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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 24
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
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    यद्ये॒यथ॑ द्वि॒पदी॒ चतु॑ष्पदी कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा। सेतो॒ष्टाप॑दी भू॒त्वा पुनः॒ परे॑हि दुच्छुने ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । आ॒ऽइ॒यथ॑ । द्वि॒ऽपदी॑ । चतु॑:ऽपदी । कृ॒त्या॒ऽकृता॑ । सम्ऽभृ॑ता । वि॒श्वऽरू॑पा । सा । इ॒त: । अ॒ष्टाऽप॑दी । भू॒त्वा । पुन॑: । परा॑ । इ॒हि॒ । दु॒च्छु॒ने॒ ॥१.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्येयथ द्विपदी चतुष्पदी कृत्याकृता संभृता विश्वरूपा। सेतोष्टापदी भूत्वा पुनः परेहि दुच्छुने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । आऽइयथ । द्विऽपदी । चतु:ऽपदी । कृत्याऽकृता । सम्ऽभृता । विश्वऽरूपा । सा । इत: । अष्टाऽपदी । भूत्वा । पुन: । परा । इहि । दुच्छुने ॥१.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले पुरुष द्वारा (संभृता) साधी गयी, (विश्वरूपा) अनेक रूपवाली [हिंसा] (द्विपदी) दोनों [स्त्री-पुरुष समूह] में गतिवाली, (चतुष्पदी) चारों [ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासाश्रम] में पदवाली और (अष्टापदी) आठों [चार पूर्व आदि और चार आग्नेय आदि मध्य दिशाओं] में व्याप्तिवाली (भूत्वा) होकर (एयथ) तू आयी है। (सा) सो (दुच्छुने) हे दुष्टगतिवाली ! तू (इतः) यहाँ से (पुनः) लौटकर (परा इहि) चली जा ॥२४॥

    भावार्थ

    स्त्री-पुरुषों में हिंसा कर्म बढ़ने से आश्रमव्यवस्था टूटकर संसार में दुःख फैलता है, इस से बुद्धिमान् राजा हिंसा को सदा नष्ट करे ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(यदि) सम्भावनायाम् (एयथ) आ+इण् गतौ-लिट्। एयेथ। त्वमागतवती (द्विपदी) द्वयोः स्त्रीपुरुषसमूहयोर्मध्ये पदं गमनं यस्याः सा (चतुष्पदी) चतुर्षु ब्रह्मचर्याद्याश्रमेषु पदं स्थितिर्यस्याः सा (कृत्याकृता) म० २। हिंसाकारकेण (संभृता) निष्पादिता (विश्वरूपा) अनेकविधा (सा) सा त्वम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (अष्टापदी) अष्टसु चतसृषु पूर्वादिदिक्षु आग्नेयादिमध्यदिक्षु च पदं व्याप्तिर्यस्याः सा (भूत्वा) (पुनः) पश्चात् (परेहि) निर्गच्छ (दुच्छुने) अ० ५।१७।४। हे दुष्टगते ॥

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    विषय

    अष्टापदी भूत्वा

    पदार्थ

    १. हे (दुच्छुने) = दुष्ट गतिवाली व दुःखदायिनी कृत्ये! (यदि) = यदि तू (कृत्याकृता) = इन छेदन भेदन का प्रयोग करनेवाले पुरुषों के द्वारा (संभृता) = सम्यक् बनाई गई, (विश्वरूपा) = अनेक रूपोंवाली (द्विपदी) = दो पौवोंवाली व (चतुष्पदी) = चार पाँवोंवाली (आ इयथ) = हमारे समीप आती है, तो (सा) = वह तू अष्टापदी भूत्वा आठ पावोंवाली बनकर-दुगुनी व चौगुनी के स्थान में आठ गुनी होकर (इत:) = यहाँ से (पुन: परेहि) = फिर वापस जानेवाली हो।

    भावार्थ

    हिंसा का प्रयोग हिंसा करनेवाले को ही पुनः द्विगुणित होकर प्राप्त हो।

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    भाषार्थ

    [हे परकीय सेना] (यदि एयथ) यदि तू आई है (द्विपदी) दो अङ्गों वाली, (कुत्याकृता) हिंस्रसेना के रचयिता द्वारा (संभृता) युद्ध के संभारों द्वारा सम्यक् परिपुष्ट हुई या (विश्वरूपा) समग्ररूपों वाली अर्थात् (चतुष्पदी) चार अङ्गों वाली चतुरङ्गिणी सेना के रूप में आई है (सा) वह तू (इतः) यहां से (अष्टापदी भूत्वा) आठ अङ्गों वाली होकर (पुनः) तू फिर (परा इहि) परे चली जा, (दुच्छुने) हे सुख को दुःख बनाने वाली या दुष्ट-कुतियारूप सेना !

    टिप्पणी

    [मन्त्र में सेना के दो स्वरूप निर्दिष्ट किये हैं, द्विपदी अर्थात् पदाति और अश्वारोहियों वाली, तथा चतुष्पदी अर्थात् चार अङ्गों वाली चतुरङ्गिणी सेना। चार अङ्ग हैं पदाति, रथी, अश्वारोही तथा हाथी। यह ही चतुरङ्गिणी सेना का विश्वरूप है। स्वराष्ट्र रक्षक सेनाध्यक्ष, परकीय चतुरङ्गिणी सेना के प्रति कहते है कि तू जो हमारे राष्ट्र में भाई है, यहां से परे चली जा, और स्वराष्ट्र रक्षक सेनाध्यक्ष निज प्रबल चतुरङ्गिणी सेना द्वारा परकीय सेना को खदेड़ कर उस का पीछा करता हुआ निज राष्ट्र से उसे निकाल देता है। इस निकालने में दोनों सेनाओं के रूप में यह अष्टापदी सेना हो जाती है। दुच्छुने ! "दु + शुनी" (सम्बुद्धौ), अथवा "दुः + शुनम्" (सुख नाम, निघं० ३।६)। द्विपदी, चतुष्पदी में, पाद का अभिप्राय है अंग]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O two-wing, four-wing force of evil, mischief and negativity and calamitous versatility created and fully equipped by evil, if you came here at double or four-fold speed of the ordinary, now then rise to eightfold speed of the ordinary and go away far from here.

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    Translation

    If, O harmful design, duly made and composed in all forms, you come here as two-footed or four-footed, O harbinger of misfortune, go away from here becoming eight-footed.

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    Translation

    If this evil device wrought by the devic-maker in various shape comes to us as one-footed or two-footed or four-footed, then let it return back again from here to its maker as becoming eight-footed.

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    Translation

    If thou hast come two- footed or four-footed made by a violent person, assuming different shapes, become eight-footed and go hence. Speed back again, thou evil design!

    Footnote

    Two-footed: Working in men and women. Four-footed: Working amidst cattle, or in Brahmcharya, Grihastha, Banprastha, SanyasaAshramas. Eight-footed: working in four quarters and four sub quarters.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(यदि) सम्भावनायाम् (एयथ) आ+इण् गतौ-लिट्। एयेथ। त्वमागतवती (द्विपदी) द्वयोः स्त्रीपुरुषसमूहयोर्मध्ये पदं गमनं यस्याः सा (चतुष्पदी) चतुर्षु ब्रह्मचर्याद्याश्रमेषु पदं स्थितिर्यस्याः सा (कृत्याकृता) म० २। हिंसाकारकेण (संभृता) निष्पादिता (विश्वरूपा) अनेकविधा (सा) सा त्वम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (अष्टापदी) अष्टसु चतसृषु पूर्वादिदिक्षु आग्नेयादिमध्यदिक्षु च पदं व्याप्तिर्यस्याः सा (भूत्वा) (पुनः) पश्चात् (परेहि) निर्गच्छ (दुच्छुने) अ० ५।१७।४। हे दुष्टगते ॥

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