ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 37/ मन्त्र 4
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒रु॒ष्टु॒तस्य॒ धाम॑भिः श॒तेन॑ महयामसि। इन्द्र॑स्य चर्षणी॒धृतः॑॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रु॒ऽस्तु॒तस्य॑ । धाम॑ऽभिः । श॒तेन॑ । म॒ह॒या॒म॒सि॒ । इन्द्र॑स्य । च॒र्ष॒णि॒ऽधृतः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरुष्टुतस्य धामभिः शतेन महयामसि। इन्द्रस्य चर्षणीधृतः॥
स्वर रहित पद पाठपुरुऽस्तुतस्य। धामऽभिः। शतेन। महयामसि। इन्द्रस्य। चर्षणिऽधृतः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 37; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रजागुणानाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यथा वयं पुरुष्टुतस्य चर्षणीधृत इन्द्रस्य शतेन धामभिर्महयामसि। तथैतस्य सत्कारं यूयमपि कुरुत ॥४॥
पदार्थः
(पुरुष्टुतस्य) बहुभिः प्रशंसितस्य (धामभिः) जन्मस्थाननामभिः (शतेन) असङ्ख्येन (महयामसि) पूजयाम (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्तस्य राज्ञः (चर्षणीधृतः) यश्चर्षणीन् मनुष्यान्धरति तस्य ॥४॥
भावार्थः
मनुष्यै राजादिन्यायकारिणां सर्वथा सत्कारः कर्त्तव्यो राजादयोऽपि प्रजास्थान् सदा सत्कुर्युरेवंकृते सत्युभयेषां मङ्गलोन्नतिर्भवति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब प्रजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (पुरुष्टुतस्य) बहुतों से प्रशंसा पाये हुए और (चर्षणीधृतः) मनुष्यों को धारण करनेवाले (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त राजा का (शतेन) असङ्ख्य (धामभिः) जन्म स्थान और नामों से (महयामसि) पूजन करैं वैसे उस प्रशंसित का सत्कार आप लोग भी करो ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि राजा आदि न्यायकारी जनों का सब प्रकार सत्कार करैं और राजा आदि भी प्रजाजनों का सदा सत्कार करैं, ऐसा करने पर राजा और प्रजा इन दोनों के मङ्गल की उन्नति होती है ॥४॥
विषय
शत-धाम
पदार्थ
[१] हम (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के महयामसि स्तोत्र का उच्चारण करते हैं, जो कि (पुरुष्टुतस्य) = बहुतों से स्तुति किए जाते हैं, अथवा पालक व पूरक स्तुतिवाले हैं। प्रभु का स्तवन स्तोता के शरीर का पालन करता है, तो यह स्तवन उसके मन का पूरण करता है। (२) हम उस प्रभु का स्मरण करते हैं, जो कि (शतेन धामभि:) = सैंकड़ों तेजों से (चर्षणीधृतः) = श्रमशील मनुष्यों का धारण करनेवाले हैं। इन श्रमशील मनुष्यों को प्रभु शतवर्ष पर्यन्त तेजस्वी बनाए रखते हैं। इन शतवर्ष पर्यन्त चलनेवाले तेजों से ही वस्तुत: उन श्रमशील मनुष्यों का धारण होता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु स्तोता का पालन व पूरण करते हैं और उन्हें शतवर्ष पर्यन्त तेजस्वी बनाये रखते हैं।
विषय
सेनापति के कर्त्तव्य, शत्रु पराजय।
भावार्थ
(पुरुस्तुतस्य) बहुतों से प्रशंसित (चर्षणीधृतः) प्रजाओं और शत्रुओं का कर्षण, पीड़न करने वाली सेनाओं को धारण करने वाले (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता पुरुष को हम (शतेन धामभिः) सैकड़ों नामों, सैकड़ों पदों से (महयामः) विभूषित करें। (२) अध्यात्म में ‘चर्षणी’—इन्द्रियगण।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, ३, ७ निचृद्गायत्री। २, ४-६,८-१० गायत्री। ११ निचृदनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी राजा इत्यादी न्यायकारी लोकांचा सर्व प्रकारे सत्कार करावा. राजा इत्यादींनीही प्रजाजनांचा सत्कार करावा, असे करण्याने राजा व प्रजा या दोघांचेही कल्याण होते. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
We exhort and exalt Indra, universally admired ruler of the world and sustainer of his people, by hundredfold celebrations of his names, attributes and brilliant exploits of heroism.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes and duties of the subjects are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! we honor Indra (an opulent king) who is praised by many because he is the supporter of the people. Because of his attributes, he is addred by hundreds of names. So you should also do.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should honor the just kings and other persons. The king and other Officers of the State also should honor the people. In this way, both make progress in their welfare or are happy and satisfied.
Foot Notes
(धामभि:) जन्मस्थान नामभि: = Birth, place and name. Here the third meaning of the word has been taken. i.e. names denoting various attributes. (चर्षणीधृत:) यश्चर्षणीन् मनुष्यान्धरति तस्य । धामानि त्रयाणि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानि (NKT 9, 3, 28) = Of the king who protects the people.
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