ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 15
ऋषिः - भिषगाथर्वणः
देवता - औषधीस्तुतिः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
याः फ॒लिनी॒र्या अ॑फ॒ला अ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणी॑: । बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठयाः । फ॒लिनीः॑ । याः । अ॒फ॒लाः । अ॒पु॒ष्पाः । याः । च॒ । पु॒ष्पिणीः॑ । बृह॒स्पति॑ऽप्रसूताः । ताः । नः॒ । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी: । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठयाः । फलिनीः । याः । अफलाः । अपुष्पाः । याः । च । पुष्पिणीः । बृहस्पतिऽप्रसूताः । ताः । नः । मुञ्चन्तु । अंहसः ॥ १०.९७.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 15
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(याः) जो ओषधियाँ (फलिनीः) गुणकारी फलवाली हैं (याः) जो (अफलाः) फलरहित हैं (अपुष्पाः) जो फूलरहित हैं (याः) जो (पुष्पिणीः) फूलवाली हैं (ताः) वे (बृहस्पतिप्रसूताः) महाविद्वान् वैद्य द्वारा प्रेरित-प्रयुक्त हुई (नः) हमें (अंहसः) रोगदुःख से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥१५ ॥
भावार्थ
फलवाली या फलरहित फूलवाली या फूलरहित अथवा फल फूलरहित केवल पत्तेवाली या मात्र काण्डवाली भी ओषधियाँ हों, वे सब महाविद्वान् वैद्य द्वारा प्रयुक्त की गई रोग से छुड़ा सकती हैं ॥१५॥
विषय
बृहस्पति - प्रसूत ओषधियाँ
पदार्थ
[१] (याः) = जो ओषधियाँ (फलिनीः) = फलवाली हैं, (याः अफलाः) = जो नहीं फलवाली हैं, जिन पर फल नहीं लगते, (अपुष्पाः) = जो बिना फूलवाली हैं, (याः च) = और जो (पुष्पिणीः) = फूलवाली हैं। इस प्रकार सामान्यतः ये चार भागों में विभक्त हुई-हुई हैं । [२] (बृहस्पति - प्रसूताः) = प्रभु से उत्पन्न की गईं, तथा उत्कृष्ट ज्ञानी वैद्य से प्रेरित की गई (ताः) = वे ओषधियाँ (नः) = हमें (अंहसः) = कष्ट से (मुञ्चनु) = मुक्त करें । ज्ञानी वैद्य से प्रयुक्त की गई ये ओषधियाँ हमें नीरोग करनेवाली हों। 'नीम हकीम खतरे जान' इस लोकोक्ति से स्पष्ट है कि ज्ञानी वैद्य से ही इनके प्रयोग को जानना चाहिए । अन्यथा इनका अवाञ्छनीय प्रभाव हो जाने की आशंका रहेगी।
भावार्थ
भावार्थ - चतुर्विध ओषधियों का प्रयोग ज्ञानी वैद्य की प्रेरणा से ही करना चाहिए ।
विषय
फलसहित, फलरहित, सपुष्प और अपुष्प आदि अनेक ओषधियों का वैद्यादि द्वारा रोग नाशक प्रयोग होना।
भावार्थ
(याः फलिनीः) जो फल वाली हैं, (याः अफलाः) जो फल से रहित हैं, (याः अपुष्पाः च पुष्पिणीः) और, जो फूल से रहित और फूल वाली हैं (ताः) वे (बृहस्पति-प्रसूताः) भूमि और आकाश के पालक सूर्य से वा विद्यावान् विद्वान् द्वारा प्रदत्त या बनाई जाकर (नः अंहसः मुञ्चन्तु) हमें पापमय कष्टों या दुःखों से मुक्त करें। (२) जो सेनाएं फल वाली अर्थात् तलवार, बाण वा विस्फोट पदार्थों के अस्त्रों से युक्त या उन से रहित हैं, और पुष्प अर्थात् पोषक, सहायक सेना से युक्त वा रहित हैं वे देश को पाप या दुष्ट शत्रु से बचावें, बड़े राष्ट्र की पालक, उसका शासक हो। इति दशमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(याः) या ओषधयः (फलिनीः) प्रशस्तफलवत्यः (याः-अफलाः) याः फलरहिताः (याः-अपुष्पाः) याः पुष्परहिताः (याः-च पुष्पिणीः) या बहुपुष्पवत्यः (ताः) ताः खलु (बृहस्पतिप्रसूताः) महाविदुषा भिषजा प्रेरिताः प्रयुक्ताः (नः) अस्मान् (अहंसः-मुञ्चन्तु) रोगदुःखात् “अंहसः रोगदुःखात्” [यजु० १२।८९ दयानन्दः] मोचयन्तु ॥१५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let those herbs which bear fruit, and those which do not bear fruit, let those which bloom with flowers and those which do not blossom, and all of those blest by Brhaspati, ripened by the sun, and prepared and energised by the physician deliver us from suffering.
मराठी (1)
भावार्थ
फळयुक्त किंवा फळरहित फूलयुक्त किंवा फूलरहित फक्त पानयुक्त किंवा फांद्यायुक्त औषधी असतील व ती महान वैद्याद्वारे प्रयुक्त केलेली असतील तर रोग दूर होऊ शकतात. ॥१५॥
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