Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 24 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    स वृ॑त्र॒हत्ये॒ हव्यः॒ स ईड्यः॒ स सुष्टु॑त॒ इन्द्रः॑ स॒त्यरा॑धाः। स याम॒न्ना म॒घवा॒ मर्त्या॑य ब्रह्मण्य॒ते सुष्व॑ये॒ वरि॑वो धात् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ । हव्यः॑ । सः । ईड्यः॑ । सः । सुऽस्तु॑तः । इन्द्रः॑ । स॒त्यऽरा॑धाः । सः । याम॑न् । आ । म॒घऽवा॑ । मर्त्या॑य । ब्र॒ह्म॒ण्य॒ते । सुष्व॑ये । वरि॑वः । धा॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वृत्रहत्ये हव्यः स ईड्यः स सुष्टुत इन्द्रः सत्यराधाः। स यामन्ना मघवा मर्त्याय ब्रह्मण्यते सुष्वये वरिवो धात् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। वृत्रऽहत्ये। हव्यः। सः। ईड्यः। सः। सुऽस्तुतः। इन्द्रः। सत्यऽराधाः। सः। यामन्। आ। मघऽवा। मर्त्याय। ब्रह्मण्यते। सुस्वये। वरिवः। धात् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोक्तविषये धनुर्वेदाध्ययनफलमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यो मघवा सुष्वये ब्रह्मण्यते मर्त्याय वरिव आ धात् स इन्द्रो यामन् स सत्यराधाः स वृत्रहत्ये सुष्टुतः स ईड्यः स हव्यश्च भवेत् ॥२॥

    पदार्थः

    (सः) (वृत्रहत्ये) महासङ्ग्रामे (हव्यः) आह्वातुं योग्यः (सः) (ईड्यः) प्रशंसितुमर्हः (सः) (सुष्टुतः) सर्वत्र प्राप्तसुकीर्त्तिः (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (सत्यराधाः) न्यायोपार्जितसत्यधनः (सः) (यामन्) यामनि मार्गे (आ) (मघवा) पूजितराज्यः (मर्त्याय) मनुष्याय (ब्रह्मण्यते) आत्मनो धर्मेण धनमिच्छते (सुष्वये) ऐश्वर्य्यप्राप्त्यनुष्ठात्रे (वरिवः) सेवनम् (धात्) दध्यात् ॥२॥

    भावार्थः

    यो मनुष्यो बाल्याऽवस्थामारभ्य सुचेष्टो विद्वत्सेवी सुशिक्षो न्यायमार्गाऽनुवर्ती धनुर्वेदविदज्ञो युद्धे निर्भयः स्यात्तमेव राजानङ्कुरुत ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब पूर्वोक्त विषय के अन्तर्गत धनुर्वेदाध्ययन के फल को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (मघवा) सत्कृत राज्ययुक्त (सुष्वये) ऐश्वर्य्य की प्राप्ति का अनुष्ठान करनेवाले (ब्रह्मण्यते) अपने धर्म से धन की इच्छा करनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (वरिवः) सेवन को (आ, धात्) धारण करे (सः) वह (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला (यामन्) मार्ग में (सः) वह (सत्यराधाः) न्याय से इकट्ठे किये हुए सत्यधन से युक्त (सः) वह (वृत्रहत्ये) बड़े सङ्ग्राम में (सुष्टुतः) सर्वत्र प्राप्त उत्तम कीर्त्तियुक्त (सः) वह (ईड्यः) प्रशंसा करने योग्य और वह (हव्यः) पुकारने योग्य होवे ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य बाल्यावस्था से लेकर उत्तम चेष्टायुक्त, विद्वानों की सेवा करनेवाला, उत्तम प्रकार शिक्षायुक्त, न्यायमार्ग का अनुगामी, धनुर्वेद का जाननेवाला, चतुर और युद्ध में भयरहित होवे, उसी को राजा करो ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्रह्मण्यते-सुष्वये

    पदार्थ

    [१] (सः) = वे प्रभु (वृत्रहत्ये) = वासनारूप वृत्र के विनाश के निमित्त (हव्यः) = पुकारने योग्य हैं। (सः) = वे प्रभु ही (ईड्यः) स्तुति के योग्य हैं। (सुष्टुतः) = उत्तम स्तुति किये गये (सः) = वे (इन्द्रः) = प्रभु (सत्यराधाः) = सत्य धनवाले हैं - वास्तविक ऐश्वर्यवाले हैं। (२) (सः) = वे (मघवा) = परमैश्वर्यवाले प्रभु (यामन्) = जीवनयात्रा में उस (मर्त्याय) = मनुष्य के लिए (वरिवः) = धन को आधात् धारण करते हैं, जो कि (ब्रह्मण्यते) = ज्ञानवाणियों की कामनावाला होता है और (सुष्वये) = सोम का सम्पादन करता है- सोम को अपने अन्दर उत्पन्न करता है। इस सोमरक्षण द्वारा ही वस्तुतः वह अपनी ज्ञानाग्नि को दीप्त कर पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का स्मरण करते हैं- प्रभु हमारी वासना का विनाश करते हैं। प्रभु ही जीवनयात्रा की पूर्ति के लिए सत्यधन को प्राप्त कराते हैं। हम ज्ञानप्राप्ति की कामनावाले बनें और सोम का सम्पादन करें- प्रभु हमारे लिए धन प्राप्त कराएँगे ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्तुत्य प्रभु ।

    भावार्थ

    (सः) वह (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता पुरुष ही, (वृत्रहत्ये) बढ़ते शत्रुओं के नाश करने के कार्य, संग्राम में (हव्यः) पुकारने योग्य है । (सः) वह (ईड्यः) स्तुति करने योग्य है । (सः सुस्तुतः) वह उत्तम रूप से प्रशसित (सत्यराधाः) सत्य न्याय रूप धन का धनी हो। (सः यामन) वह उत्तम मार्ग में चलने वाला (ब्रह्मण्यते) धर्म पूर्वक धन के चाहने वाले, (सुष्वये) ऐश्वर्य पाने के उद्योग करने वाले (मर्त्याय) मनुष्य को (वरिवः) नाना ऐश्वर्य (आधात्) प्रदान करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप । २, ८ भुरिक् पंक्तिः । ६ स्वराट् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः । १० निचृदनुष्टुप् ॥ इत्येकादशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो माणूस बाल्यावस्थेपासून उत्तम प्रयत्नशील विद्वानांची सेवा करणारा, उत्तम शिक्षणयुक्त, न्याय मार्गाचा अनुगामी, धनुर्वेद जाणणारा, चतुर व युद्धात निर्भय असेल त्यालाच राजा करा. ॥ २ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    He is to be invoked in the battles against darkness, evil and crime, lord adorable as he is, profusely adored, Indra, lord of honour and excellence, achiever of truth and giver of noble riches. He, lord of wealth, might and majesty, bears and bestows choice gifts of honour and freedom upon the mortals who dedicate themselves to the lord of existence and pray for success and divine grace in the ways of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The outcome results of the study of the science of archery (weaponry) is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! Indra (endowed with prosperity) has earned wealth with justice, has his kingdom honored by all, serves the person acquiring wealth of all kinds and prosperity with Dharma. He is praised well on the path of righteousness and in great battles. Let him ever remain admiration and invocation.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Make him your ruler who is of good conduct since his childhood, and who serves the enlightened person. He should be highly learned, the follower of the path of justice and knows the science of archery (weaponry or military science) and fearless in battles.

    Foot Notes

    (वृत्त्रहत्ये ) महासङ्ग्रामे । वृत्र तूर्य इति संग्रामनाम (NG 2, 17)। = In great battles. (ब्रह्मण्यते) आत्मनो धर्मेण धनमिच्छते । ब्रह्मेति धननाम (NG 2, 10) अत्र विद्यादि धनमपि ग्राह्य भावार्थदृष्ट्या । = Desiring to acquire wealth with Dharma. (सुष्वये ) ऐश्वर्य्यप्राप्त्यनुष्ठात्रे । =For the achiever of prosperity.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top