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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    य॒दा स॑म॒र्यं व्यचे॒दृघा॑वा दी॒र्घं यदा॒जिम॒भ्यख्य॑द॒र्यः। अचि॑क्रद॒द्वृष॑णं॒ पत्न्यच्छा॑ दुरो॒ण आ निशि॑तं सोम॒सुद्भिः॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । स॒ऽम॒र्यम् । वि । अचे॑त् । ऋघा॑वा । दी॒र्घम् । यत् । आ॒जिम् । अ॒भि । अख्य॑त् । अ॒र्यः । अचि॑क्रदत् । वृष॑णम् । पत्नी॑ । अच्छ॑ । दु॒रो॒णे । आ । निऽशि॑तम् । सो॒म॒सुत्ऽभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा समर्यं व्यचेदृघावा दीर्घं यदाजिमभ्यख्यदर्यः। अचिक्रदद्वृषणं पत्न्यच्छा दुरोण आ निशितं सोमसुद्भिः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा। सऽमर्यम्। वि। अचेत्। ऋघावा। दीर्घम्। यत्। आजिम्। अभि। अख्यत्। अर्यः। अचिक्रदत्। वृषणम्। पत्नी। अच्छ। दुरोणे। आ। निऽशितम्। सोमसुत्ऽभिः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शत्रुविजयेन राज्यादिरक्षणविषयमाह ॥

    अन्वयः

    यदाऽर्य्यः समर्य्यं व्यचेद्यदृघावा दीर्घमाजिमभ्यख्यद् वृषणमचिक्रदत्तदा दुरोणे पत्नीव सोमसुद्भिः सहानिशितमच्छाचिक्रदत् ॥८॥

    पदार्थः

    (यदा) यस्मिन् काले (समर्य्यम्) सङ्ग्रामम् (वि) (अचेत्) चेतयति (ऋघावा) शत्रूणां हन्ता (दीर्घम्) लम्बीभूतम् (यत्) यः (आजिम्) अजन्ति प्रक्षिपन्ति शस्त्राण्यस्मिंस्तम् (अभि) (अख्यत्) प्रख्यापयेत् (अर्य्यः) स्वामीश्वरो राजा (अचिक्रदत्) भृशमाक्रन्दति (वृषणम्) बलिष्ठम् (पत्नी) (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (दुरोणे) गृहे (आ) (निशितम्) नितरां तीक्ष्णम् (सोमसुद्भिः) ये सोममैश्वर्य्यमोषधिगणं वा सुन्वन्ति तैः ॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पतिव्रता स्त्री सर्वाण्यैश्वर्य्याणि संरक्ष्योन्नीय पत्यादीनानन्दयति तथैव विद्याविनयो राजा स्वप्रजाः संरक्ष्यैश्वर्य्यं वर्द्धयित्वा सर्वान्त्सज्जनान् रक्षयति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब शत्रुओं के विजय से राज्यादि पदार्थों के रक्षण विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यदा) जिस काल में (अर्य्यः) स्वामी ईश्वर अर्थात् राजा (समर्य्यम्) सङ्ग्राम को (वि, अचेत्) चेतन कराता है (यत्) जो (ऋघावा) शत्रुओं का नाश करनेवाला (दीर्घम्) लम्बे बहुत (आजिम्) फेंकते हैं शस्त्र जिसमें उस सङ्ग्राम की (अभि, अख्यत्) प्रसिद्धि करावे और (वृषणम्) बलिष्ठ के प्रति (अचिक्रदत्) अत्यन्त चिल्लाता है, तब (दुरोणे) गृह में (पत्नी) स्त्री के सदृश (सोमसुद्भिः) ऐश्वर्य्य वा ओषधियों के समूह को उत्पन्न करनेवालों के साथ (आ, निशितम्) अच्छे प्रकार निरन्तर तीक्ष्ण (अच्छा) अच्छा अत्यन्त शब्द करता है ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पतिव्रता स्त्री सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों की उत्तम प्रकार रक्षा और उन्नति करके पति आदि को आनन्द देती है, वैसे ही विद्या और विनययुक्त राजा अपने प्रजाजनों की अच्छे प्रकार रक्षा और ऐश्वर्य्य की वृद्धि करके सब सज्जनों की रक्षा करता है ॥८॥

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    विषय

    दीर्घ संग्राम

    पदार्थ

    [१] (यदा) = जब (ऋघावा) = शत्रुओं का हिंसक पुरुष (समर्यम्) = [सह मर्तव्यं शत्रुम्] जिसके साथ हमारी मृत्यु का हो जाना सम्भव है, उस 'काम-क्रोध' रूप शत्रु को (व्यचेत्) = [व्यज्ञासीत्] जान लेता है। (यद्) = जब (अर्यः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (दीर्घं आजिम्) = इस लम्बे संग्राम को (अभि आख्यत्) = देख लेता है जब वह यह देख लेता है कि यह जीवन तो एक दीर्घ संग्राम है। तब वह उस (वृषणम्) = शक्तिशाली प्रभु को (अचिक्रदत्) = पुकारता है। प्रभु की सहायता के बिना इस लम्बे जीवनसंग्राम में जीतना सम्भव नहीं है । [२] यह 'अर्य' उसी प्रकार प्रभु को पुकारता हैं जैसे (दुरोणे) = गृह में (पत्नी) = पत्नी (वृषणं) = अच्छा शक्तिशाली पति को लक्ष्य करके पुकारती है। 'अर्य' उस प्रभु को पुकारता है, जो कि (सोमसुद्भिः) = अपने अन्दर सोम का सवन करनेवालों यह से (आनिशितम्) = तीक्ष्ण किया जाता है, अर्थात् अपने अन्दर सोमरक्षण करने द्वारा हम प्रभु का प्रकाश देख पाते हैं। इन प्रभु को हम शत्रुओं के साथ संग्राम में पुकारते हैं। इन्हीं की सहायता से हम संग्राम में विजयी होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम संग्राम में प्रभु को पुकारते हैं। प्रभु की सहायता से ही हम संग्राम में विजयी होते हैं ।

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    विषय

    प्रजा का सम्पन्न, बली राजा के प्रति प्रेम ।

    भावार्थ

    (यदा) जब (ऋघावा) शत्रुओं को नाश करने में समर्थ राजा (समर्यम्) मरने मारने वाले वीर पुरुषों के एकत्र होने योग्य संग्राम को (वि अचेत्) विशेष रूप से जान ले (अर्यः) स्वामी होकर (यदा) जब वह (आजिम् दीर्घम्) शत्रुओं को उखाड़ फेंकने के कार्य को भी लम्बा देर तक चलने वाला (अभि अख्यत्) देखे तब जिस प्रकार (सोमसुद्भिः आनिशितं वृषणं पुरुषं पत्नी दुरोणे अच्छ अचिक्रदत्) अन्न ओषधिरसों से पुष्ट करने वाले उपायज्ञों द्वारा तीक्ष्ण वा अधिक बलवान् किये गये, हृष्ट पुष्ट पुरुष को उसकी पत्नी प्रेम युक्त होकर बुलाती है उसी प्रकार (सोमसुद्भिः) ऐश्वर्यों को उत्पन्न करने वाले विद्वान् पुरुषों से (आनिशितम्) सब प्रकार से तीक्ष्ण तेजस्वी बनाये गये (वृषणं) बलवान् उत्तम प्रबन्धक पुरुष को (दुरोणे) अति उच्च पद पर (पत्नी) पत्नी के समान राष्ट्रैश्वर्य की पालक और ऐश्वर्यवर्धक प्रजा (अच्छ) आदर पूर्वक (अचिक्रदत्) बुलावे, स्थापित करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप । २, ८ भुरिक् पंक्तिः । ६ स्वराट् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः । १० निचृदनुष्टुप् ॥ इत्येकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता स्त्री संपूर्ण ऐश्वर्याचे उत्तम प्रकारे रक्षण व उन्नती करून पतीला आनंद देते, तसेच विद्या व विनययुक्त राजा आपल्या प्रजाजनांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण, ऐश्वर्याची वृद्धी व सर्व सज्जनांचे रक्षण करतो. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the ruler of the land and noble head of his people and destroyer of the enemies perceives a tumult of battle around and afar, he displays his long range deployment of arms and armies, while the citizenry at home, as a sustaining and supportive force, exhorts him and proclaims aloud his internal strength of morale created and sharpened by the creators and refiners of national energy.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The assured security of the State is possible by the victory over the enemies.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    When a king decides to declare a long lasting war, he invites or appeals to mighty warriors to join in the attack. Then like a wife at home, he makes a great sound in enjoyment along with those who are rich or who extract the Soma juice.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A chaste wife keeps all wealth safely, and tries to multiply it by proper investment, and thus she gladdens her husband and others. In the same manner, a king who is endowed with knowledge and humility protects his subjects, intensifies the prosperity of the State and guards good men well.

    Foot Notes

    (ऋधावा) शत्रूणां हन्ता । = Destroyer of enemies. (आजिम्) अजन्ति प्रक्षिपन्ति शस्त्राण्यस्मिंस्तम् । आजौइति संग्रामनाम (NG 2, 17) = Very sharp. (दुरोणे) गृहे । दुरोणे इति गृहनाम (NG 3, 4 ) । = At home.

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