अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 12
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदा प्राजापत्या जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
1
शा॑र॒दावे॑नं॒मासा॒वुदी॑च्या दि॒शो गो॑पायतः श्यै॒तं च॑ नौध॒सं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑॥
स्वर सहित पद पाठशा॒र॒दौ। ए॒न॒म् । मासौ॑ । उदी॑च्या: । दि॒श: । गो॒पा॒य॒त॒: । श्यै॒तम् । च॒ । नौ॒ध॒सम् । च॒ । अनु॑ । ति॒ष्ठ॒त॒: । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥४.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
शारदावेनंमासावुदीच्या दिशो गोपायतः श्यैतं च नौधसं चानु तिष्ठतो य एवं वेद॥
स्वर रहित पद पाठशारदौ। एनम् । मासौ । उदीच्या: । दिश: । गोपायत: । श्यैतम् । च । नौधसम् । च । अनु । तिष्ठत: । य: । एवम् । वेद ॥४.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।
पदार्थ
(शारदौ) शरद् ऋतुवाले (मासौ) दो महीने (उदीच्याः दिशः) उत्तरवाली दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (श्यैतम्) श्यैत् [सद्गति बतानेवाला, वेदज्ञान] (च) और (नौधसम्) नौधस [ऋषियों का हितकारी मोक्षज्ञान] [उसके लिये] (अनु तिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) व्यापक [व्रात्यपरमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१२॥
भावार्थ
मन्त्र १-३ के समान है॥१०-१२॥
टिप्पणी
११, १२−(शारदौ) शरत्सम्बन्धिनावाश्विनकार्त्तिकौ (श्यैतम्) सू० २।२२। श्येत-अण्। श्येतस्य सद्गतेःप्रतिपादकं वेदज्ञानम् (नौधसम्) सू० २।२२। नोधस्-अण्। नोधसाम् ऋषीणां हितकरंमोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
उदीच्याः दिशः
पदार्थ
१. (तस्मै) = उस व्रात्य के लिए (उदीच्याः दिश:) = उत्तर दिशा से सब देवों ने (शारदौ मासौ) = शरद् ऋतु के दो मासों को (गोसतारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाया, (च) = तथा (श्यैतम्) = क्रियाशीलता को (नौधसं च) = और प्रभु-स्तवन को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाया। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इसप्रकार क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन के महत्त्व को समझता है (एनम्) = इस व्रात्य विद्वान् की (उदीच्या: दिश:) = उत्तर दिशा से (शारदौ मासौ) = शरद् ऋतु के दो मास (गोपायत:) = रक्षित करते हैं (च) = और (श्यैतं नौधसं च) = क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन विहित कार्यों के सिद्ध करने में प्रवृत्त करते हैं।
भावार्थ
व्रात्य विद्वान् उत्तर दिशा की ओर से शरद् ऋतु के दो मासों से रक्षित किया जाता है तथा क्रियाशीलता व प्रभु-स्तवन इसे विहितकार्यों के अनुष्ठान में प्रवृत्त करते हैं।
भाषार्थ
(शारदौ) शरद्ऋतु सम्बन्धी (मासौ) दो मास (एनम्) इस श्रद्धालु की (उदीच्या दिशः) उत्तर की दिशा से (गोपायतः) रक्षा करते हैं; (श्यैतम् च) और श्यैतनामक सामगान (नौधसम् च) तथा नौधसनामक सामगान (अनुतिष्ठतः) इस के अनुष्ठानों में सहायक होते हैं (यः) जो व्यक्ति कि (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार जीवनचर्या करता है।
विषय
व्रात्य प्रजापति का राजतन्त्र।
भावार्थ
(उदीच्या दिशः) उत्तर दिशा से (तस्मै) उस व्रात्य प्रजापति के लिये (शारदौ मासौ) शरद ऋतु के दोनों मासों को (गोप्तारौ) रक्षक (अकुर्वन्) बनाया। (श्यैतं च नौधसं च अनुष्ठातारौ) श्यैत और नौधस दोनों को उसके आज्ञा पालक भृत्य कल्पित किया। (यः एवं वेद) जो इस प्रकार नात्य प्रजापति के स्वरूप को साक्षात् करता है (एनं) उसको (शारदौ मासौ) शरद ऋतु के दोनों मास (उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से (गोपायतः) रक्षा करते हैं। (श्यैतं च नौघसं च) श्येत और नौधस दोनों (अनु तिष्ठतः) उसकी सेवा करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१, ५, ६ (द्वि०) दैवी जगती, २, ३, ४ (प्र०) प्राजापत्या गायत्र्य, १ (द्वि०), ३ (द्वि०) आर्च्यनुष्टुभौ, १ (तृ०), ४ (तृ०) द्विपदा प्राजापत्या जगती, २ (द्वि०) प्राजापत्या पंक्तिः, २ (तृ०) आर्ची जगती, ३ (तृ०) भौमार्ची त्रिष्टुप, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, ५ (द्वि०) प्राजापत्या बृहती, ५ (तृ०), ६ (तु०) द्विपदा आर्ची पंक्तिः, ६ (द्वि०) आर्ची उष्णिक्। अष्टादशर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
The two autumn months, from the northern quarter, protect him, and Shaitam and Naudhasam fulfil his wish and will, whoecer knows this.
Translation
The two autumn months protect (him) from the northern quarter and the syaita and the naudhasa Sámans attend him, who knows it thus.
Translation
Protect and superintendent respectively two months of autumn and Shyeta and Vairaj saman from northern region the man who possesses the knowledge of this.
Translation
For him from the region of the nadir.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११, १२−(शारदौ) शरत्सम्बन्धिनावाश्विनकार्त्तिकौ (श्यैतम्) सू० २।२२। श्येत-अण्। श्येतस्य सद्गतेःप्रतिपादकं वेदज्ञानम् (नौधसम्) सू० २।२२। नोधस्-अण्। नोधसाम् ऋषीणां हितकरंमोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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