अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - महाबृहती
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
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यां क॒ल्पय॑न्ति वह॒तौ व॒धूमि॑व वि॒श्वरू॑पां॒ हस्त॑कृतां चिकि॒त्सवः॑। सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । क॒ल्पय॑न्ति । व॒ह॒तौ । व॒धूम्ऽइ॑व । वि॒श्वऽरू॑पाम् । हस्त॑ऽकृताम् । चि॒कि॒त्सव॑: । सा । आ॒रात् । ए॒तु॒ । अप॑ । नु॒दा॒म॒: । ए॒ना॒म् ॥१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यां कल्पयन्ति वहतौ वधूमिव विश्वरूपां हस्तकृतां चिकित्सवः। सारादेत्वप नुदाम एनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । कल्पयन्ति । वहतौ । वधूम्ऽइव । विश्वऽरूपाम् । हस्तऽकृताम् । चिकित्सव: । सा । आरात् । एतु । अप । नुदाम: । एनाम् ॥१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पदार्थ
(याम्) जिस (विश्वरूपाम्) अनेक रूपवाली, (हस्तकृताम्) हाथों से की हुई [हिंसा क्रिया] को (चिकित्सवः) संशय करनेवाले लोग (कल्पयन्ति) बनाते हैं, (इव) जैसे (वधूम्) वधू को (वहतौ) विवाह में, (सा) वह (आरात्) दूर (एतु) चली जावे, (एनाम्) इसको (अपनुदामः) हम हटाते हैं ॥१॥
भावार्थ
जो मनुष्य छल करके देखने में सुखद और भीतर से दुःखदायी काम करें, राजा उसका यथावत् प्रतीकार करे ॥१॥
टिप्पणी
१−(याम्) कृत्याम्। हिंसाक्रियाम् (कल्पयन्ति) रचयन्ति। संस्कुर्वन्ति (वहतौ) अ० ३।३१।५। वह-चतु। विवाहे (वधूम्) अ० १।१।२। नवोढां जायाम् (इव) यथा (विश्वरूपाम्) अनेकविधाम् (हस्तकृताम्) हस्तेन निष्पादिताम् (चिकित्सवः) कित संशये रोगापनयने च−स्वार्थे सन्, उ प्रत्ययः। संशयशीलाः (सा) हिंसाक्रिया (आरात्) दूरे (एतु) गच्छतु (अप नुदामः) दूरे प्रेरयामः (एनाम्) हिंसाक्रियाम् ॥
विषय
'विश्वरूपा-हस्तकृता' कृत्या
पदार्थ
१.(चिकित्सवः) = [चिकिति to know] समझदार निर्माता लोग (याम्) = जिस (विश्वरूपाम्) = अनेक रूपोंवाली (हस्तकृताम्) = हाथ से बनाई गई कृत्या को-हिंसा प्रयोग को [Bomb इत्यादि के रूप में] (कल्पयन्ति) = बनाते हैं, (वहतौ वधूम् इव) = विवाहकाल में विभूषित वधू की भाँति सुन्दर बनाते हैं। (सा) = वह कृत्या (आरात् एतु) = हमसे दूर हो, (एनाम् अपनुदामः) = हम इसे अपने से दूर करते हैं।
भावार्थ
चतुर शत्रुवर्ग हमारे विनाश के लिए जिन वधू के समान सजे हुए कृत्या-प्रयोगों को करते हैं-विचित्र, सुन्दर आकृतिवाले बम्ब इत्यादि बनाते हैं, ये भिन्न-भिन्न रूपोंवाले आकर्षक, क्रीड़नकों के समान होते हैं। हम इन्हें अपने से दूर करें। इनका शिकार न हो जाएँ।
भाषार्थ
(चिकित्सवः) चिकित्सक, (वहतौ) विवाह में (वधूम् इव) वधू के सदृश, (याम्) जिसे (विश्वरूपाम्) सब ओर से सजी-सजाई या विश्व में रूपवती, (हस्तकृताम्) अपने हाथों द्वारा रची गई (कल्पयन्ति) निर्मित करते हैं, (सा) वह (आरात्) यदि समीप (एतु) आए तो (एनाम्) इसे (अप नुदामः) हम परे धकेल देते हैं।
टिप्पणी
[मन्त्र में विषकन्या का वर्णन हुआ प्रतीत होता है, और चिकित्सवः द्वारा विषवैद्यों का। परराष्ट्र के राजा के मारने हेतु, शत्रुराज्याधिकारी, निज विषवैद्यों द्वारा निर्मित की गई विषकन्या को प्रेषित करते हैं, ताकि विश्वरूपा कन्या के सम्पर्क द्वारा परराष्ट्र के राजा की मृत्यु हो जाय। आरात् का अर्थ है समीप। आरात् दूरसमीपयोः।
इंग्लिश (4)
Subject
Countering Evil Designs
Meaning
Whatever plan or design or fraud or seductive decoy, planners, designers or tacticians have prepared with their own hand and brain, finished in all possible beautiful forms in detail and sent in to us like a bride ready for departure for the bridegroom’s home, we counter and throw it back to the sender. (The evil plan is described like a vishakanya, deadly seductress.)
Subject
Mantroktāh
Translation
May she (the harmful design) of-all forms and made with hands, whom the skilled workers adorn like a bride at a wedding, go afar. We push her away.
Translation
Let it be far away from us and we drive away this device which the artists like a beautiful bride in marriage, prepare by hand-work.
Translation
After let her depart; away we drive her, whom skilled men prepare and fashion, violent in nature, but beautiful in appearance like a bride at the time of marriage.
Footnote
Her: Destructive contrivance violent device or artifice.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(याम्) कृत्याम्। हिंसाक्रियाम् (कल्पयन्ति) रचयन्ति। संस्कुर्वन्ति (वहतौ) अ० ३।३१।५। वह-चतु। विवाहे (वधूम्) अ० १।१।२। नवोढां जायाम् (इव) यथा (विश्वरूपाम्) अनेकविधाम् (हस्तकृताम्) हस्तेन निष्पादिताम् (चिकित्सवः) कित संशये रोगापनयने च−स्वार्थे सन्, उ प्रत्ययः। संशयशीलाः (सा) हिंसाक्रिया (आरात्) दूरे (एतु) गच्छतु (अप नुदामः) दूरे प्रेरयामः (एनाम्) हिंसाक्रियाम् ॥
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