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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 10
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - प्राजापत्या गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    1

    तस्मा॒ उदी॑च्यादि॒शः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मै॑ । उदी॑च्या: । दि॒श: ॥४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मा उदीच्यादिशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मै । उदीच्या: । दिश: ॥४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 4; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (उदीच्याः दिशः) उत्तरवाली दिशा से ॥१०॥

    भावार्थ

    मन्त्र १-३ के समान है॥१०-–१२॥

    टिप्पणी

    १०−(उदीच्याः)उत्तरायाः। अन्यद्गतम् ॥

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    विषय

    उदीच्याः दिशः

    पदार्थ

    १. (तस्मै) = उस व्रात्य के लिए (उदीच्याः दिश:) = उत्तर दिशा से सब देवों ने (शारदौ मासौ) = शरद् ऋतु के दो मासों को (गोसतारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाया, (च) = तथा (श्यैतम्) = क्रियाशीलता को (नौधसं च) = और प्रभु-स्तवन को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाया। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इसप्रकार क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन के महत्त्व को समझता है (एनम्) = इस व्रात्य विद्वान् की (उदीच्या: दिश:) = उत्तर दिशा से (शारदौ मासौ) = शरद् ऋतु के दो मास (गोपायत:) = रक्षित करते हैं (च) = और (श्यैतं नौधसं च) = क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन विहित कार्यों के सिद्ध करने में प्रवृत्त करते हैं।

    भावार्थ

    व्रात्य विद्वान् उत्तर दिशा की ओर से शरद् ऋतु के दो मासों से रक्षित किया जाता है तथा क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन इसे विहितकार्यों के अनुष्ठान में प्रवृत्त करते हैं।

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    भाषार्थ

    (तस्मै) उस व्रात्य संन्यासी के लिये (उदीच्याः दिशः) उत्तर की दिशा से:-

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    विषय

    व्रात्य प्रजापति का राजतन्त्र।

    भावार्थ

    (उदीच्या दिशः) उत्तर दिशा से (तस्मै) उस व्रात्य प्रजापति के लिये (शारदौ मासौ) शरद ऋतु के दोनों मासों को (गोप्तारौ) रक्षक (अकुर्वन्) बनाया। (श्यैतं च नौधसं च अनुष्ठातारौ) श्यैत और नौधस दोनों को उसके आज्ञा पालक भृत्य कल्पित किया। (यः एवं वेद) जो इस प्रकार नात्य प्रजापति के स्वरूप को साक्षात् करता है (एनं) उसको (शारदौ मासौ) शरद ऋतु के दोनों मास (उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से (गोपायतः) रक्षा करते हैं। (श्यैतं च नौघसं च) श्येत और नौधस दोनों (अनु तिष्ठतः) उसकी सेवा करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १, ५, ६ (द्वि०) दैवी जगती, २, ३, ४ (प्र०) प्राजापत्या गायत्र्य, १ (द्वि०), ३ (द्वि०) आर्च्यनुष्टुभौ, १ (तृ०), ४ (तृ०) द्विपदा प्राजापत्या जगती, २ (द्वि०) प्राजापत्या पंक्तिः, २ (तृ०) आर्ची जगती, ३ (तृ०) भौमार्ची त्रिष्टुप, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, ५ (द्वि०) प्राजापत्या बृहती, ५ (तृ०), ६ (तु०) द्विपदा आर्ची पंक्तिः, ६ (द्वि०) आर्ची उष्णिक्। अष्टादशर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    For that Vratya, from the northern quarter...

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    Translation

    For him of (from) the northern quarter;

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    Translation

    For him (Vratya) from the northern region.

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    Translation

    They made the two Autumn months his protectors, Vedic knowledge, the exhibitor of the right path, and the knowledge of salvation, the well-wisher of the Rishis, his attendants.

    Footnote

    Autumn months: Asvina, and Kartika, mid-September to mid-November.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(उदीच्याः)उत्तरायाः। अन्यद्गतम् ॥

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