अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नी पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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तमृच॑श्च॒सामा॑नि च॒ यजूं॑षि च॒ ब्रह्म॑ चानु॒व्यचलन् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऋच॑: । च॒ । सामा॑नि । च॒ । यजूं॑षि । च॒ । ब्रह्म॑ । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥६.८॥
स्वर रहित मन्त्र
तमृचश्चसामानि च यजूंषि च ब्रह्म चानुव्यचलन् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । ऋच: । च । सामानि । च । यजूंषि । च । ब्रह्म । च । अनुऽव्यचलन् ॥६.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पदार्थ
(ऋचः) ऋग्वेद कीऋचाएँ [अर्थात् पदार्थों के गुण बतानेवाले मन्त्र] (च च) और (सामानि) सामवेद केमन्त्र [अर्थात् मोक्षप्रतिपादक मन्त्र] (च) और (यजूंषि) यजुर्वेद के मन्त्र [अर्थात् सत्कर्मप्रकाशक ज्ञान] (च) और (ब्रह्म) अथर्ववेद [अर्थात्ब्रह्मज्ञान] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे चले ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य वेदों मेंप्रतिपादित ईश्वरीय ज्ञान को ऊँचे से ऊँचे स्थान में साक्षात् करके उन्नति करताहुआ मोक्षानन्द भोगता है ॥७, ८, ९॥
टिप्पणी
८, ९−(तम्) व्रात्यम् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशका मन्त्राः (सामानि) मोक्षप्रतिपादकमन्त्राः (यजूंषि) सत्कर्मप्रकाशकज्ञानानि (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानप्रतिपादकोऽथर्ववेदः।अन्यद् गतं सुगमं च ॥
विषय
ऊर्ध्वा दिक् में 'ऋक्, यजुः, सत्य व ब्रह्म [अथर्व]'
पदार्थ
१. (स:) = वह व्रात्य (उत्तमां दिशं अनुव्यचलत्) = उत्तमादिक् का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। उसने जीवन को उत्तम बनाने का दृढ़ संकल्प किया (तम्) = उस उत्तमादिक् की ओर गतिवाले व्रात्य को (ऋचः च सामानि च) = ऋचाएँ व साम-विज्ञानमन्त्र व उपासनामन्त्र (च) = तथा (यजूंषि च ब्रह्म च) = यज्ञ-प्रतिपादक मन्त्र तथा ब्रह्मज्ञान देनेवाले अथर्वमन्त्र (अनुव्यचलन्) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (ऋचां च साम्नांच) = ऋचाओं और साममन्त्रों का (च) = और (यजुषां ब्रह्मणश्च) = यज्ञ प्रतिपादक मन्त्रों व ब्रह्मज्ञानप्रद मन्त्रों का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है, (यः) = जो व्रात्य (एवं वेद) = इसप्रकार उत्तमा दिक् में अनुकूलता से गति का विचार करता है।
भावार्थ
उत्तमादिक में गति का संकल्प करनेवाला व्रात्य 'प्राक्, यजुः, साम व अथर्व [ब्रह्म]' मन्त्रों का प्रिय स्थान बनता है। इनके द्वारा ही तो उसने जीवन को उत्तम बनाना है।
भाषार्थ
(तम्, अनु) व्रात्य संन्यासी के साथ साथ या अनुकूल (ऋचः, च) ऋग्वेद के मन्त्र (सामानि, च) और सामवेद के मन्त्र (यजूंषि, च) यजुर्वेद के मन्त्र, (ब्रह्म, च) और ब्रह्म प्रतिपादक अथर्ववेद (वि अचलन्) विशेषतया चले। "ब्रह्म "से अभिप्राय ऋग्वेदादि द्वारा प्रतिपाद्य परमेश्वर भी सम्भव है।
टिप्पणी
[मन्त्र द्वारा व्रात्य-संन्यासी के लिए, वेदस्वाध्याय तथा वेद प्रचार का निर्देश हुआ है। ये दोनों कार्य उत्तम हैं, उत्कृष्ट हैं। तभी महर्षि दयानन्द ने नियम बनाया कि "वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्यो (अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों) का परमधर्म है" (आर्यसमाज के नियम, संख्या ३)। तथा, "वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है" (नियम, संख्या २)]।
विषय
व्रात्य प्रजापति का प्रस्थान।
भावार्थ
(सः उत्तमाम् दिशम् अनु-वि अचलत्) वह व्रात्य प्रजापति उत्तमा=सब से अधिक ऊंची दिशा की ओर चला (तम्) उसके पीछे पीछे (ऋचः च, सामानि च, यजूंषि च, ब्रह्म च अनु वि-अचलन्) ऋग्वेद के सन्त्र, साम गायन मन्त्र, यजुर्मन्त्र और बह्मवेद, अर्थात् अथर्ववेद के मन्त्र चले। (यः एवं वेद) जो व्रात्य के इस प्रकार के स्वरूप को साक्षात् करता है (ऋचां सः, साम्नां च, यजुषां च, ब्रह्मणः च, प्रियं धाम भवति) वह ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के मंत्रों का प्रिय आश्रय होजाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ प्र०, २ प्र० आसुरी पंक्तिः, ३-६, ९ प्र० आसुरी बृहती, ८ प्र० परोष्णिक्, १ द्वि०, ६ द्वि० आर्ची पंक्तिः, ७ प्र० आर्ची उष्णिक्, २ द्वि०, ४ द्वि० साम्नी त्रिष्टुप्, ३ द्वि० साम्नी पंक्तिः, ५ द्वि०, ८ द्वि० आर्षी त्रिष्टुप्, ७ द्वि० साम्नी अनुष्टुप्, ६ द्वि० आर्ची अनुष्टुप्, १ तृ० आर्षी पंक्तिः, २ तृ०, ४ तृ० निचृद् बृहती, ३ तृ० प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ तृ०, ६ तृ० विराड् जगती, ७ तृ० आर्ची बृहती, ९ तृ० विराड् बृहती। षड्विंशत्यृचं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Him followed the Rks, Samans, Yajus, and the verses of Atharva-veda.
Translation
Rk verses and-Saman chants, yajus (sacrificial formulas) and the sacred knowledge started following him.
Translation
The verses of Rigveda, the Sama Veda. the verses of Yajurveda and Brahma, the Atharvaveda follow him.
Translation
He who possesses this knowledge of God becomes the dear home of Rigveda, and Samaveda, and Yajurveda, and Atharvaveda.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८, ९−(तम्) व्रात्यम् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशका मन्त्राः (सामानि) मोक्षप्रतिपादकमन्त्राः (यजूंषि) सत्कर्मप्रकाशकज्ञानानि (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानप्रतिपादकोऽथर्ववेदः।अन्यद् गतं सुगमं च ॥
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