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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - प्राजापत्या पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    1

    ग्रैष्मौ॒ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन्यज्ञाय॒ज्ञियं॑ च वामदे॒व्यं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग्रैष्मौ॑ । मासौ॑ । गो॒प्तारौ॑ । अकु॑र्वन् । य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॑म् । च॒ । वा॒म॒ऽदे॒व्यम् । च॒ । अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑ ।४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ग्रैष्मौ मासौगोप्तारावकुर्वन्यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं चानुष्ठातारौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ग्रैष्मौ । मासौ । गोप्तारौ । अकुर्वन् । यज्ञायज्ञियम् । च । वामऽदेव्यम् । च । अनुऽस्थातारौ ।४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

    पदार्थ

    (ग्रैष्मौ) घामवाले [ज्येष्ठ-आषाढ़] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (यज्ञायज्ञियम्) सब यज्ञों के हितकारी [वेदज्ञान] को (चच) और (वामदेव्यम्) वामदेव [श्रेष्ठ परमात्मा] से जताये गये [भूतपञ्चक] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥५॥

    भावार्थ

    मन्त्र १-३ के समान है॥४-६॥

    टिप्पणी

    ५, ६−(ग्रैष्मौ)ग्रीष्म-अण्। निदाघसम्बन्धिनौ ज्येष्ठाषाढौ (मासौ) (यज्ञायज्ञियम्)व्याख्यातम्-सू० ३ म० ५ (वामदेव्यम्) गतम्-सू० ३ म० ५। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    दक्षिणायाः दिशः

    पदार्थ

    १. (तस्मै) = इस व्रात्य के लिए (दक्षिणायाः दिश:) = दक्षिणा दिक से सब देवों ने (ग्रैष्मौ मासौ) = ग्रीष्म ऋतु के दो मासौ को (गोपतारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाया, (च) = तथा (यज्ञायज्ञियम्) = यज्ञों के साधक वेदज्ञान को (वामदेव्यं च) = सुन्दर दिव्यगुणों की साधक ईश-उपासना को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाया। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार 'यज्ञायज्ञिय व वामदेव्य' के महत्त्व को समझता है, (एनम्) = इस व्रात्य को (दक्षिणाया दिश:) = दक्षिण दिक् से (ग्रैष्मौ मासौ गोपायत:) = ग्रीष्म ऋतु के दो मास रक्षित करते हैं,(च) = तथा (यज्ञायज्ञियम्) = यज्ञों का साधक वेदज्ञान (वामदेव्यं च) = सुन्दर दिव्यगुणों का साधन प्रभु-पूजन (अनुतिष्ठत:) = विहित कार्यों को सिद्ध कराते हैं।

    भावार्थ

    व्रात्य को ग्रीष्मर्तु के दो मास दक्षिण दिशा से रक्षित करते हैं और 'यज्ञसाधक वेदज्ञान तथा सुन्दर दिव्यगुणों का साधन व प्रभु-पूजन' विहित कर्मों में प्रवृत्त करते हैं।

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    भाषार्थ

    (ग्रैष्मौ) ग्रीष्म ऋतु के (मासौ) दो मासों को [वैदिक विधियों ने] (गोप्तारौ) व्रात्य के लिये रक्षक (अकुर्वन्) निर्दिष्ट किया है, (यज्ञायज्ञियम् च) और यज्ञायज्ञिय नामवाले सामगान को (वामदेव्यम् च) तथा वामदेव्य नाम वाले सामगान को (अनुष्ठातारौ) व्रात्य संन्यासी के अनुष्ठानों को सिद्ध करने वाला निर्दिष्ट किया है।

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    विषय

    व्रात्य प्रजापति का राजतन्त्र।

    भावार्थ

    (तस्मै) उस व्रात्य के (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से (ग्रैष्मौ मासौ) ग्रीष्म के दोनों मासों को (गोप्तारौ अकुर्वन्) गोप्ता, अङ्गरक्षक कल्पित किया (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च अनुष्टातारौ) यज्ञायज्ञिय और वामदेव्य इन दोनों को भृत्य कल्पित किया (यः एवं वेद) जो इस प्रकार के वात्य प्रजापति के स्वरूप को साक्षात् जान लेता है (एनं) उस को (ग्रैष्मौ मासौ) ग्रीष्म के दोनों मास (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से (गोपायतः) रक्षा करते हैं और (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च) यज्ञायज्ञिय और वामदेव्य दोनों उसकी (अनु तिष्ठतः) आज्ञा पालन करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १, ५, ६ (द्वि०) दैवी जगती, २, ३, ४ (प्र०) प्राजापत्या गायत्र्य, १ (द्वि०), ३ (द्वि०) आर्च्यनुष्टुभौ, १ (तृ०), ४ (तृ०) द्विपदा प्राजापत्या जगती, २ (द्वि०) प्राजापत्या पंक्तिः, २ (तृ०) आर्ची जगती, ३ (तृ०) भौमार्ची त्रिष्टुप, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, ५ (द्वि०) प्राजापत्या बृहती, ५ (तृ०), ६ (तु०) द्विपदा आर्ची पंक्तिः, ६ (द्वि०) आर्ची उष्णिक्। अष्टादशर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    The Devas made the two summer months his security guards, and Yajnayajniyam and Vamadevyam, his assistants to carry out his will and command.

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    Translation

    They made the two summer-months protectors and the yajnayajnia and the vamadevya Sámans attendants.

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    Translation

    Make two months of summer the protectors and Yajnayajniya and Vamdevya the superintendents.

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    Translation

    The two summer months protect him from the southern region, Vedic knowledge, the well-farerer of sacrifices, and the five elements created by God, serve the man who possesses this knowledge of God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५, ६−(ग्रैष्मौ)ग्रीष्म-अण्। निदाघसम्बन्धिनौ ज्येष्ठाषाढौ (मासौ) (यज्ञायज्ञियम्)व्याख्यातम्-सू० ३ म० ५ (वामदेव्यम्) गतम्-सू० ३ म० ५। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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