Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    7

    तमि॑तिहा॒सश्च॑पुरा॒णं च॒ गाथा॑श्च नाराशं॒सीश्चा॑नु॒व्यचलन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । इ॒ति॒ह॒ऽआ॒स: । च॒ । पु॒रा॒णम् । च॒ । गाथा॑: । च॒ । ना॒रा॒शं॒सी: । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥६.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमितिहासश्चपुराणं च गाथाश्च नाराशंसीश्चानुव्यचलन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । इतिहऽआस: । च । पुराणम् । च । गाथा: । च । नाराशंसी: । च । अनुऽव्यचलन् ॥६.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इतिहासः) इतिहास [बड़े लोगों का वृत्तान्त] (च च) और (पुराणम्) पुराण [पुराने लोगों कावृत्तान्त] (च) और (गाथाः) गाथाएँ [गाने योग्य वेदमन्त्र, शिक्षाप्रद श्लोकआदि] (च) और (नाराशंसीः) नाराशंसी [वीर नरों की गुणकथाएँ] (तम्) उस [व्रात्यपरमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे चलीं ॥११॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥

    टिप्पणी

    ११, १२−(तम्)व्रात्यम् (इतिहासः) इतिह पारम्पार्य्योपदेश आस्तेऽस्मिन्। इतिह+आस उपवेशनेविद्यमानतायां च-घञ्। महापुरुषाणां वृत्तान्तः (च) (पुराणम्) प्राचीनपुरुषाणांवृत्तान्तः (च) (गाथाः) उपिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। गै गाने-थन्। गानयोग्यावेदमन्त्राः। शिक्षाप्रदाः श्लोकादयः (नाराशंसीः) अ० १४।१।७। नर+शंसुस्तुतौ-अण्। दीर्घश्च, ततः स्वार्थे-अण्, ङीप्। येन नराः प्रशस्यन्ते स नाराशंसोमन्त्रः-निरु० ९।९। वीरनराणां कीर्तनानि (अनुव्यचलन्) अनुसृत्य व्यचरन्। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बृहती दिशा में 'इतिहास, पुराण, गाथा और नाराशंसी'

    पदार्थ

    १. (सः) = वह व्रात्य (बृहती दिशं अनुव्यचलत्) = बृहती दिशा-वृद्धि की दिशा का लक्ष्य करके चला। (तम्) = उस बृहती दिशा में चलनेवाले व्रात्य को (इतिहासः पुराणं च) = सृष्टि-उत्पत्ति आदि का नित्य इतिहास और जगदुत्पत्ति आदि का वर्णनरूप पुराण (च) = तथा (गाथा: नाराशंसी: च) = किसी का दृष्टान्त-दान्तिरूप कथा-प्रसंग कहनारूप गाथाएँ तथा मनुष्यों के प्रसंशनीय कर्मों का कहनारूप नाराशंसी (अनुव्यचलन्) = अनुकूलता से प्राप्त हुई। इनके द्वारा ही वस्तुत: वह वेद व्याख्यान को सुन्दरता से कर पाया। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इतिहास आदि के महत्त्व को समझता है, (सः) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (इतिहासस्य पुराणस्य च) = इतिहास व पुराण का (च) = तथा (गाथानां नाराशंसीनां च) = गाथाओं व नाराशंसियों का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय धाम होता है। इनके द्वारा वह वेद को खूब व्याख्यात कर पाता है।

    भावार्थ

    एक व्रात्य विद्वान 'इतिहास, पुराण, गाथा व नाराशंसी' द्वारा वेद का वर्धन व्याख्यान करता हुआ 'बृहती दिक्' की ओर चलता है-वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (तम्, अनु) उस व्रात्य-सन्यासी के अनुकूल या साथ साथ (इतिहासः, च) इतिहास (पुराणाम्, च) और पुराण, (गाथाः, च) गाथाएं, (नाराशंसीः च) और नाराशंसी ऋचाएं (वि, अचलन्) विशेषतया चलीं।

    टिप्पणी

    [पुराणम्=प्रकृति। यथा "यत्र स्कम्भः प्रजनयन् पुराणं व्यवर्तयत्। एकं तदङ्गं स्कम्भस्य पुराणमनु संविदुः" (अथर्व १०।७।२६), अर्थात् जिस सृष्टिरचना काल में, जगदाधार ने सृष्टि का सर्जन करते हुए, "पुराण" में विवर्त्त अर्थात् विविध परिवर्तन किया, वह जगदाधार का एक अङ्ग अर्थात् साधन था, जिसे कि वेदवेत्ता "पुराण" शब्द द्वारा जानते हैं। इस प्रकार "पुराणम्" पद द्वारा पौराणिक साहित्य अभिप्रेत नहीं, अपितु जगत् का उपादान कारण प्रकृति अभिप्रेत है। इतिहासः= "येत आसीद्भूमिः पूर्वा यामद्धातय इद्विदुः। यो वै तां विद्यान्नामथा स मन्येत पुराणवित् ॥" (अथर्व० ११।८।७), अर्थात् जो भूमि इस अर्थात् वर्तमान अवस्था से पूर्वावस्था की थी, जिसे कि सत्पथगामी ही जानते हैं। जो कोई उसे और उसके परिणामों के विविध प्रकारों को जानता है, वह अपने आप को पुराणवेत्ता माने। नामथा= नाम (परिणाम)+ था (प्रकारे)। इस मन्त्र में "पुराणवेत्ता" उसे कहा है जोकि इस तथ्य को यथार्थरूप में जानता है कि भूमि का पूर्वरूप क्या था और वह किन परिणामों में से गुजरती हुई इस दृढ़ावस्था में आई है। "येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा" (यजु० ३२।६)। अथर्व० मन्त्र ११।८।७ में इतः आसीद् और पूर्वा शब्द "इतिहास" पद की मानो व्याख्यारूप हैं। इतिहास = इति + ह + आस् (इतः + आसीत् पूर्वा)१। साथ ही यह भी जानना चाहिये कि मन्त्र में भूमि की पूर्वावस्था अर्थात् प्रकृति में लीन हुई अवस्था तथा उसके विविध परिणामों के यथार्थ स्वरूपों के जानने को "इतिहास" या "इतः आसीत् पूर्वा" कहा है, मानुष इतिवृत्तों को वेद की परिभाषा में इतिहास नहीं कहा इसीलिये सृष्टि के पुरावृत्तों के जानने वाले को ही इतिहासविद् या पुराणविद् कहना चाहिये। “पुराण" शब्द प्रकृति के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रकृति और प्रकृति के परिणामों को जानने वाले को ही वेद में इतिहासविद् या पुराणविद् जानना चाहिए। इसलिये वेद में जहां इतिहास पद मिले वहां नित्य इतिहास ही जानना न कि अनित्य मानुष इतिहास। प्रकृति विज्ञाता = पुराणविद्। सृष्टि विज्ञाता = इतिहासविद्। अद्धातयः= अद्धा सत्यनाम (निघं० ३।१०) + अत सातत्यगमने अर्थात् सत्यानुगामी ना यथा = नाम (परिणाम) + था प्रकारे। “प्रकारवचनेथाल्" (अष्टा० ५।३।३३)। गाथाः=सम्भवतः सामगान। "सूर्याया भद्रमिद्वासो गाथयति परिष्कृता" (अथर्व० १४।१।७)। सूर्या के विवाह सम्बन्धी यह मन्त्र है। इसमें दर्शाया है कि विवाह के समय सूर्या के वस्त्र भद्रजनोचित होने चाहियें, तथा उसे "गाथा" अर्थात् संगीत में या सामगान में प्रवीण होना चाहिये। तथा “इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। "इन्द्र वाणीरनूषत" (अथर्व० २०।१८।४; ४७।४; ७०।७) में दर्शाया है कि अर्कों अर्थात् ऋग्वेदी अर्कों अर्थात् ऋचायों द्वारा, और [यजुर्वेदी] यजुर्वेद की वाणियों द्वारा इन्द्र की स्तुति करते हैं, तथा "गाथा वाले" भी इन्द्र के प्रति "बृहत्-साम" का स्तवन करते हैं। इस द्वारा यह स्पष्ट होता है कि गाथा से अभिप्राय सामगानों का है, क्योंकि "बृहत्" सामगान ही है। ''गाथा" पर महर्षि दयानन्द लिखते हैं कि "गीयते या सा गाथा" (उणा ० २।४)। इस से भी ज्ञात होता है कि गाथा का सम्बन्ध गान से होता है। नाराशंसीः= निरुक्त के अनुसार "नाराशंस" पद "मन्त्र" वाचक है। यथा “नाराशंसो मन्त्रः" "येन नराः प्रशस्यन्ते स नाराशंसो मन्त्रः" (९।१।१०)। तथा अनादिष्ट देवता का मन्त्राः "नाराशंसा इति नैरुक्ताः” (७।१।४), अर्थात् जिन मन्त्रों में देवता का कथन नहीं हुआ वे नाराशंस देवताके हैं, उन में नरनारियों के व्यवहारों का आशंस अर्थात् कथन जानना चाहिये। यथा- विवाहसम्बन्धी, वर्णाश्रमधर्मों के कथन सम्बन्धी, उपासना तथा मोक्षादि सम्बन्धी मन्त्र। नाराशंसीः पद स्त्रीलिङ्ग में है, इस लिये "नरनारी सम्बन्धी ऋचाएं" ऐसा अर्थ इस पद का करना चाहिये। सूर्या सूक्त के विवाहमन्त्रों में "नाराशंसी न्योचनी" (अथर्व० १४।१।७) में न्योचनी का अर्थ है "साथ साथ रहने वाली", नि (नितराम्) + ओचनी (उच समवाये)। नर नारियों के विवाह सम्बन्धी ऋचाओं का सूर्या के साथ सदा रहना भावपूर्ण है, ताकि उसे गृहस्थ सम्बन्धी कर्त्तव्यों का सदा स्मरण रहे। इतिहास पुराण आदि उद्देश्यों को इसलिये "बृहती-दिश्" कहा है कि इन उद्देश्यों में सृष्टि के मूलकारण प्रकृति, सृष्टि रचना के अवान्तर प्रकारों, आध्यात्मिक सामगानों, तथा मनुष्योचित कर्त्तव्यों तथा सृष्टिकर्ता परमेश्वर का समावेश हुआ है, ओर ये उद्देश्य ही चारों वेदों के सारभूत विषय हैं।] [१. इत आसीत्= इत+हा+सीत्=इत्+ई+हास=इतिहास। "इत आसीत्" में "आ" के स्थान में "हा" हुआ है। अ और ह का एक ही स्थान है। "अकुहविसर्जनीयाः कण्ठ्याः, तथा स्थानेऽन्तरतमः"]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    व्रात्य प्रजापति का प्रस्थान।

    भावार्थ

    (सः) वह (बृहतीं दिशम् अनुव्यचलत्) ‘बृहती’ दिशा को चला। (११) (तम् इतिहासः च, पुराणं च गाथाः च, नाराशंसीः च अनु वि-अवलन्) उसके पीछे पीछे इतिहास, पुराण, गाथाएं और नाराशंसिय भी चलीं। (१२) (यः एवं वेद) जो इस प्रकार जानता है (सः वै इतिहासस्य च, पुराणस्य च गाथानां च नाराशंसीनां च प्रियं धाम भवति) वह निश्चय ही इतिहास पुराण, अर्थात् सृष्टि विषयक पुरातन ऐतिह्य, गाथा और नाराशंसियों का भी प्रिय आश्रय हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ प्र०, २ प्र० आसुरी पंक्तिः, ३-६, ९ प्र० आसुरी बृहती, ८ प्र० परोष्णिक्, १ द्वि०, ६ द्वि० आर्ची पंक्तिः, ७ प्र० आर्ची उष्णिक्, २ द्वि०, ४ द्वि० साम्नी त्रिष्टुप्, ३ द्वि० साम्नी पंक्तिः, ५ द्वि०, ८ द्वि० आर्षी त्रिष्टुप्, ७ द्वि० साम्नी अनुष्टुप्, ६ द्वि० आर्ची अनुष्टुप्, १ तृ० आर्षी पंक्तिः, २ तृ०, ४ तृ० निचृद् बृहती, ३ तृ० प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ तृ०, ६ तृ० विराड् जगती, ७ तृ० आर्ची बृहती, ९ तृ० विराड् बृहती। षड्विंशत्यृचं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Him followed History, Purana, ancient stories of knowledge and action, Gathas, poems of celebration, and Narashansis, celebrations of heroes and divinities.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Itihasa (history) and Purana (stories of ancient times), Gáthás (legends) and Narasansas (biographies of men) started following him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The itihasa, Purana, Gatha and Narashansi follow him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He who possesses this Knowledge of God, becomes the dear home of the story of great men, and the history of ancient people, and the versified Vedic texts, and the eulogistic legends of heroes.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११, १२−(तम्)व्रात्यम् (इतिहासः) इतिह पारम्पार्य्योपदेश आस्तेऽस्मिन्। इतिह+आस उपवेशनेविद्यमानतायां च-घञ्। महापुरुषाणां वृत्तान्तः (च) (पुराणम्) प्राचीनपुरुषाणांवृत्तान्तः (च) (गाथाः) उपिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। गै गाने-थन्। गानयोग्यावेदमन्त्राः। शिक्षाप्रदाः श्लोकादयः (नाराशंसीः) अ० १४।१।७। नर+शंसुस्तुतौ-अण्। दीर्घश्च, ततः स्वार्थे-अण्, ङीप्। येन नराः प्रशस्यन्ते स नाराशंसोमन्त्रः-निरु० ९।९। वीरनराणां कीर्तनानि (अनुव्यचलन्) अनुसृत्य व्यचरन्। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top