अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 17
ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
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वात॑ इव वृ॒क्षान्नि मृ॑णीहि पा॒दय॒ मा गामश्वं॒ पुरु॑ष॒मुच्छि॑ष एषाम्। क॒र्तॄन्नि॒वृत्ये॒तः कृ॑त्येऽप्रजा॒स्त्वाय॑ बोधय ॥
स्वर सहित पद पाठवात॑:ऽइव । वृ॒क्षान् । नि । मृ॒णी॒हि॒ । पा॒दय॑ । मा । गाम् । अश्व॑म् । पुरु॑षम् । उत् । शि॒ष॒: । ए॒षा॒म् । क॒र्तृन् । नि॒ऽवृत्य॑ । इ॒त: । कृ॒त्ये॒ । अ॒प्र॒जा॒:ऽत्वा॒य॑ । बो॒ध॒य॒ ॥१.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
वात इव वृक्षान्नि मृणीहि पादय मा गामश्वं पुरुषमुच्छिष एषाम्। कर्तॄन्निवृत्येतः कृत्येऽप्रजास्त्वाय बोधय ॥
स्वर रहित पद पाठवात:ऽइव । वृक्षान् । नि । मृणीहि । पादय । मा । गाम् । अश्वम् । पुरुषम् । उत् । शिष: । एषाम् । कर्तृन् । निऽवृत्य । इत: । कृत्ये । अप्रजा:ऽत्वाय । बोधय ॥१.१७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पदार्थ
(कर्तॄन्) हिंसको को (नि मृणीहि) मार डाल और (पादय=पातय) गिरा दे, (वातः इव) जैसे वायु (वृक्षान्) वृक्षों को, (एषाम्) इनकी (गाम्) गौ, (अश्वम्) घोड़ा और (पुरुषम्) पुरुष को (मा उत् शिषः) मत छोड़। (कृत्ये) हे हिंसाशील ! (इतः) यहाँ से (निवृत्य) लौट कर (अप्रजास्त्वाय) [उनकी] प्रजा [पुत्र, पौत्र, सेवक आदि] की हानि के लिये [उन्हें] (बोधय) जगा दे ॥१७॥
भावार्थ
सेनापति शत्रुओं को ऐसा हरा देवे कि वे सर्वथा उपायहीन और राज्यहीन हो जावें ॥१७॥
टिप्पणी
१७−(वातः) (इव) (वृक्षान्) (नि) नितराम् (मृणीहि) मारय (पादय) तस्य दः। पातय (मा उत् शिषः)। अ० ६।१२७।१। मोच्छेषय (गाम्) (अश्वम्) (पुरुषम्) (एषाम्) हिंसकानाम् (कर्तॄन्) म० ३। हिंसकान् (निवृत्य) परागत्य (इतः) अस्मात् स्थानात् (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (अप्रजास्त्वाय) अ० ८।६।२६। पुत्रपौत्रसेवकादिराहित्याय (बोधय) विज्ञापय ॥
विषय
हिंसा प्रयोग व वंशोच्छेद
पदार्थ
१. हे कृत्ये-हिंसा के प्रयोग ! तू शत्रुओं को इसप्रकार (निमृणीहि) = निर्मूल कर दे (इव) = जैसेकि (वातः वक्षान) = वायु वृक्षों को निर्मूल कर डालता है। (पादय) = इन्हें पाँव तले रौंद डाल-दूर भगा दे। (एषाम्) = इनके (गां अश्वं पुरुषम्) = गौ, अश्व व पुरुषों को (मा उच्छिषः) = जीवित मत छोड़। २. (इत:) = यहाँ से (निवृत्य) = लौटकर (कर्तृन्) = इन हिंसा-प्रयोग करनेवाले पुरुषों को (अप्रजास्त्वाय बोधय) = प्रजाहीन हो जाने की चेतावनी दे। उन्हें यह स्पष्ट कर दे कि इन प्रयोगों का परिणाम इतना भयंकर होगा कि तुम्हारा वंश ही उच्छिन्न हो जाएगा।
भावार्थ
हिंसक पुरुषों का हिंसा-प्रयोगों से स्वयं ही हिंसन हो जाता है। उनके सन्तान व वंश के ही उच्छेद हो जाने की आशंका हो जाती है।
भाषार्थ
(कृत्ये) छेदन-भेदन में कुशल हे हमारी सेना ! (वातः इव) प्रचण्ड वायु जैसे (वृक्षान्) वृक्षों को वैसे तू परकीय सेना को (निमृणीहि) तोड़फोड़ और (पादय) गिरा दे, भूशायी कर दे; (एषाम्) इन की (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) किसी भी गौ, अश्व और पुरुष को (मा उच्छिषः) शेष बचा न रख। (इतः निवृत्य) यहां से निवृत्त होकर (कर्तॄन्) शत्रुसेना के रचयिताओं को (अप्रजास्त्वाय) प्रजाहीन हो जाने की (बोधय) सूचना दें।
टिप्पणी
[कृत्या=कृती छेदने, छेदन-भेदन में कुशल सेना। मृणीहि = मृण हिंसायाम्। बोधय अप्रजास्त्वाय = शत्रुपक्ष को हे हमारी सेना ! सूचित कर दे कि उन के अधिकारी शासक प्रजा से रहित कर दिये जायेंगे, अर्थात् उन से राज्य छीन लिया जायेगा। मन्त्र १६ में शत्रुसेना को युद्धस्थल से चले जाने का आदेश दिया है, परन्तु उसके न जाने पर, निज सेना को आदेश दिया है, उसके सर्वोच्छेद का।]
इंग्लिश (4)
Subject
Countering Evil Designs
Meaning
O force of violence and evil, go back from here to where you come from, throw down and destroy the perpetrators of evil and violence by themselves as wind breaks down the trees. Spare not their cows, horses and men, and warn them that they will lose even their progeny for generations to come.
Translation
Returning from here to your makers, O harmful design, smash them like a tempest: the trees; fell them down. Let none of their kine, horses, or men survive. Wake them up to their: childlessness (aprajaih).
Translation
Let this device like the wind which uproots the trees, smite and overthrow the cows, horses and men of these makers of device returning back to them from here and make them realize that they are without children.
Translation
O violent army, as wind the trees, so smite and overthrow the mischievous foes: leave not cow, horse, or man of them surviving. Returning from this place wake them from sleep to find that they are childless.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१७−(वातः) (इव) (वृक्षान्) (नि) नितराम् (मृणीहि) मारय (पादय) तस्य दः। पातय (मा उत् शिषः)। अ० ६।१२७।१। मोच्छेषय (गाम्) (अश्वम्) (पुरुषम्) (एषाम्) हिंसकानाम् (कर्तॄन्) म० ३। हिंसकान् (निवृत्य) परागत्य (इतः) अस्मात् स्थानात् (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (अप्रजास्त्वाय) अ० ८।६।२६। पुत्रपौत्रसेवकादिराहित्याय (बोधय) विज्ञापय ॥
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