Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    0

    अ॒घम॑स्त्वघ॒कृते॑ श॒पथः॑ शपथीय॒ते। प्र॒त्यक्प्र॑ति॒प्रहि॑ण्मो॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒घम् । अ॒स्तु॒ । अ॒घऽकृते॑ । श॒पथ॑: । श॒प॒थि॒ऽय॒ते । प्र॒त्यक् । प्र॒ति॒ऽप्रहि॑ण्म: । यथा॑ । कृ॒त्या॒ऽकृत॑म् । हनत् ॥१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अघमस्त्वघकृते शपथः शपथीयते। प्रत्यक्प्रतिप्रहिण्मो यथा कृत्याकृतं हनत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अघम् । अस्तु । अघऽकृते । शपथ: । शपथिऽयते । प्रत्यक् । प्रतिऽप्रहिण्म: । यथा । कृत्याऽकृतम् । हनत् ॥१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (अघम्) बुराई (अघकृते) बुराई करनेवाले को और (शपथः) शाप (शपथीयते) शाप करनेवाले को (अस्तु) होवे। [उस दुष्ट कर्म को] (प्रत्यक्) पीछे की ओर (प्रतिप्रहिण्मः) हम हटा देते हैं (यथा) जिस से [वह दुष्ट कर्म] (कृत्याकृतम्) हिंसा करनेवाले को (हनत्) मारे ॥५॥

    भावार्थ

    दुष्कर्मी कटुभाषी दुष्ट को यथानीति दण्ड दिया जावे ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(अघम्) पापम् (अस्तु) (अघकृते) पापकारिणे (शपथः) शापः। दुर्वचनम् (शपथीयते) शपथ-क्यच्, शतृ। शापकारिणे (प्रत्यक्) प्रतिकूलगमनम् (प्रतिप्रहिण्मः) हि गतिवृद्ध्योः। प्रतिकूलं गमयामः (यथा) येन प्रकारेण (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (हनत्) हन्यात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अघ अघकृत् के लिए, The biter bit

    पदार्थ

    १. अघम्-यह हिंसारूप पाप अधकृते अस्तु-इस पाप को करनेवाले के लिए ही हो। शपथ:-यह आक्रोश शपथीयते-शाप देनेवाले के लिए ही हो। हम इस अघ व शपथ को प्रत्यक् प्रतिप्रहिण्म: वापस भेजे देते हैं, यथा-जिससे यह कृत्याकृतं हनत्-हिंसा करनेवाले को ही नष्ट करे।

    भावार्थ

    अघकृत् को ही उसका पाप प्राप्त होता है, शाप देनेवाले को ही शाप लगता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अधकृते) पापकर्म करने वाले के प्रति (अघम्) पाप (अस्तु) हो, जैसे कि (शपथः शपथीयते) शपथ, शपथ करने वाले के प्रति होती है। कृत्या अर्थात् हिंस्रोपकरण को, (प्रत्यक्) उसके प्रेषित करने वाले के प्रति (प्रतिहिण्मः) हम वापिस भेजते हैं (यथा) ताकि वह (कृत्याकृतम्) कृत्या करने वाले का (हनत्) हनन करे।

    टिप्पणी

    [दूसरे के लिये पापकर्म का विचार, विचारकर्त्ता के चित्त को दूषित कर उस के लिये ही परिणामरूप में दुःखदायक होता है। शपथ सदा झूठी होती है, जैसे कि निरुक्त में उदाहरण दिया है कि "अद्या मुरीय यदि यातुधानोऽस्मि" (७।१।३) कि "मैं आज ही मर जाऊं यदि मैं किसी को यातना अर्थात् कष्ट देने वाला हूं"। परन्तु देखा जाता है कि शपथ लेने वाला उसी दिन मरता नहीं। यह झूठी शपथ उस के चित्त में बुरे परिणाम को ही पैदा करती है। जैसे अघ और शपथ, कर्त्ता को ही प्राप्त होते हैं, वैसे शत्रु द्वारा प्रेषित किये गये कृत्योपकरण उस के ही प्रति उसके हननार्थ भेज देने चाहिये, ताकि वह दोबारा वैसे प्रयत्न न कर पाए]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    As imprecation returns to the imprecator, let evil too be for the evil doer and sin for the sin perpetrator. So we return the evil to the evil doer so that it may fall upon him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let evil befall to the evil-doer, Jet the cures fall on the curser, backward we send her forth, so that she may strike the person who has made that harmful design (krtyā-krtam).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the misery full upon him who causes it to others, let the curse fall upon him who curses others as I drive this device back so that it may slay the maker of this.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May ill fall on him who doeth ill, on him who curseth may the curse fall. We drive the evil deed back that it may slay the man who commits the evil deed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(अघम्) पापम् (अस्तु) (अघकृते) पापकारिणे (शपथः) शापः। दुर्वचनम् (शपथीयते) शपथ-क्यच्, शतृ। शापकारिणे (प्रत्यक्) प्रतिकूलगमनम् (प्रतिप्रहिण्मः) हि गतिवृद्ध्योः। प्रतिकूलं गमयामः (यथा) येन प्रकारेण (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (हनत्) हन्यात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top