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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - उरोबृहती सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
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    यथा॒ वात॑श्च्या॒वय॑ति॒ भूम्या॑ रे॒णुम॒न्तरि॑क्षाच्चा॒भ्रम्। ए॒वा मत्सर्वं॑ दुर्भू॒तं ब्रह्म॑नुत्त॒मपा॑यति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । वात॑: । च्य॒वय॑ति । भूम्या॑: । रे॒णुम् । अ॒न्तरि॑क्षात् । च॒ । अ॒भ्रम् । ए॒व । मत् । सर्व॑म् । दु॒:ऽभू॒तम् । ब्रह्म॑ऽनुत्तम् । अप॑ । अ॒य॒ति॒ ॥१.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा वातश्च्यावयति भूम्या रेणुमन्तरिक्षाच्चाभ्रम्। एवा मत्सर्वं दुर्भूतं ब्रह्मनुत्तमपायति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । वात: । च्यवयति । भूम्या: । रेणुम् । अन्तरिक्षात् । च । अभ्रम् । एव । मत् । सर्वम् । दु:ऽभूतम् । ब्रह्मऽनुत्तम् । अप । अयति ॥१.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) वायु (भूम्याः) भूमि से (रेणुम्) रेणु [धूलि] को (च) और (अन्तरिक्षात्) आकाश से (अभ्रम्) मेघ को (च्यावयति) सरका देता है। (एव) वैसे ही (मत्) मुझ से (सर्वम्) सब (ब्रह्मनुत्तम्) ब्राह्मणों द्वारा हटाया गया (दुर्भूतम्) पाप (अप अयति) दूर चला जावे ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्य सदुपदेश पाकर पाप कर्म छोड़ने में शीघ्रता करे ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (च्यावयति) अपगमयति (भूम्याः) (रेणुम्) अजिवृरीभ्यो निच्च। उ० ३।३८। री गतिरेषणयोः−नु। धूलिम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (च) (अभ्रम्) मेघम् (एव) एवम् (मत्) मत्तः (सर्वम्) (दुर्भूतम्) पापम्। दुःखम् (ब्रह्मनुत्तम्) ब्रह्मभिर्वेदविद्भिः प्रेरितम् (अप अयति) नश्यतु ॥

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    विषय

    ब्रह्मनुत्तं दुर्भूतं अपायती

    पदार्थ

    १. (यथा) = जिस प्रकार (वात:) = तीव्र वायु (भूम्या:) = भूमि के (रेणुम्) = धूलकणों को (च) = और (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से (अभ्रम्) = मेघ को (च्यावयति) = स्थानभ्रष्ट कर देता है, (एव) = इसी प्रकार (सर्वम्) = सब (दुर्भूतम्) = दुर्भाव-बुरी भावनाएँ, (ब्रह्मनुत्तम्) = ज्ञान द्वारा प्रेरित हुई-हुई (मत्) = मुझसे (अपायति) = पृथक् हो जाती हैं।

    भावार्थ

    ज्ञान द्वारा सब दुर्भाव मानसस्थली से इसप्रकार उखड़ जाते हैं जैसेकि तीन गतिवाले वायु के द्वारा भूमि से धूल-कण स्थानभ्रष्ट हो जाते हैं और अन्तरिक्ष से मेघ छिन्न भिन्न हो जाते हैं।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) झंझा वायु (भूम्याः रेणूम्) भूमि से धूल को, (च) और (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (अभ्रम्) मेघ को (च्यावयति) च्युत कर देती है, (एवा) इसी प्रकार (ब्रह्मनुत्तम्) ब्रह्मोपासना द्वारा धकेला गया (सर्वम् दुर्भूतम्) सब दुरित (यत्) मुझ से (अपायति) पृथक् हो जाता है। [दुरितम् = दुष्फल पाप]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    Just as wind blows away dust from the earth and cloud from the sky, so does all sense of sin and guilt, evil and negativity fall off, driven away by Vedic wisdom and the light of Divinity, ultimate life and power.

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    Translation

    As the wind dislodges the dust from the earth and the cloud from the midspace, so may all ill and evil, pushed away by prayer, depart from me.

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    Translation

    As the wind stirs the dust from earth and drives the clouds from sky so all the miseries hurt by the Knowledge of the Veda depart from me.

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    Translation

    As the wind stirs the dust from earth and drives the rain-cloud from the sky, so dispelled by Vedic knowledge, all my sin departs from me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (च्यावयति) अपगमयति (भूम्याः) (रेणुम्) अजिवृरीभ्यो निच्च। उ० ३।३८। री गतिरेषणयोः−नु। धूलिम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (च) (अभ्रम्) मेघम् (एव) एवम् (मत्) मत्तः (सर्वम्) (दुर्भूतम्) पापम्। दुःखम् (ब्रह्मनुत्तम्) ब्रह्मभिर्वेदविद्भिः प्रेरितम् (अप अयति) नश्यतु ॥

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