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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 128/ मन्त्र 8
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वाँ अप्रति॑दिश्ययः। अय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप्र॑पा॒णा । च॑ । वेश॒न्ता । रे॒वान् । अप्रति॑दिश्यय: ॥ अय॑भ्या । क॒न्या॑ । कल्या॒णी । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता॑ ॥१२८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्रपाणा च वेशन्ता रेवाँ अप्रतिदिश्ययः। अयभ्या कन्या कल्याणी तोता कल्पेषु संमिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्रपाणा । च । वेशन्ता । रेवान् । अप्रतिदिश्यय: ॥ अयभ्या । कन्या । कल्याणी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) जैसे (अप्रपाणा) बिन पनघटवाला (वेशन्ता) सरोवर है, [वैसे ही] (अप्रतिदिश्ययः) प्रतिदान का न करनेवाला (रेवान्) धनवान् और (अयभ्या) मैथुन के अयोग्य [रोग आदि से पीड़ित, सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ] (कल्याणी) सुन्दर (कन्या) कन्या है, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥८॥

    भावार्थ

    बिना पनघट के जल से भरा सरोवर, बिना प्रतिदान के बड़ा धनी, और बिना सन्तान उत्पन्न करने के रूपवती स्त्री निष्फल है ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(अप्रपाणा) विभक्तेराकारः-पा० ७।१।३९। पानस्थानशून्यः, (च) उपमार्थे (वेशन्ता) सरोवरः। तडागः (रेवान्) धनवान् (अप्रतिदिश्ययः) दिश दाने-क्यप्+या प्रापणे-ड। अप्रतिदानप्रापकः (अयभ्या) पोरदुपधात्। पा० ३।१।९८। यभ मैथुने-यत्। अमैथुनयोग्या। रोगादिवशात् सन्तानोत्पादने असमर्था (कन्या) (कल्याणी) सुन्दरी। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    धनी होता हुआ अदाता कैसा है?

    पदार्थ

    १. (अप्रपाणा च) = जैसे बिना पनघटवाला-पानी पीने के अस्थानवाला (वेशन्ता) = सरोवर है, वैसे ही (अप्रतिदिश्यय:) = प्रतिदान न करनेवाला (रेवान्) = धनी है। धन के होने पर दान करना ही चाहिए। २. धन होने पर दान न करनेवाला तो ऐसा है जैसेकि एक (कल्याणी कन्या) = बड़ी सुन्दर रूपवती युवति हो परन्तु (अयभ्या) = मैथुन के अयोग्य हो-सन्तानोत्पत्ति के अयोग्य हो। (ता उता ता) = वे सब-निश्चय से वे सब (कल्पेषु संमिता) = शास्त्रविधानों में समान माने गये हैं।

    भावार्थ

    एक धनी होता हुआ दान न देनेवाला पुरुष ऐसा है, जैसा कि बिना पनघटवाला सरोवर और जैसेकि सन्तानोत्पत्ति के अयोग्य सुन्दर युवति।

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    भाषार्थ

    (अप्रपाणा) विना प्याऊ की (वेशन्ता) बावली, (च) और (अप्रतिदिश्ययः) अदानी (रेवान्) धनिक, तथा (अयभ्या) विवाह के अयोग्य (कल्याणी कन्या) मोक्षाभिलाषिणी कन्या—(ता उ ता) ये सब (कल्पेषु) कल्प-कल्पान्तरों में (संमिता) एक समान माने गये हैं—अर्थात् ये इन सामाजिक उपयोगों के अयोग्य हैं।

    टिप्पणी

    [अप्रतिदिश्ययः=दिश् अतिसर्जने, दाने।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Prajapati

    Meaning

    A water resort without the availability of water, a rich man without charity, a comely girl without the fertility of marriage and procreation, all these are believed to be equally unworthy in society for social purpose and programmes.

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    Translation

    The pools which have no place for drinking, the wealthy man who gives no gift and the pretty girl who is not cohabitable are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.

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    Translation

    The pools which have no place for drinking, the wealthy man who gives no gift and the pretty girl who is not cohabitable are treated to be of equal rank and utility in the good dealings.

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    Translation

    The deserted wife or queen, the person, who safely avoids going towar, the horse that is not fleet, the man, who obeys no rules and regulations;all of these are regarded equal in their uselessness.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(अप्रपाणा) विभक्तेराकारः-पा० ७।१।३९। पानस्थानशून्यः, (च) उपमार्थे (वेशन्ता) सरोवरः। तडागः (रेवान्) धनवान् (अप्रतिदिश्ययः) दिश दाने-क्यप्+या प्रापणे-ड। अप्रतिदानप्रापकः (अयभ्या) पोरदुपधात्। पा० ३।१।९८। यभ मैथुने-यत्। अमैथुनयोग्या। रोगादिवशात् सन्तानोत्पादने असमर्था (कन्या) (कल्याणी) सुन्दरी। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (চ) যেমন (অপ্রপাণা) পানস্থানশূন্য/ঘাটবিহীন (বেশন্তা) সরোবর হয়, [তেমনই] (অপ্রতিদিশ্যযঃ) প্রতিদানহীন (রেবান্) ধনবান এবং (অয়ভ্যা) মৈথুনের অযোগ্য [রোগ আদি দ্বারা পীড়িত, সন্তান উৎপাদনে অক্ষম] (কল্যাণী) সুন্দরী (কন্যা) কন্যা হয়, (তোতা) এই-এই কর্ম (কল্পেষু) শাস্ত্রবিধান দ্বারা (সংমিতা) প্রমাণিত ॥৮॥

    भावार्थ

    ঘাটবিহীন জলপূর্ণ হ্রদ, প্রতিদানহীন ধনবান, বন্ধ্যা সুন্দরী নারী নিষ্ফল হয়॥৮॥

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    भाषार्थ

    (অপ্রপাণা) ঘাট বিনা (বেশন্তা) বাওলী [stepwell], (চ) এবং (অপ্রতিদিশ্যযঃ) অদানী (রেবান্) ধনী, তথা (অয়ভ্যা) বিবাহের অযোগ্য (কল্যাণী কন্যা) মোক্ষাভিলাষিণী কন্যা—(তা উ তা) এঁরা সবাই (কল্পেষু) কল্প-কল্পান্তরে (সংমিতা) এক সমান মান্য হয়েছে—অর্থাৎ এঁরা এই সামাজিক ব্যবহারের অযোগ্য।

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