अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 10
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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परि॑वृ॒क्ता च॒ महि॑षी स्व॒स्त्या च यु॒धिंग॒मः। अना॑शु॒रश्चाया॒मी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑वृ॒क्ता । च॒ । महि॑षी । स्व॒स्त्या॑ । च । यु॒धिंग॒म: ॥ अना॑शु॒र: । च । आया॒मी । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता ॥१२८.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
परिवृक्ता च महिषी स्वस्त्या च युधिंगमः। अनाशुरश्चायामी तोता कल्पेषु संमिता ॥
स्वर रहित पद पाठपरिवृक्ता । च । महिषी । स्वस्त्या । च । युधिंगम: ॥ अनाशुर: । च । आयामी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(च) जैसे (परिवृक्ता) त्यागे हुए [कर्तव्य छोड़े हुए] (महिषी) पूजनीया गुणवती पत्नी, [वैसे ही] (स्वस्त्या) सुख के साथ [जीव चुराकर] (युधिंगमः) युद्ध से चल देनेवाला, (च च) और (अनाशुरः) आलसी (आयामी) शासन करनेवाला [निकम्मा है], (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥१०॥
भावार्थ
घर आदि कर्तव्य कर्म छोड़ने से गुणवती स्त्री, युद्ध से भागने से शूर, और आलस्य करने से शासक पुरुष निकम्मा है ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(परिवृक्ता) त्यक्ता। स्वकर्तव्यविरक्ता (च) उपमार्थे (महिषी) मह पूजायाम्-टिषच् ङीप्। पूजनीया गुणवती पत्नी (स्वस्त्या) सुखेन। अनायासेन (च) समुच्चये (युधिंगमः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। युध संप्रहारे-इन् कित्+गम्लृ गतौ-खच्, मुम् च। युधेर्युद्धाद् गमनशीलाः पलायनशीलः (अनाशुरः) शावशेराप्तौ। उ० १।४४। अन्+अशू व्याप्तौ-उरन्, स च णित्। अनाशुः। अशीघ्रः। आलस्यवान् (च) (आयामी) आ+यम वेष्टने नियमने णिच्-णिनि। आ समन्ताद् यामयति नियामयति प्रजागणान्। नियन्ता। शासकः। अन्यद् गतम् ॥
विषय
निरादृत युद्धकातर पुरुष
पदार्थ
१. (महिषी) = ऊँचे घर की होती हुई (च) = भी जो स्त्री (परिवृक्ता) = पति से छोड़ी गई है, जैसे वह स्त्री आदर का पात्र नहीं होती, इसी प्रकार वह व्यक्ति भी आदरणीय नहीं होता जो (स्वस्त्या च) = [सु+अस्ति] कल्याणमयी [स्वस्थ] स्थितिवाला होता हुआ भी (अयुधिंगमः) = युद्ध में नहीं जाता। युद्ध में कातरता के कारण न जानेवाला व्यक्ति उसी प्रकार अनादरणीय होता है, जैसेकि कुलीन होती हुई भी पति परित्यक्ता स्त्री आदरणीय नहीं होती। २. (च) = और इसी प्रकार (अनाशुर:) = शीघ्रता से कार्यों को न करनेवाला (आयामी) = समन्तात् नियामक राजा भी आदरणीय नहीं हुआ करता। (ता उ ता) = वे और निश्चय से वे सब (कल्पेषु) = शास्त्रविधानों में (संमिता) = समान माने गये हैं।
भावार्थ
'परित्यक्ता कुलीन स्त्री, स्वस्थ होते हुए भी युद्ध में न जानेवाला तथा शासक होते हुए भी आलसी पुरुष' ये सब शास्त्रविधानों में समान माने गये हैं।
भाषार्थ
(परिवृक्ता च) और पति द्वारा त्यागी गई (महिषी) दुराचारिण स्त्री, (च) और (स्वस्त्या) अपना वैयक्तिक कल्याण चाहनेवाला सुस्त (युधिंगमः) योद्धा, (च) और (अनाशुरः) कार्यों को शीघ्र न करनेवाला (आयामी) दीर्घसूत्री भृत्य, (ता उ ता) ये सब (कल्पेषु) कल्प-कल्पान्तरों में (संमिता) एक समान माने गये हैं—अर्थात् त्याज्य हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Prajapati
Meaning
A great woman, even a queen, but abandoned, a self-interested, ease loving warrior unwilling for battle, a lazy horse and a lazy servant, all these are believed to be unworthy in society, equally unfit for social purposes.
Translation
The-favourite wife neglected the men who safely shuns the fight, a sluggish horse and a man out of control-are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.
Translation
The favorite wife neglected the men who safely shuns the fight, a sluggish horse and a man out of control-are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.
Translation
When the Mighty king fearlessly treads through the kingdoms of allthe ten directions, like a super human being, and becomes the refuge of allpeople against all miseries and trouble and against the incursions of the enemies, certainly he alone becomes fit for the great sacrifice, in the form of the organization of the state-affairs.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(परिवृक्ता) त्यक्ता। स्वकर्तव्यविरक्ता (च) उपमार्थे (महिषी) मह पूजायाम्-टिषच् ङीप्। पूजनीया गुणवती पत्नी (स्वस्त्या) सुखेन। अनायासेन (च) समुच्चये (युधिंगमः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। युध संप्रहारे-इन् कित्+गम्लृ गतौ-खच्, मुम् च। युधेर्युद्धाद् गमनशीलाः पलायनशीलः (अनाशुरः) शावशेराप्तौ। उ० १।४४। अन्+अशू व्याप्तौ-उरन्, स च णित्। अनाशुः। अशीघ्रः। आलस्यवान् (च) (आयामी) आ+यम वेष्टने नियमने णिच्-णिनि। आ समन्ताद् यामयति नियामयति प्रजागणान्। नियन्ता। शासकः। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(চ) যেমন (পরিবৃক্তা) পরিত্যক্ত [কর্তব্য রহিত] (মহিষী) পূজনীয়া গুণবতী পত্নী, [তেমনই] (স্বস্ত্যা) সুখপূর্বক [অনায়াসে] (যুধিঙ্গমঃ) যুদ্ধ থেকে পলায়নকারী, (চ চ) এবং (অনাশুরঃ) অলস (আয়ামী) শাসনকর্তা [নিষ্কর্মা হয়], (তোতা) এই-এই কর্ম (কল্পেষু) শাস্ত্রীয় বিধানে (সংমিতা) প্রমাণিত॥১০॥
भावार्थ
ঘর আদি কর্তব্য কর্ম ত্যাগ করে গুণবতী স্ত্রী, যুদ্ধ থেকে পলায়নকারী বীর এবং অলস শাসক পুরুষ নিষ্কর্মা হয়॥১০॥
भाषार्थ
(পরিবৃক্তা চ) এবং পতি দ্বারা ত্যাজ্য (মহিষী) দুরাচারিণী স্ত্রী, (চ) এবং (স্বস্ত্যা) নিজ বৈয়ক্তিক কল্যাণ কামনাকারী অলস/দুর্বল (যুধিঙ্গমঃ) যোদ্ধা, (চ) এবং (অনাশুরঃ) কার্য করার ক্ষেত্রে অলস (আয়ামী) দীর্ঘসূত্রী ভৃত্য, (তা উ তা) এঁরা সবাই (কল্পেষু) কল্প-কল্পান্তরে (সংমিতা) এক সমান মান্য হয়েছে—অর্থাৎ ত্যাজ্য।
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