अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 8
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिवृत्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
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आयु॑षायु॒ष्कृतां॑ जी॒वायु॑ष्माञ्जीव॒ मा मृ॑थाः। प्रा॒णेना॑त्म॒न्वतां॑ जीव मा मृ॒त्योरुद॑गा॒ वश॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआयु॑षा। आ॒युः॒ऽकृता॑म्। जी॒व॒। आयु॑ष्मान्। जी॒व॒। मा। मृ॒थाः॒। प्रा॒णेन॑। आ॒त्म॒न्ऽवता॑म्। जी॒व॒। मा। मृ॒त्योः। उत्। अ॒गाः॒। वश॑म् ॥२७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुषायुष्कृतां जीवायुष्माञ्जीव मा मृथाः। प्राणेनात्मन्वतां जीव मा मृत्योरुदगा वशम् ॥
स्वर रहित पद पाठआयुषा। आयुःऽकृताम्। जीव। आयुष्मान्। जीव। मा। मृथाः। प्राणेन। आत्मन्ऽवताम्। जीव। मा। मृत्योः। उत्। अगाः। वशम् ॥२७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आशीर्वाद देने का उपदेश।
पदार्थ
(आयुष्कृताम्) जीवन बनानेवाले [विद्वानों] के (आयुषा) जीवन के साथ (जीव) तू जीवित रह, (आयुष्मान्) उत्तम जीवनवाला होकर (जीव) तू जीवित रह, (मा मृथाः) तू मत मरे। (आत्मन्वताम्) आत्मावालों के (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] से (जीव) तू जीवित रह (मृत्योः) मृत्यु के (वशम्) वश में (मा उत् अगाः) मत जा ॥८॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि बड़े जितेन्द्रिय पुरुषार्थी महात्माओं के समान अपने जीवन को पुरुषार्थी बनाकर यशस्वी होवें ॥८॥
टिप्पणी
८−(आयुषा) जीवनेन (आयुष्कृताम्) ब्रह्मचर्यादितपसा आयुषोऽलङ्कुर्वताम् (जीव) प्राणान् धारय (आयुष्मान्) उत्तमजीवनयुक्तः सन् (जीव) (मा मृथाः) प्राणान् मा त्यज (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (आत्मन्वताम्) अ०४।१०।७। आत्मन्-मतुप्, नुडागमः। सात्मकानां दृढजीवनवताम् (मृत्योः) मरणस्य (मा उत् अगाः) इण् गतौ-लुङ्। मा प्राप्नुहि (वशम्) अधीनत्वम् ॥
विषय
आयुः कृत, आयुष्मान्, आत्मन्वान्
पदार्थ
१. साधना के द्वारा (आयुः कृताम्) = आयुष्य का सम्पादन करनेवाले पुरुषों की (आयुषा) = आयु से जीव-तू जीनेवाला बन। (आयुष्मान्) = प्रशस्त आयुष्यवाला होकर (जीव) = जी। (मा मृथा:) = मर मत। हम साधना के द्वारा दीर्घजीवन का सम्पादन करें और प्रशस्त आयुष्यवाले बनें। २. (आत्मन्यताम्) = प्रशस्त मनवाले पुरुषों के (प्राणेन) = प्राण से जीव तू जीवनवाला बन अथवा प्राणसाधना द्वारा प्रशस्त मनवाला होकर जीवन बिता । तुझमें प्रशस्त मन व प्राणशक्ति का समन्वय हो। तू (मृत्योः) = मृत्यु के (वशम्) = वश में (मा अगा:) = मत जा। मृत्यु तुझे अपने वशीभूत न कर ले।
भावार्थ
हम साधना के द्वारा दीर्घजीवी बनें। प्रशस्त जीवनवाले हों। प्राणसाधना द्वारा मन को निर्मल करके 'आत्मन्वान्' बनें।
भाषार्थ
(आयुष्कृताम्) जिन्होंने अपनी स्वस्थ-और-दीर्घ आयुओं का निर्माण किया है उनकी (आयुषा) आयुओं अर्थात् जीवनों के अनुसार, तू (जीव) जीवन यापन कर, (आयुष्मान्) स्वस्थ तथा दीर्घ आयु वाला हो कर (जीव) जीवन यापन कर, (मा मृथाः) और न शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो। (आत्मन्वताम्) आत्मिक शक्ति सम्पन्न महात्माओं के (प्राणेन) जीवनों के अनुसार (जीव) तू जीवित रह। और (उद्) आयु से समुन्नत होकर, (मृत्योः) मृत्यु के (वशम्) वश में (मा अगाः) न प्राप्त हो, मृत्युञ्जय बन।
विषय
आत्मवान् होकर ठाठ से जी
शब्दार्थ
(आयुः कृताम्) हे मानव ! तू अपने जीवन को बढ़ानेवाले, जीवन का निर्माण करनेवाले, जीवनवानों के (आयुषा) जीवन से (आयुष्मान्) जीवनवान् होकर, उनके जीवनों से प्रेरणा लेकर (जीव) जीवन धारण कर । (मा मृथाः) मर मत (जीव) जीवन धारण कर । (आत्मन्वताम्) आत्मशक्ति से युक्त शूरवीर पुरुषों के समान (प्राणेन) प्राण-शक्ति के साथ, दम-खम के साथ, ठाठ के साथ (जीव) प्राण धारण कर (मृत्योः वशम्) मौत के मुख में, मृत्यु के वश में (मा उद् अगाः) मत जा ।
भावार्थ
इस छोटे से मन्त्र में कैसी उच्च, दिव्य और महान् प्रेरणा है ! मन्त्र का एक-एक शब्द जीवन में ज्योति और शक्ति सञ्चार करनेवाला है । वेदमाता अपने अमृतपुत्रों को लोरियाँ देते हुए कहती है - १. हे जीव ! तू जीवितों से, अपने जीवन को चमकानेवालों के जीवन से ज्योति लेकर, उनके जीवनों से प्रेरणा प्राप्त करके उनकी ही भाँति इस संसार में ठाठ से जी । २. यह जीवन बहुत अमूल्य है, अतः जीवन धारण कर, मर मत । ३. आत्मवानों की भाँति प्राण-शक्ति से युक्त होकर दम-खम के साथ ठाठ से जी । ४. जीवन धारण कर । मौत के मुख में मत जा। एक बार तो मृत्यु को भी ठोकर लगा दे, मौत की बेड़ियों को भी काट डाल ।
इंग्लिश (4)
Subject
Protection
Meaning
O man, live with full life energy, gift of those divine powers which create the life energy for you. Live with good health for a full age. Never die an untimely death. Live with the life inspiration of those who live and command life energy of the spirit. Never fall a prey to the snares of untimely death.
Translation
Live with the life-span of life-span-makers. Live a long life. Do not die. Live with the life of the spirited ones. Do not submit to death.
Translation
O man, you live with the life of the things increasing life, you hold in you your vital breaths and become blessed with lengthened life and you do not die Premature and you live with the breath of the men sound in soul, body etc. and do not be caught into the clutches of death.
Translation
O man, live the life-span, attained by long-lived persons through regular and celibate living. Be long-lived. Don’t die. Lead the life with the vital breaths of those, who attained mastery over themselves. Don’t fall into the clutches of death.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(आयुषा) जीवनेन (आयुष्कृताम्) ब्रह्मचर्यादितपसा आयुषोऽलङ्कुर्वताम् (जीव) प्राणान् धारय (आयुष्मान्) उत्तमजीवनयुक्तः सन् (जीव) (मा मृथाः) प्राणान् मा त्यज (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (आत्मन्वताम्) अ०४।१०।७। आत्मन्-मतुप्, नुडागमः। सात्मकानां दृढजीवनवताम् (मृत्योः) मरणस्य (मा उत् अगाः) इण् गतौ-लुङ्। मा प्राप्नुहि (वशम्) अधीनत्वम् ॥
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