Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 29 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त
    0

    ज॒हि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे ज॒हि मे॑ पृतनाय॒तः। ज॒हि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ ज॒हि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ज॒हि॒। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। ज॒हि। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। ज॒हि। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। ज॒हि। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जहि दर्भ सपत्नान्मे जहि मे पृतनायतः। जहि मे सर्वान्दुर्हार्दो जहि मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जहि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। जहि। मे। पृतनाऽयतः। जहि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। जहि। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति के लक्षण का उपदेश –॥

    पदार्थ

    (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (जहि) नाश कर दे, (मे) मेरे लिये (पृतनायतः) सेना चढ़ा लानेवालों को (जहि) नाश कर दे। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवालों को (जहि) नाश कर दे, (मणे) हे प्रशंसनीय ! (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (जहि) नाश कर दे ॥१॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(जहि) हन हिंसागत्योः। नाशय ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रोग-हनन

    भावार्थ

    शरीर में सुरक्षित वीर्य रोगों को सुदूर विनष्ट करनेवाला होता है।

    सूचना

    प्रस्तुत प्रसंग में साहित्य की 'अभ्यास' शैली का सुन्दर चित्रण हो गया है। एक ही बात को क्रमश: "भिन्डि, छिन्द्धि, वृश्च, कृन्त, पिंश, विध्य, निक्ष, तृन्द्धि, रुन्डि, मृण, मन्थ, पिडि, ओष, दह व जहि' क्रियाओं से कहा गया है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (दर्भ) हे शत्रुविदारक, (मणे) शिरोमणि सेनापति! तू (मे) मेरे (सपत्नान्) आन्तरिक-विद्रोहियों को (जहि) हनन कर (मे) मेरे राष्ट्र पर (पृतनायतः) सेना द्वारा आक्रमण चाहने वालों को (जहि) हनन कर। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट-हार्दिक भावनाओं वालों को (जहि) हनन कर। (मे) मेरे (द्विषतः) द्वेषी=अमित्रों को (जहि) हनन कर।

    टिप्पणी

    [दर्भ= १९.२८.१ मन्त्र में “दर्भ” का निर्वचन कर दिया है। तथा दृणाति विदारयतीति दर्भः (उणा० ३.१५१)=शत्रु के विदारण के कारण सेनापति को दर्भ कहा है। दुर्भाङ्कुर का अग्रभाग कण्टकमय होता है, जो कि पैर का विदारण कर देता है। इस प्रकार रूपक दृष्टि से भी सेनापति को “दर्भ” कहा जा सकता है। जैसे कि बहादुर को “शेर” तथा निर्बुद्धि को “गदहा” कह दिया जाता है। मन्त्र १ से ४ तक में साम-उपायों का वर्णन हुआ है, और मन्त्र ५ से ९ तक दण्ड-उपाय कहे गये हैं।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha Mani

    Meaning

    O Darbha, destroyer of enmities, kill all my rivals, kill all my adversaries. O Mani, kill all the evil hearted ranged against me, kill all the jealous active against me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Destroy, O darbha, my rivals; destroy them who invade me; destroy all my enemies; O blessing destroy them who hate me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let this Darbha slay my foe-men, let it slay them who bear malignancy for me, let it slay those who bear evils for me in their hearts and let it slay those men who bear malice for me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O darbha-mani, put my foes to death and finish those who come with armies to fight with me. Leave no trace of those, who are evil-designed towards me and those who are full of hatred towards me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(जहि) हन हिंसागत्योः। नाशय ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top