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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 16
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    1

    ये त्वा॑ श्वे॒ता अजै॑श्रव॒सो हार्यो॑ यु॒ञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम्। पूर्वा॒ नम॑स्य दे॒वानां॒ बिभ्र॑दिन्द्र महीयते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । त्वा॑ । श्वे॒ता: । अजै॑श्रव॒स: । हार्य॑: । यु॒ञ्जन्ति॒ । दक्षि॑णम् ॥ पूर्वा॒ । नम॑स्य । दे॒वाना॒म् । बिभ्र॑त् । इन्द्र । महीयते ॥१२८.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये त्वा श्वेता अजैश्रवसो हार्यो युञ्जन्ति दक्षिणम्। पूर्वा नमस्य देवानां बिभ्रदिन्द्र महीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । त्वा । श्वेता: । अजैश्रवस: । हार्य: । युञ्जन्ति । दक्षिणम् ॥ पूर्वा । नमस्य । देवानाम् । बिभ्रत् । इन्द्र । महीयते ॥१२८.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (नमस्य) हे नमस्कारयोग्य (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (ये) जो (श्वेताः) चाँदी [आदि धन]वाले, (अजैश्रवसः) अजेय कीर्तिवाले (हार्यः) मनुष्य (दक्षिणम्) चतुर (त्वा) तुझसे (युञ्जन्ति) मिलते हैं, (देवानाम्) विद्वानों की (बिभ्रत्) पोषण करनेवाले (पूर्वा) [उनकी] पुरानी नीति (महीयते) पूजी जाती है ॥१६॥

    भावार्थ

    चतुर राजा धनी विद्वान् मनुष्यों की सुनीति का सदा आदर करे ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(ये) (त्वा) (श्वेताः) श्वेतं रूप्येऽपि रजतम्-अमरे २३।७९। श्वेत-अर्शआद्यच्। श्वेतेन रजतादिधनेन युक्ताः (अजैश्रवसः) अजेय-श्रवसः। अजेयकीर्तयः (हार्यः) वसिवपियजि०। उ० ४।१२। हृञ् हरणे-इञ्। हरयो मनुष्यनाम-निघ० २।३। हरयः। मनुष्याः (युञ्जन्ति) संयोजयन्ति (दक्षिणम्) दक्ष वृद्धौ-इनन्। दक्षम्। कार्यकुशलम् (पूर्वा) प्राचीना नीतिः (नमस्य) हे सत्करणीय (देवानाम्) विदुषाम् (बिभ्रत्) बिभ्रती। पोषणं कुर्वन्ती (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् मनुष्य (महीयते) पूज्यते ॥

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    विषय

    शुद्ध कर्मों में व्यापृत्ति

    पदार्थ

    १. हे (नमस्य) = नमस्कार के योग्य (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (ये) = जो (श्वेता:) = सब मिलनताओं के विनाश से श्वेता [शुद्ध] अतएव (अजैश्रवस:) = अजेय कीर्तिवाले-अत्यन्त प्रशंसनीय (हार्य:) = इन्द्रियाश्व (त्वा) = तुझे (दक्षिणं युञ्जन्ति) = सदा सीधे [वाम से विपरीत] उन्नति के साधक [दक्ष to grow] कर्मों में प्रेरित करते हैं-लगाते हैं तो उस समय आप (देवानाम्) = सब इन्द्रियों के (पूर्वा) = पालन व पूरणात्मक कर्मों को (बिभ्रत्) = धारण करते हुए (महीयते) = महिमावाले होते हैं सब लोग आपका आदर करते हैं।

    भावार्थ

    जब हम इन्द्रियों से सदा उत्तम कार्यों को करने में तत्पर होते हैं तब शुद्ध जीवनवाले बनकर हम महिमा को प्राप्त करते हैं।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ये) जो (श्वेताः) शुभ्र अर्थात् सात्विक्-चित्त-वृत्तियोंवाले, तथा (अजैश्रवसः) रजोगुण और तमोगुण द्वारा अर्जित कीर्ति वाले, (हार्यः) प्रत्याहार आदि साधना-सम्पन्न उपासक, (दक्षिणम्) प्रगति और वृद्धिदायक (त्वा) आपको (युञ्जन्ति) अपने साथ योगविधि द्वारा युक्त करते हैं, वे (देवानाम्) दिव्य योगी-जनों में (पूर्वाः) प्रथम-कोटि के गिने जाते हैं। (नमस्य) हे नमस्कार के योग्य (इन्द्र) परमेश्वर! ऐसा व्यक्ति (महीयते) पूजा जाता है, और महिमा को प्राप्त करता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Prajapati

    Meaning

    Hey Indra, those who are pure and spotless, who have won imperishable honour and fame and have withdrawn their worldly desires and ambitions, and who join you, Omnificent Lord, every one of them, front ranker among divine personalities, bearing you at heart in the soul, they are great, happy and exalted.

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    Translation

    O mighty man to you our admirations are due. Those who are the swift in deed and understanding, possessed of the fame undiminishing and are human seek close contact with you. The sound policy of keeping learned men is always accpeted and praised.

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    Translation

    O mighty man to you our admirations are due. Those who are the swift in deed and understanding, possessed of the fame undiminishing and are human seek close contact with you. The sound policy of keeping learned men is always accepted and praised.

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    Translation

    One of them is the volition, that carries everything with it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(ये) (त्वा) (श्वेताः) श्वेतं रूप्येऽपि रजतम्-अमरे २३।७९। श्वेत-अर्शआद्यच्। श्वेतेन रजतादिधनेन युक्ताः (अजैश्रवसः) अजेय-श्रवसः। अजेयकीर्तयः (हार्यः) वसिवपियजि०। उ० ४।१२। हृञ् हरणे-इञ्। हरयो मनुष्यनाम-निघ० २।३। हरयः। मनुष्याः (युञ्जन्ति) संयोजयन्ति (दक्षिणम्) दक्ष वृद्धौ-इनन्। दक्षम्। कार्यकुशलम् (पूर्वा) प्राचीना नीतिः (नमस्य) हे सत्करणीय (देवानाम्) विदुषाम् (बिभ्रत्) बिभ्रती। पोषणं कुर्वन्ती (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् मनुष्य (महीयते) पूज्यते ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নমস্য) হে নমস্কারযোগ্য (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [মহান ঐশ্বর্যবান পুরুষ] (যে) যে (শ্বেতাঃ) রৌপ্যাদি [ধন] যুক্ত, (অজৈশ্রবসঃ) অজেয় কীর্তিমান (হার্যঃ) মনুষ্য (দক্ষিণম্) চতুর/দক্ষ (ত্বা) তোমার সাথে (যুঞ্জন্তি) মিলিত হয়, (দেবানাম্) বিদ্বানদের (বিভ্রৎ) পোষণকারী (পূর্বা) [তাঁদের] প্রচীন নীতি (মহীয়তে) পূজিত হয় ॥১৬॥

    भावार्थ

    চতুর/বিদ্বান রাজা ধনী বিদ্বান মনুষ্যের সুনীতিকে সর্বদা আদর/শ্রদ্ধা করে ॥১৬॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (যে) যে (শ্বেতাঃ) শুভ্র অর্থাৎ সাত্ত্বিক্-চিত্ত-বৃত্তিসম্পন্ন, তথা (অজৈশ্রবসঃ) রজোগুণ এবং তমোগুণ দ্বারা অর্জিত কীর্তিসম্পন্ন, (হার্যঃ) প্রত্যাহার আদি সাধনা-সম্পন্ন উপাসক, (দক্ষিণম্) প্রগতি এবং বৃদ্ধিদায়ক (ত্বা) আপনাকে (যুঞ্জন্তি) নিজের সাথে যোগবিধি দ্বারা যুক্ত করে, সে (দেবানাম্) দিব্য যোগীদের মধ্যে (পূর্বাঃ) প্রথম-কোটির হিসেবে পরিগণিত হয়। (নমস্য) হে নমস্কার যোগ্য (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! এরূপ ব্যক্তি (মহীয়তে) পূজিত হয়, এবং মহিমা প্রাপ্ত করে।

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