ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 40/ मन्त्र 7
यदि॑न्द्रा॒ग्नी जना॑ इ॒मे वि॒ह्वय॑न्ते॒ तना॑ गि॒रा । अ॒स्माके॑भि॒र्नृभि॑र्व॒यं सा॑स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तो व॑नु॒याम॑ वनुष्य॒तो नभ॑न्तामन्य॒के स॑मे ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । जनाः॑ । इ॒मे । वि॒ऽह्वय॑न्ते । तना॑ । गि॒रा । अ॒स्माके॑भिः । नृऽभिः॑ । व॒यम् । स॒स॒ह्याम॑ । पृ॒त॒न्य॒तः । व॒नु॒याम॑ । व॒नु॒ष्य॒तः । नभ॑न्ताम् । अ॒न्य॒के । स॒मे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदिन्द्राग्नी जना इमे विह्वयन्ते तना गिरा । अस्माकेभिर्नृभिर्वयं सासह्याम पृतन्यतो वनुयाम वनुष्यतो नभन्तामन्यके समे ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । इन्द्राग्नी इति । जनाः । इमे । विऽह्वयन्ते । तना । गिरा । अस्माकेभिः । नृऽभिः । वयम् । ससह्याम । पृतन्यतः । वनुयाम । वनुष्यतः । नभन्ताम् । अन्यके । समे ॥ ८.४०.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 40; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
When these our people, with one persistent voice and relentless exhortation, invoke and call upon Indra and Agni who command irresistible power and unquestionable knowledge, then with our dynamic people we would face and fight out all violent oppositions and defeat destructive forces. May all violence, destruction, terrorism and sabotage vanish from progressive society.
मराठी (1)
भावार्थ
आम्ही विविध प्रकारे ब्राह्म व क्षात्र बलवानांचे गुण वर्णन करत त्या गुणांचे आपल्या अंत:करणात आधान करावे. आम्ही आक्रमक व आक्रमण करून आम्हाला पराभूत करणाऱ्या किंवा नष्ट करू इच्छिणाऱ्या शत्रूंना व शत्रूभावनांना या प्रकारे पराभूत करू शकू. ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यद्) जब (इमे जनाः) ये हमारे जीव (तना) सतत उच्चारित (गिरा) अपने शब्दों के द्वारा (इन्द्राग्नी) उपरोक्त इन्द्र व अग्नि को (विह्वयन्ते) विकल होकर पुकार लेते हैं--गुण वर्णन द्वारा उनका आधान अपने अन्तरात्मा में कर लेते हैं, तब हम (अस्माकेभिः) इन अपने ही हुए (नृभिः) लोगों को साथ ले (पृतन्यतः) आक्रान्ता शत्रुओं व शत्रु भावनाओं को (सासह्याम) धीरता सहित परास्त करें और (वनुष्यतः) जो हमें हराना चाहते हैं या विध्वस्त करना चाहते हैं, हम उन्हें (वनुयाम) पराजित करें या नष्ट कर दें॥७॥
भावार्थ
हमारे लिये उपयुक्त है कि हम विविध प्रकार से ब्राह्मबल तथा क्षात्रबलशालियों के गुणों का वर्णन करते हुए उन गुणों को अपने अन्तःकरण में धारें। हम अपने आक्रामक तथा आक्रमण करके हमें पराजित अथवा नष्ट करने के इच्छुक शत्रुओं व शत्रुभूत भावनाओं को इसी प्रकार परास्त कर सकते हैं॥७॥
विषय
दुष्टों के नाश का उपदेश।
भावार्थ
( इमे जनाः ) ये मनुष्य ( तना गिरा ) धन और वचन से ( यत् ) जिन ( इन्द्रानी ) इन्द्र और अग्नि, सूर्य अग्निवत् तेजस्वी नायकों को ( विह्नयन्ते ) विशेष रूप से बुलाते हैं, ( अस्माकेभिः नृभिः) अपने ही आदमियों से सहायवान् होकर (वयं ) हम लोग ( पृतन्यतः सासह्याम ) सेनाओं द्वारा युद्ध करने वाले शत्रुओं का पराजय करें और ( वनुष्यतः वनुयाम ) हिंसाकारियों को हम भी मारें । ( अन्य समे नभन्ताम् ) हमारे अन्य समस्त शत्रु नष्ट हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नाभाक: काण्व ऋषिः॥ इन्दाग्नी देवते॥ छन्दः—१, ११ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३, ४ स्वराट् त्रिष्टुप्। १२ निचत् त्रिष्टुप्। २ स्वराट् शक्वरी। ५, ७, जगती। ६ भुरिग्जगती। ८, १० निचृज्जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
तना+गिरा
पदार्थ
[१] (इमे जनाः) = ये लोग (यत्) = जब (तना) = शक्तियों के विस्तार के हेतु से तथा (गिरा) = ज्ञान की वाणियों के हेतु से (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवों को (विह्वयन्ते) = पुकारते हैं- उनकी आराधना करते हैं। तो इन इन्द्र और अग्नि के आराधक इन (अस्माकेभिः नृभिः) = हमारे लोगों के द्वारा (वयं) = हम (पृतन्यतः) = सेना के द्वारा आक्रमण करनेवालों को संग्राम करनेवालों को (सासह्याम) = पराभूत करनेवाले हों। [२] इन्द्र और अग्नि की आराधना करते हुए हम (वनुष्यतः वनुयाम) = हिंसा करते हुए शत्रुओं को हिंसित करनेवाले हों। हमारे समे सारे अन्यके शत्रु (नभन्ताम्) = विनष्ट हों।
भावार्थ
भावार्थ - इन्द्र और अग्नि का आराधन करते हुए हम शक्तियों के विस्तार के द्वारा तथा ज्ञानवृद्धि के द्वारा शत्रुओं को पराजित करनेवाले हों।
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