अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
ऋषिः - प्रजापति
देवता - याजुषी त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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अ॑रि॒प्रा आपो॒अप॑ रि॒प्रम॒स्मत् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒रि॒प्रा: । आप॑: । अप॑ । रि॒प्रन् । अ॒स्मत् ॥१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अरिप्रा आपोअप रिप्रमस्मत् ॥
स्वर रहित पद पाठअरिप्रा: । आप: । अप । रिप्रन् । अस्मत् ॥१.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
दुःख से छूटने का उपदेश।
पदार्थ
(अरिप्राः) निर्दोष (आपः) विद्वान् लोग (रिप्रम्) पाप को (अस्मत्) हम से (अप) दूर [पहुँचावें] ॥१०॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वानों केसत्सङ्ग और शिक्षा से जागते-सोते कभी पाप कर्म का विचार न करें ॥१०, ११॥
टिप्पणी
१०−(अरिप्राः)निर्दोषाः (आपः) म० ८। विपश्चितः (अप) दूरे (रिप्रम्) पापम् (अस्मत्) ॥
विषय
'अरिप्रा:' आप:
पदार्थ
१. (आपः) = [आपः रेतो भूत्वा०] कामाग्नि के शमन से शरीर में सुरक्षित हुए रेत:कण (अरिप्रा:) = निर्दोष हैं [रिप्रम् sin]| शरीर में रेत:कणों का रक्षण होने पर किसी प्रकार की अपवित्रता [Impurity रिप्रम्] उत्पन्न नहीं होती। २. ये सुरक्षित रेत:कण (अस्मत्) = हमसे (रिप्रम् अप) = पापों व अपवित्रता को दूर करें। शरीर में सुरक्षित रेत:कण जहाँ शरीर को पवित्र व निर्मल और अतएव नौरोग रखते हैं, वहाँ ये मन को पापभावना से आक्रान्त नहीं होने देते।
भावार्थ
कामाग्नि का शमन हममें रेत:कणों का रक्षण करे। ये सुरक्षित रेत:कण हमें नीरोग व निर्मल बनाएँ।
भाषार्थ
(अरिप्राः) पापरहित हुए (आपः) शारीरिक द्रव, (अस्मत्) हम से, (रिप्रम्) पाप को (अप) अपगत करें, दूर करें।
टिप्पणी
[रपो रिप्रमिति पापनामनी भवतः (निरु० ४।३।२१)। सात्त्विक भोजन और सत्संग तथा सद्विचारों द्वारा शरीरिक-द्रव पापरहित हो कर, मन को पापरहित करते है]
विषय
पापशोधन।
भावार्थ
(आपः) स्वच्छ जल जिस प्रकार मल रहित होते हैं उसी प्रकार आप्त पुरुष भी (अरिप्राः) मल और पाप से रहित होते हैं। वे (अस्मत्) हम से भी (रिप्रम्) पाप और मल (अप) दूर करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्देवता। १, ३ साम्नी बृहत्यौ, २, १० याजुपीत्रिष्टुभौ, ४ आसुरी गायत्री, ५, ८ साम्नीपंक्त्यौ, (५ द्विपदा) ६ साम्नी अनुष्टुप्, ७ निचृद्विराड् गायत्री, ६ आसुरी पंक्तिः, ११ साम्नीउष्णिक्, १२, १३, आर्च्यनुष्टुभौ त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Let the waters, the flow of will and action, purified and free from sin, dispel sin and evil from us.
Translation
O waters unpolluted, may you remove pollution away from us.(Same as X.5.24)
Translation
Let the pure stainless waters clean from us the contamination.
Translation
May sinless learned persons cleanse us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(अरिप्राः)निर्दोषाः (आपः) म० ८। विपश्चितः (अप) दूरे (रिप्रम्) पापम् (अस्मत्) ॥
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