Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 24
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    0

    ससर्वा॑नन्तर्दे॒शाननु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । सर्वा॑न् । अ॒न्त॒:ऽदे॒शान् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ससर्वानन्तर्देशाननु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । सर्वान् । अन्त:ऽदेशान् । अनु । वि । अचलत् ॥६.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (सर्वान्) सब (अन्तर्देशान् अनु) भीतरी देशों की ओर (वि अचलत्) विचरा॥२४॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् पुरुषगहरे विचार से यह देखते हैं कि संसार में सब लोग परब्रह्म परमात्मा की आज्ञामानने से बड़े हुए हैं, वे ही ईश्वर की आज्ञा में रहकर उन्नति करते और आनन्दभोगते हैं ॥२४-२६॥

    टिप्पणी

    २४-२६−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (तम्) व्रात्यम् (प्रजापतिः) प्रजापालकोराजा (परमेष्ठी) उच्चपदस्थ आचार्यः संन्यासी वा (पिता) जनकः (पितामहः) पितुःपिता। अन्यत् पूर्ववद् यथोचितं योजनीयं च ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजापति परमेष्ठी तथा पिता, पितामह

    पदार्थ

    १. (सः) = वह व्रात्य (सर्वान् अन्तर्देशान् अनुव्यचलत्) = सब अन्तर्देशों में-दिशाओं के मध्यमार्गों में अनुकूलता से गतिवाला हुआ। अविरोध से यह अपने मार्ग पर बढ़नेवाला बना (च) = और (तम्) = उस व्रात्य को (प्रजापतिः च) = प्रजारक्षक प्रभु (परमेष्ठी च) = सर्वोपरि स्थान में स्थित प्रभु पिता च पितामहः च-पिता और पितामह (अनुव्यचलन्) = अनुकूलता से प्रास हुए, अर्थात् इस ब्रात्य को प्रभु व पिता उत्तम प्रेरणा देनेवाले बने। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इसप्रकार अविरोध से सब अन्तर्देशों में चलने के महत्व को समझ लेता है, (स:) = वह व्रात्य वै-निश्चय से (प्रजापते:) = प्रजारक्षक प्रभु का (परमेष्ठिन: च) = और परम स्थान में स्थित प्रभु का (च) = और (पितुः पितामहस्य च) = पिता व पितामह का प्(रियं धाम भवति) = प्रिय धाम बनता है।

    भावार्थ

    एक व्रात्य विद्वान् सब अन्तर्देशों में [दिङ्मयों में] अविरोध से चलता हुआ सर्वरक्षक व सर्वश्रेष्ठ प्रभु का तथा पिता व पितामह का प्रिय बनता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सः) वह व्रात्य-संन्यासी (सर्वान्) सब (अन्तर्देशान्) अवान्तर निर्देशों (अनु) लक्ष्य कर के (व्यचलत्) विशेषतया चला।

    टिप्पणी

    [अन्तर्देशान्= योग के गौण निर्देशों अर्थात् शौच, सन्तोष, तपः, स्वाध्याय आदि। मन्त्र २३ तक योग के मुख्य निर्देशों का कथन हुआ है। वर्तमान मन्त्र द्वारा यह कथन किया है कि जीवन्मुक्त योग के मुख्य निर्देशों के साथ साथ गौण निर्देशों का भी पालन करता रहता है]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    व्रात्य प्रजापति का प्रस्थान।

    भावार्थ

    (सः) वह (सर्वान् अन्तर्देशान् अनु व्यचलत्) समस्त भीतरी दिशों में चला। (तम् प्रजापतिः च, परमेष्ठी च, पिता च, पितामहः च अनुव्यचलन्) उसके पीछे प्रजापति, परमेष्ठी, पिता और पितामह भी चले। (यः एवं वेद) जो मनुष्य प्रजापति के इस प्रकार स्वरूप को साक्षात् करता है (सः वै) वह निश्चय से (प्रजापतेः च परमेष्ठिनः च, पितामहस्य च, प्रियं धाम भवति) प्रजापति, परमेष्ठी, पिता और पितामह का प्रिय आश्रय हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ प्र०, २ प्र० आसुरी पंक्तिः, ३-६, ९ प्र० आसुरी बृहती, ८ प्र० परोष्णिक्, १ द्वि०, ६ द्वि० आर्ची पंक्तिः, ७ प्र० आर्ची उष्णिक्, २ द्वि०, ४ द्वि० साम्नी त्रिष्टुप्, ३ द्वि० साम्नी पंक्तिः, ५ द्वि०, ८ द्वि० आर्षी त्रिष्टुप्, ७ द्वि० साम्नी अनुष्टुप्, ६ द्वि० आर्ची अनुष्टुप्, १ तृ० आर्षी पंक्तिः, २ तृ०, ४ तृ० निचृद् बृहती, ३ तृ० प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ तृ०, ६ तृ० विराड् जगती, ७ तृ० आर्ची बृहती, ९ तृ० विराड् बृहती। षड्विंशत्यृचं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    He moved into all the internalities of all directions and space.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He started moving towards all the intermediate regions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He (Vratya) walks towards all the-intermediate spaces of between regions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    God manifested Himself in all the intermediate regions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४-२६−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (तम्) व्रात्यम् (प्रजापतिः) प्रजापालकोराजा (परमेष्ठी) उच्चपदस्थ आचार्यः संन्यासी वा (पिता) जनकः (पितामहः) पितुःपिता। अन्यत् पूर्ववद् यथोचितं योजनीयं च ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top