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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 2
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    यो जा॒म्या अप्र॑थय॒स्तद्यत्सखा॑यं॒ दुधू॑र्षति। ज्येष्ठो॒ यद॑प्रचेता॒स्तदा॑हु॒रध॑रा॒गिति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । जा॒म्या । अप्र॑थय॒: । तत् । यत् । सखा॑य॒म् । दुधू॑र्षति ॥ ज्येष्ठ॒: । यत् । अ॑प्रचेता॒: । तत् । आ॑हु: । अध॑रा॒क् । इति॑ ॥१२८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो जाम्या अप्रथयस्तद्यत्सखायं दुधूर्षति। ज्येष्ठो यदप्रचेतास्तदाहुरधरागिति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । जाम्या । अप्रथय: । तत् । यत् । सखायम् । दुधूर्षति ॥ ज्येष्ठ: । यत् । अप्रचेता: । तत् । आहु: । अधराक् । इति ॥१२८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो मनुष्य, (जाम्याः) कुल स्त्री को (अप्रथयः) गिराता है, (तत्) वह पुरुष, और (यत्) जो (सखायम्) मित्र को (दुधूर्षति) मारना चाहता है, और (यत्) जो (ज्येष्ठः) अति वृद्ध होकर (अप्रचेताः) अज्ञानी है, (तत्) वह (अधराक्) अधोगामी है−(इति) ऐसा (आहुः) वे लोग कहते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सती स्त्री को पाप में लगावे, मित्रघाती हो और वयोवृद्ध होकर भी अज्ञानी हो, वह विद्वानों में नीच गति पाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यः) पुरुषः (जाम्याः) अथ० २।७।२। द्वितीयार्थे षष्ठी। जामिम्। कुलस्त्रियम् (अप्रथयः) पृथ प्रक्षेपे। प्रक्षिपति। अधोगमयति (तत्) सः (यत्) यः (सखायम्) (दुधूर्षति) धुर्वी हिंसायाम्-सन्। हन्तुमिच्छति (ज्येष्ठः) अतिवृद्धः सन् (यत्) यः (अप्रचेताः) अपण्डितः (तत्) सः (आहुः) कथयन्ति ते विद्वांसः (अधराक्) अधोगामी भवति (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

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    विषय

    अधराक [अधोगामी]

    पदार्थ

    भावार्थ-अवनत पुरुष के तीन लक्षण है [क] कुलीन स्त्री को कलंकित करना [ख] मित्र-द्रोह तथा [ग] बड़ा होते हुए भी नासमझी की बात करना।

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    भाषार्थ

    (यः) जो पुरुष (जाम्याः) स्त्रियों के सम्बन्ध में (अप्रथयः) अनाचार करता है (तत्) उसे, और (यत्) जो (सखायम्) मित्र की (दुधूर्षति) विश्वासघात आदि द्वारा हिंसा करता है उसे, (यत् ज्येष्ठः) तथा जो बड़ा भाई है परन्तु (अप्रचेताः) है अज्ञानी (तत्) उन सब को, दिव्य पुरुष (अधराक् इति) नीच (आहुः) कहते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Prajapati

    Meaning

    The man who abuses a sister or any sisterly woman, or who deceives and violates a friend, and he that is the eldest and yet behaves like a man void of sense and reason, such a man, they say, is the lowest and meanest of all.

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    Translation

    The learned people say that down go must these men who defiles a sister, he who willingly harm a friend and he the fool who slights elders.

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    Translation

    The learned people say that down go must these men who defiles a sister, he who willingly harm a friend and he the fool who slights elders.

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    Translation

    We hear that the successful businessman, who does not make good use of his wealth nor does he help the poor and the needy with it, and the non-donating wealthy person are certainly looked down upon amongst the wise and honorable persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यः) पुरुषः (जाम्याः) अथ० २।७।२। द्वितीयार्थे षष्ठी। जामिम्। कुलस्त्रियम् (अप्रथयः) पृथ प्रक्षेपे। प्रक्षिपति। अधोगमयति (तत्) सः (यत्) यः (सखायम्) (दुधूर्षति) धुर्वी हिंसायाम्-सन्। हन्तुमिच्छति (ज्येष्ठः) अतिवृद्धः सन् (यत्) यः (अप्रचेताः) अपण्डितः (तत्) सः (आहुः) कथयन्ति ते विद्वांसः (अधराक्) अधोगामी भवति (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে মনুষ্য, (জাম্যাঃ) কুল স্ত্রীকে (অপ্রথয়ঃ) অধঃপতিত করে, (তৎ) সেই পুরুষ, এবং (যৎ) যে (সখায়ম্) মিত্রকে (দুধূর্ষতি) হনন করতে চায়, এবং (যৎ) যে (জ্যেষ্ঠঃ) অতি বৃদ্ধ হয়ে (অপ্রচেতাঃ) অজ্ঞানী, (তৎ) সে (অধরাক্) অধোগামী হয়− (ইতি) এমনটা (আহুঃ) বিদ্বানগণ বলে ॥২॥

    भावार्थ

    যে ব্যক্তি সতী রমণীকে পাপে লিপ্ত করে, মিত্রঘাতী হয় এবং বৃদ্ধ বয়সেও অজ্ঞানী থাকে, সে বিদ্বানদের মধ্যে নীচু স্থান পায়/অধোগতি লাভ করে॥২॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যে পুরুষ (জাম্যাঃ) স্ত্রীদের বিষয়ে (অপ্রথয়ঃ) অনাচার করে (তৎ) তাঁকে, এবং (যৎ) যে (সখায়ম্) মিত্রের প্রতি (দুধূর্ষতি) বিশ্বাসঘাতকতা আদি দ্বারা হিংসা করে তাঁকে, (যৎ জ্যেষ্ঠঃ) তথা যে জৈষ্ঠ ভ্রাতা কিন্তু (অপ্রচেতাঃ) অজ্ঞানী (তৎ) সেই সকলকে, দিব্য পুরুষ (অধরাক্ ইতি) নীচ (আহুঃ) বলে।

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