अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 13
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - दैवी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
1
तस्मै॑ध्रु॒वाया॑ दि॒शः ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑ । ध्रु॒वाया॑: । दिश॑: ॥४.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मैध्रुवाया दिशः ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मै । ध्रुवाया: । दिश: ॥४.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (ध्रुवायाः दिशः) नीची दिशा से ॥१३॥
भावार्थ
मन्त्र १-३ के समान है॥१३-१५॥
टिप्पणी
१३−(तस्मै) (ध्रुवायाः) अधोभवायाः (दिशः) ॥१३॥
विषय
ध्रुवायाः दिशः
पदार्थ
१. (तस्मै) = उस व्रात्य विद्वान् के लिए (ध्रुवायाः दिश:) = ध्रुव दिशा से (हैमन्तौ मासौ) = हेमन्त ऋतु के दो मासों को सब देवों ने (गोप्तारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाया तथा (भूमिं च अग्निं च) = इस भूमिरूप शरीर को तथा शरीर में स्थित अग्निरूप शक्ति को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाया। इस व्रात्य का शक्तिसम्पन्न शरीर विहितानुष्ठान में प्रवृत्त हुआ। २. (य:) = जो व्रात्य (एवं वेद) = इसप्रकार भूमि व अग्नि के प्रयोजन को समझता है (एनम्) = इस व्रात्य को (हेमन्तौ मासौ) = हेमन्त ऋतु के दो मास (ध्रुवायाः दिश:) = ध्रुवा दिशा से (गोपायत:) = रक्षित करते हैं और (भूमिः च अग्निः च अनुतिष्ठत:) = शरीर व शरीरस्थ शक्ति विहित कर्मों के अनुष्ठान में प्रवृत्त करते हैं।
भावार्थ
व्रात्य विद्वान् ध्रुवा दिशा से हेमन्त ऋतु के दो मासों द्वारा रक्षित होता है तथा इस विद्वान् को शक्तिसम्पन्न शरीरविहित कार्य के अनुष्ठान में समर्थ करता है।
भाषार्थ
(तस्मै) उस संन्यासी के लिये (ध्रुवाया दिशः) ध्रुव अर्थात् भूमि की दिशा से:-
विषय
व्रात्य प्रजापति का राजतन्त्र।
भावार्थ
(ध्रुवाया: दिशा:) ध्रुवा = नीचे की दिशा से (तस्मै) उसके लिये (हैमनौ मासौ) हेमन्त ऋतु के दोनों मासों को (गोप्तारौ अकुर्वन्) रक्षक कल्पित किया। (भूमिं च अग्निम् च अनुष्टातारौ) भूमि और अग्नि को उसके भृत्य कल्पित किया। (यः एवं वेदं) जो व्रात्य प्रजापति के इस प्रकार के स्वरूप को साक्षात् कर लेता है (एनम्) उसको (हैमनौ मासौ) हेमन्त ऋतु के दोनों मास (ध्रुवायाः दिशः) ‘ध्रुवा’ दिशा, अर्थात् भूमि की ओर से, नीचे से (गोपायतः) रक्षा करते हैं और (भूमिः च) भूमि और (अग्निः च) अग्नि (अनु तिष्ठतः) उसके भृत्य के समान काम करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१, ५, ६ (द्वि०) दैवी जगती, २, ३, ४ (प्र०) प्राजापत्या गायत्र्य, १ (द्वि०), ३ (द्वि०) आर्च्यनुष्टुभौ, १ (तृ०), ४ (तृ०) द्विपदा प्राजापत्या जगती, २ (द्वि०) प्राजापत्या पंक्तिः, २ (तृ०) आर्ची जगती, ३ (तृ०) भौमार्ची त्रिष्टुप, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, ५ (द्वि०) प्राजापत्या बृहती, ५ (तृ०), ६ (तु०) द्विपदा आर्ची पंक्तिः, ६ (द्वि०) आर्ची उष्णिक्। अष्टादशर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
For that Vratya, from the lower direction...
Translation
For him of (from) the nadir quarter,
Translation
For him (Vratya) from the region below.
Translation
They made the two Winter months his protectors, and earth and fire his attendants.
Footnote
Winter months: Agrahayana and Pausha, mid-November to mid-January.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(तस्मै) (ध्रुवायाः) अधोभवायाः (दिशः) ॥१३॥
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