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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 10
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यापरिहरणम् छन्दः - निचृद्बृहती सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    1

    पु॒त्र इ॑व पि॒तरं॑ गच्छ स्व॒ज इ॑वा॒भिष्ठि॑तो दश। ब॒न्धमि॑वावक्रा॒मी ग॑च्छ॒ कृत्ये॑ कृत्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒त्र:ऽइ॑व । पि॒तर॑म् । ग॒च्छ॒ । स्व॒ज:ऽइ॑व । अ॒भिऽस्थि॑त: । द॒श॒ । ब॒न्धम्ऽइ॑व । अ॒व॒ऽक्रा॒मी । ग॒च्छ॒ । कृत्ये॑ । कृ॒त्या॒ऽकृत॑म् । पुन॑: ॥१४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुत्र इव पितरं गच्छ स्वज इवाभिष्ठितो दश। बन्धमिवावक्रामी गच्छ कृत्ये कृत्याकृतं पुनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुत्र:ऽइव । पितरम् । गच्छ । स्वज:ऽइव । अभिऽस्थित: । दश । बन्धम्ऽइव । अवऽक्रामी । गच्छ । कृत्ये । कृत्याऽकृतम् । पुन: ॥१४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुत्रः इव) पुत्र के समान (पितरम्) अपने पिता के पास (गच्छ) पहुँच, (अभिष्ठितः) ठोकर खाये हुए (स्वजः इव) लिपटनेवाले साँप के समान [शत्रु को] (दश) डस ले। (कृत्ये) हे हिंसाशक्ति ! (बन्धम्) बन्ध (अवक्रामी इव) छोड़ कर भागनेवाले के समान, (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी को (पुनः) अवश्य (गच्छ) पहुँच ॥१०॥

    भावार्थ

    सेना के लोग सेनापति से अनायास मिलते रहें और शत्रुओं का शीघ्र नाश करें ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(पुत्रः) कुलशोधकः सन्तानः (इव) यथा (पितरम्) पालकम् जनकम्, (गच्छ) प्राप्नुहि (स्वजः) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे−पचाद्यच्, पृषोदरादित्वान्नलोपः। सर्पः (इव) (अभिष्ठितः) पादैरभिभूतः (दश) दंशय (बन्धम्) (इव) यथा (अवक्रामी) उल्लङ्घ्य प्रतिगामी (गच्छ) (कृत्ये) हिंसाशक्ते (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् ॥१०॥

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    विषय

    अभिष्ठितः स्वजः इव

    पदार्थ

    १. हे (कृत्ये) = छेदन-भेदन की क्रिये! तू (कृत्याकृतं पुन:) = गच्छ कृत्या करनेवाले को पुनः इसप्रकार प्राप्त हो (इव) = जैसेकि (पुत्र: पितरम्) = पुत्र पिता की ओर जाता है। हे कृत्ये! तू कृत्याकृत् की ओर (गच्छ) = जा। तू इस कृत्याकृत को इसप्रकार (दश) = डसनेवाली हो, (इव) = जैसेकि (अभिष्ठितः) = पाँव से आक्रान्त (स्वजः) = लिपट जानेवाला सर्प डसता है [प्वज]। २. हे कृत्ये! तू इसप्रकार कृत्याकृत के पास पुनः (गच्छ) = जा, (इव) = जैसे (बन्धम् अवक्रामी) = बन्धन को [उल्लंघ्य प्रतिगामी] तोड़कर जानेवाला इष्ट स्थान पर जाता है।

    भावार्थ

    पुत्र पिता को प्राप्त होता ही है, पादाक्रान्त सर्प काटता ही है, बन्धन को तुड़ाकर प्राणी इष्ट स्थान की ओर जाता ही है, इसीप्रकार कृत्या कृत्याकृत् को प्राप्त होती ही है ।

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    भाषार्थ

    (पितरम्) पिता की ओर (पुत्रः इत्व) पुत्र के सदृश (गच्छ) तू जा; (अभिष्ठितः) व्यक्ति द्वारा पादाक्रान्त हुए (स्वज: इव) विषैले साँप के सदृश (दश) उसे तू डस, काट । (बन्धम् इव) नदी के बन्ध को जैसे प्रहारों द्वारा तोड़ दिया जाता है वैसे शत्रु के घेरे को (अवक्रामी) आक्रमण द्वारा तोड़ती हुई (गच्छ) उसकी ओर तू जा, (कृत्ये ) हे सम्राट् या साम्राज्य की हिंस्र-सेना ! (कृत्याकृतम्) हिंस्रसेना का निर्माण करनेवाले के लिए अर्थात् उसकी ओर (पुनः) फिर अर्थात् वापस तू जा।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में तीन विकल्प दिये हैं । (१ ) शत्रुसेना के निर्माता की ओर, उसके साथ सुलह-सफाई के लिए, उसका मान करते हुए उसके प्रति नि:संकोच होकर तू जा जैसेकि पुत्र निःसंकोर होकर पिता की ओर जाता है। यह निज सेना के प्रति आदेश है। (२) यदि उसने तुझे पादाक्रान्त किया है तो विषैले साँप के सदृश उसे तू काट। (३) यदि उसने साम्राज्य के किसी प्रान्त पर सैनिक बन्ध लगा दिया है, घेरा डाल दिया है, तो उस सेना पर आक्रमण करके घेरे को तोड़ डाल।]

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    भावार्थ

    हे (कृत्ये) हिंसाकारिणी शक्ति ! (पुत्र इत्र पितरं गच्छ) जैसे पुत्र पिता के पास जाता है उसी प्रकार तू भी पीड़ा रूप होकर उसको प्राप्त हो, जो तुझे अन्यों के प्रति प्रयोग करता है। (स्वजः इव अभिष्ठितः दश) लिपट कर काटने वाले सांप के समान तू उस अपराधी को वश करके काट, कष्ट दे। और (बन्धम् इव) बन्धन को मानो (अवक्रामी) लताडती हुई हे कृत्ये ! (पुनः) पुनः तू (कृत्याकृतं गच्छ) हिंसाकारी अपराधी को ही वार २ पकड़।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Krtyapratiharanam

    Meaning

    O evil and violence, go back to the perpetrator like a son to the father and, like a bruised viper, grip and bite him. Go like one broke loose of all bonds, go back to the evil doer again.

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    Translation

    Go like a to his father. Bite like a trampled constrictor. Tread down on him like a bond. O fatal contrivance, may you go to your maker.

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    Translation

    Let this misery caused by artificial means 80 to him who originates it as a son goes to his father and bite him like a trampled reptile and as one who runs away from bond.

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    Translation

    O violence, go to the miscreant who uses thee against others, as a son goes to his sire, bite him as a trampled viper bites. As one who flies from bonds, go back, O violence, go back to him, who commits violence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(पुत्रः) कुलशोधकः सन्तानः (इव) यथा (पितरम्) पालकम् जनकम्, (गच्छ) प्राप्नुहि (स्वजः) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे−पचाद्यच्, पृषोदरादित्वान्नलोपः। सर्पः (इव) (अभिष्ठितः) पादैरभिभूतः (दश) दंशय (बन्धम्) (इव) यथा (अवक्रामी) उल्लङ्घ्य प्रतिगामी (गच्छ) (कृत्ये) हिंसाशक्ते (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् ॥१०॥

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