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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 18
    ऋषिः - भिषगाथर्वणः देवता - औषधीस्तुतिः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    या ओष॑धी॒: सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः । तासां॒ त्वम॑स्युत्त॒मारं॒ कामा॑य॒ शं हृ॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः । ओष॑धीः । सोम॑ऽराज्ञीः । ब॒ह्वीः । श॒तऽवि॑चक्षणाः । तासा॑म् । त्वम् । अ॒सि॒ । उ॒त्ऽत॒मा । अर॑म् । कामा॑य । शम् । हृ॒दे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ओषधी: सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः । तासां त्वमस्युत्तमारं कामाय शं हृदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याः । ओषधीः । सोमऽराज्ञीः । बह्वीः । शतऽविचक्षणाः । तासाम् । त्वम् । असि । उत्ऽतमा । अरम् । कामाय । शम् । हृदे ॥ १०.९७.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 18
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (याः) जो (ओषधीः) ओषधियाँ (सोमराज्ञीः) अमृतधर्म जिनमें राजमान है, ऐसी वे जीवन देनेवाली ओषधियाँ (बह्वीः) बहुतेरी (शतविचक्षणाः) बहुत प्रत्यक्ष-प्रभावशाली (तासाम्) उनमें से (त्वम्) तू (कामाय) तू इस प्रयोग में काम आनेवाली अभीष्ट सिद्धि के लिए (उत्तमा) उत्तम (हृदे) हृदय के लिए (शम्) कल्याणकारी (असि) है ॥१८॥

    भावार्थ

    रोग को निवृत्त करके तुरन्त जीवनीय शक्ति लानेवाली रसायन ओषधी है, जो प्रत्यक्ष प्रभाव तुरन्त दिखाती है, हृदय में शान्ति देती है, ऐसी ओषधी को नित्य सेवन करना चाहिये ॥१८॥

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    विषय

    हृदय की शान्ति

    पदार्थ

    [१] (या:) = जो (ओषधी:) = ओषधियाँ (सोमराज्ञी:) = 'सोम' नामक राजावाली हैं [सोम ओषधीना मधिराजः गो० उ० १।१७], (बह्वीः) = [बंह] शक्ति को देनेवाली हैं तथा (शतविचक्षणा:) = शतवर्षपर्यन्त हमारा ध्यान करनेवाली हैं, अथवा सैंकड़ों प्रकार से हमारा पालन करनेवाली हैं [चक्ष्] (तासाम्) = उन ओषधियों में (त्वम्) = तू हे सोम ! (उत्तमा असि) = सर्वश्रेष्ठ है। (कामाय अरम्) = इस प्रस्तुत रोग को दूर करने की हमारी कामना को पूर्ण करने के लिए समर्थ है और इस प्रकार रोग को दूर करके (हृदे शम्) = हृदय के लिए शान्ति को देनेवाली है । [२] ओषधियाँ उस-उस रोग को दूर करके शान्ति का विस्तार करनेवाली हैं। ओषधियों का राजा सोम है । सोमलता के अतिरिक्त 'सोम' का अर्थ चन्द्र भी लिया जा सकता है। चन्द्र को भी 'ओषधीश' कहते ही हैं, यह चन्द्र ही सब ओषधियों में रस का सञ्चार करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ओषधियाँ रोग को दूर करती हैं, हृदय के लिए शान्तिकर होती हैं ।

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    विषय

    उत्तम ओषधि का चुनाव।

    भावार्थ

    (याः ओषधीः सोम-राज्ञीः) जो ओषधियां सोम के समान गुणों में चमकने वाली, (बह्वीः शत-विचक्षणाः) बहुतसी सैकड़ों गुण दिखाने वाली हैं, (तासां) उनमें से (त्वम्) तू (उत्तमा असि) उत्तम है। और (कामाय अरं) मेरे इष्ट लाभ को प्राप्त कराने में पर्याप्त और (हृदेशम्) हृदव को शान्ति देने वाली हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (याः-ओषधीः-सोमराज्ञीः) या ओषधयः सोमोऽमृतो राजा राजमानो यासु ताः “अमृतो वै सोमः” [काठ० २१।४।३।४।१२] न मारकगुणोऽपितु जीवनप्रदो गुणो यासु राजते (बह्वीः शतविचक्षणाः) बह्व्यो बहुदृष्टप्रभावाः (तासां-त्वम्-कामाय-उत्तमा हृदे शम्-असि) तासामोषधीनां मध्ये सम्प्रति प्रयुज्यमाने-ओषधे खल्वभीष्टसिद्धये वर्त्तमानरोगनिवारणाय श्रेष्ठा तथा हृदयाय कल्याणकारी ह्यसि ॥१८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Of all those herbs which shine with the soma element from the moon, which are abundant and instantly effective, you that fulfil the desire and are blissful for the heart are the best. (That is soma.)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    रोगाची निवृत्ती करून तात्काळ जीवनीय शक्ती निर्माण करणारी रसायन औषधी आहे. जिचा प्रत्यक्ष प्रभाव ताबडतोब दिसून यतो, हृदय शांत होते, अशा औषधींचे नित्य सेवन केले पाहिजे. ॥१८॥

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