋषिः - भिषगाथर्वणः
देवता - औषधीस्तुतिः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
त्वमु॑त्त॒मास्यो॑षधे॒ तव॑ वृ॒क्षा उप॑स्तयः । उप॑स्तिरस्तु॒ सो॒३॒॑ऽस्माकं॒ यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । उ॒त्ऽत॒मा । अ॒सि॒ । ओ॒ष॒धे॒ । तव॑ । वृ॒क्षाः । उप॑स्तयः । उप॑स्तिः । अ॒स्तु॒ । सः । अ॒स्माक॑म् । यः । अ॒स्मान् । अ॒भि॒ऽदास॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा उपस्तयः । उपस्तिरस्तु सो३ऽस्माकं यो अस्माँ अभिदासति ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । उत्ऽतमा । असि । ओषधे । तव । वृक्षाः । उपस्तयः । उपस्तिः । अस्तु । सः । अस्माकम् । यः । अस्मान् । अभिऽदासति ॥ १०.९७.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 23
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 8
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 8
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ओषधे) हे ओषधे ! (त्वम्) तू (उत्तमा-असि) श्रेष्ठ है (वृक्षाः) वृक्ष (तव) तेरे (उपस्तयः) उपाश्रय-सहारारूप हैं (सः) वह विद्वान् भिषक् (अस्माकम्) हमारा (उपस्तिः) आश्रयदाता सङ्गी (अस्तु) हो, (यः) जो (अस्मान्) हमें (अभिदासति) सुख देता है ॥२३॥
भावार्थ
लतारूप ओषधियों के वृक्ष सहारे हैं, जिनके ऊपर लताएँ चढ़ती हैं और फैलती हैं, ऐसे ही रोगियों का सहारा वैद्य होता है, जिसके सहारे वे स्वस्थ होते हैं और पुष्ट होते हैं ॥२३॥
विषय
रोगों को पादाक्रान्त करना
पदार्थ
[१] हे (ओषधे) = सोमलते ! (त्वं उत्तमा असि) = तू ओषधियों में सर्वोत्तम है, (वृक्षाः) = अन्य सब वनस्पतियाँ (तव) = मेरी (उपस्तय:) = [ attendamts, followors] अनुगामिनी हैं, सायण के शब्दों में अधःशायी हैं । तू मुख्य है, अन्य सब तेरे से नीचे हैं । [२] तेरे समुचित प्रयोग का हमारे जीवनों पर यह परिणाम हो कि (यः) = जो (अस्मान्) = हमें (अभिदासति) = अपने अधीन करना चाहता है, (सः) = वह (अस्माकम्) = हमारे (उपस्तिः) = अध: शायी (अस्तु) हो । जो रोग हमारे पर प्रबल होना चाहता है, वह हमारे से पादाक्रान्त किया जा सके ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम सब ओषधियों में उत्तम है, सब ओषधियाँ उसके नीचे हैं। इसके प्रयोग से हम रोगों को नीचे कर सकें। यह सूक्त ओषधि वनस्पतियों को समुचित प्रयोग से पूर्ण स्वस्थ बनने का उपदेश कर रहा है। इन ओषधियों का उत्पादन पर्जन्य से वृष्टि होकर ही होता है 'पर्जन्यादन्न संभवः' । सो अगले सूक्त में वृष्टि की कामना की गई है। यह 'वृष्टिकाम' देवापि है, दिव्य गुणों के साथ मित्रता को करनेवाला है ‘देवाः आपयो यस्य'। यह वासनारूप शत्रुओं पर आक्रमण करने के लिए शिव संकल्पों के सैन्य को प्रेरित करता है सो 'आर्ष्टिषेण' कहलाता है [ऋष् गतौ]। इस 'आष्र्ष्टिषेण देवापि' को प्रभु निर्देश करते हैं कि-
विषय
उत्तम ओषधियों के ज्ञान और संग्रह में उद्योग करने का उपदेश।
भावार्थ
(ओषधे) ओषधे (त्वम् उत्तमा असि) तू उत्तम है। (वृक्षाः तव उपस्तयः) नाना वृक्ष तेरे समीप हैं। (यः अस्मान् अभि दासति) जो हमें नाश करे, जो हमारा शत्रु है (सः अस्माकं उपस्तिः अस्तु) वह हमारे पास, हमारे वश होकर रहे। इत्येकादशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ओषधे त्वम्-उत्तमा-असि) हे ओषधे ! त्वं श्रेष्ठाऽसि (वृक्षाः-तव-उपस्तयः) वृक्षाः बृहत्तरवस्तव खलूपाश्रयदातारः “उपपूर्वात् स्त्यै सङ्घाते” [भ्वादि०] “धातोरौणादिकः क्विप् सम्प्रसारणं च” (सः-अस्माकम्-उपस्तिः अस्तु) स विद्वान् भिषक् खल्वस्माकमुपाश्रयदाता सङ्गो भवतु (यः-अस्मान्-अभिदासति) योऽस्मान् स्वास्थ्यसुखमभिददाति “दासति दानकर्मा” [निघ० ३।२०] ॥२३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O herb, O medicine, you are the best, most efficacious. The trees such as peepal and banyan are your auxiliaries, they are solid concentrations, next to you, of medical properties diffused all over. May all that helps us with health and comfort be our ally. May all that harms us, such as disease, be under our control.
मराठी (1)
भावार्थ
वृक्ष वेलींचे आधार असतात. त्या वृक्षावर फैलावतात, तसेच रोगी जनांचे आधार वैद्य असतात. त्यामुळेच रोगी स्वस्थ पुष्ट होतात. ॥२३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal