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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 131

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 14
    सूक्त - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अश्व॑त्थ॒ खदि॑रो ध॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्व॑त्थ॒ । खदि॑र: । ध॒व: ॥१३१.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वत्थ खदिरो धवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वत्थ । खदिर: । धव: ॥१३१.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 14

    भाषार्थ -
    তদনন্তর সদ্গুরু মানো উপাসককে বলে, (অশ্বত্থ) হে মনরূপী-অশ্বের অধিষ্ঠাতা! (খদিরঃ) তুমি রাজস এবং তামস বৃত্তির বিনাশ করে নিয়েছো/করেছো, (ধবঃ) তুমি ধবল অর্থাৎ পরিশুদ্ধ সাত্ত্বিক চিত্তবৃত্তিসম্পন্ন হয়ে গেছ/হয়েছো। অতঃ—

    - [খদিরঃ=খদতি হিনস্তীতি (উণাদি কোষ ১.৫৩)।]

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