ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
द्यु॒म्नेषु॑ पृत॒नाज्ये॑ पृत्सु॒तूर्षु॒ श्रवः॑सु च। इन्द्र॒ साक्ष्वा॒भिमा॑तिषु॥
स्वर सहित पद पाठद्यु॒म्नेषु॑ । पृ॒त॒नाज्ये॑ । पृ॒त्सु॒तूर्षु॑ । श्रवः॑ऽसु । च॒ । इन्द्र॑ । साक्ष्व॑ । अ॒भिऽमा॑तिषु ॥
स्वर रहित मन्त्र
द्युम्नेषु पृतनाज्ये पृत्सुतूर्षु श्रवःसु च। इन्द्र साक्ष्वाभिमातिषु॥
स्वर रहित पद पाठद्युम्नेषु। पृतनाज्ये। पृत्सुतूर्षु। श्रवःऽसु। च। इन्द्र। साक्ष्व। अभिऽमातिषु॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वं पृत्सुतूर्षु श्रवःसु द्युम्नेष्वभिमातिषु च सत्सु पृतनाज्ये साक्ष्व ॥७॥
पदार्थः
(द्युम्नेषु) यशस्विषु धनप्रापकेषु वा (पृतनाज्ये) पृतनायाः सेनायाः सङ्ग्रामे (पृत्सुतूर्षु) पृत्नासु सेनासु त्वरमाणेषु हिंसकेषु (श्रवःसु) श्रवणेष्वन्नादिषु वा (च) (इन्द्र) (साक्ष्व) सहस्व (अभिमातिषु) अभिमानयुक्तेषु योद्धृषु ॥७॥
भावार्थः
ये विद्यमानेषु धनादिषु वीरसेनासु व्याख्यातृषु युद्धाऽभिमानिषु स्वप्रियेषु हृष्टपुष्टेषु सत्सु च शत्रुभिः सह सङ्ग्रामं कुर्वन्ति त एवं ध्रुवं विजयं लभन्ते ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (इन्द्र) तेजस्वी पुरुष ! आप (पृत्सुतूर्षु) सेनाओं में शीघ्रता से नाश करनेवाले जनों वा (श्रवःसु) श्रवण वा अन्न आदि पदार्थों (द्युम्नेषु) वा यशस्वी वा धन की प्राप्ति करानेवाले विषयों में वा (पृतनाज्ये) सेना संबन्धी संग्राम में (साक्ष्व) सहन करो ॥७॥
भावार्थ
जो विद्यमान धन आदि पदार्थ वीर सेना व्याख्यान देनेवाले और युद्ध के अभिमानी अपने प्रिय आनन्दित और पुष्ट पुरुषों के होने पर शत्रुओं के साथ संग्राम करते हैं, वे ही पुरुष निश्चित विजय को प्राप्त होते हैं ॥७॥
विषय
अभिमान-मर्दन
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = शत्रुओं का पराभव करनेवाले प्रभो! आप (द्युम्नेषु) = प्राप्तव्य धनों में [सायण] (अभिमातिषु) = अभिमानवाले शत्रुओं का (साक्ष्व) = पराभव करिए, अर्थात् धन को प्राप्त करके जो गर्वीले हो गये हैं, उनके गर्व को आप विनष्ट करिए। [२] इसी प्रकार (पृतनाज्ये) = [पृतनानां अजनं यस्मिन्] संग्राम में, (पृत्सु) = सेनाओं में, (तूर्षु) = [तुर्वी हिंसायाम्] शत्रु-संहारक वीरों में जो अभिमानवाले हुए हैं, जिन्हें संग्रामों सेनाओं व वीरों का गर्व हुआ है, उन्हें भी आप पराभूत करिए। इनके भी गर्व को दूर करिए।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! इन सब विजयों को आप 'धन, संग्राम, सेना व वीर पुरुषों' विषयक गर्व को समाप्त करिए। आपकी ही विजय समझें ।
विषय
पञ्चजन का स्पष्टीकरण
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे शत्रुदलविदारक ! (द्युम्नेषु) ऐश्वर्यों में (पृतनाज्ये) सेनाओं के द्वारा परस्पर संग्राम में (पृत्सु तूर्षु) सेनाओं और सामान्य प्रजाओं को परस्पर हिंसन, पीड़न के अवसरों में और (श्रवःसु च) बलों, ज्ञानों और अन्नादि प्रसिद्धिकारक ऐश्वर्यों के निमित्त (अभिमातिषु) अभिमान करने और आक्रमण करने वाले शत्रुओं में तू (साक्ष्व) उन सबको परास्त कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, ३, ७ निचृद्गायत्री। २, ४-६,८-१० गायत्री। ११ निचृदनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा धन इत्यादी पदार्थ, वीरसेना, व्याख्याते, युद्धाभिमानी स्वतःला प्रिय वाटणारे सुदृढ पुरुष शत्रूंबरोबर संग्राम करतात तेव्हा तेच पुरुष निश्चित विजय प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
In the battles of forces in plans and programmes of development for prosperity and excellence, in the contests of forces positive and negative for good and evil, in the onslaughts of stormy troops of hostility, in the efforts for growth in food, energy and enlightenment, in the struggles for self-realisation against pride and arrogance, Indra, O spirit of the soul, voice of conscience, genius of the nation, and invincible strength of character, tolerate, endure, challenge, fight and throw out the enemies of life’s light and joy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of duties of the rulers is emphasized.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra (king or Commander-in-chief of the army)! when your soldiers attack the enemy armies, when there are noted conveyors of wealth (economists), when there are plenty food supplies and your name carries reputation everywhere and when you have self-respecting warriors with you, the victory is certainly yours.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who fight with their foes when economic and defense potential is powerful and you have powerful orators (communicators) and strong warriors possessing self- confidence, only then you surely achieve victory.
Foot Notes
(द्युम्नेषु) यशस्विषु धनप्रापकेषु वा । दयुम्नमिति धननाम (NG 2,10) दयुम्नं द्योततेयशो वा अन्नं वेति (NRT, 5,15) = Among the renowned, glorious or conveyers of wealth. (प्रित्सुतूषु) पृत्नासु सेनासु त्वरमाणेषु हिंसकेषु । पृत्सु इति संग्राम नाम (NG 2, 17 ) = Those who attack the warriors of the armies. (श्रवः सु ) श्रवणेष्वन्नादिषु वा । श्रवः श्रूयते इति सतः यशो वा अन्नं वा (NRT 10, 1, 5 ) = श्रवः श्रवतीयं यश (NRT 11, 1, 9) = Food materials and reputation. = Good reputation or food.
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