अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 8
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्यापरिहरणम्
छन्दः - त्रिपदा विराडनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
1
अग्ने॑ पृतनाषा॒ट्पृत॑नाः सहस्व। पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ प्रति॒हर॑णेन हरामसि ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । पृ॒त॒ना॒षा॒ट् । पृत॑ना: । स॒ह॒स्व॒ । पुन॑: । कृ॒त्याम् । कृ॒त्या॒ऽकृते॑ । प्र॒ति॒ऽहर॑णेन । ह॒रा॒म॒सि॒ ॥१४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने पृतनाषाट्पृतनाः सहस्व। पुनः कृत्यां कृत्याकृते प्रतिहरणेन हरामसि ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । पृतनाषाट् । पृतना: । सहस्व । पुन: । कृत्याम् । कृत्याऽकृते । प्रतिऽहरणेन । हरामसि ॥१४.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे विद्वान् सेनापति ! (पृतनाषाट्) संग्राम जीतनेवाला तू (पृतनाः) संग्रामों को (सहस्व) जीत। (पुनः) निश्चय करके (कृत्याम्) हिंसा को (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले पुरुष की ओर (प्रतिहरणेन) लौटा देने से (हरामसि) हम नाश करते हैं ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य शूर सेनापति के साथ शत्रुसेना को नाश करें ॥८॥
टिप्पणी
८−(अग्ने) हे विद्वन् सेनापते (पृतनाषाट्) छन्दसि षहः। पा० ३।२।६३। इति पृतना+षह अभिभवे−ण्वि। सहेः साडः सः। पा० ८।३।५६। इति सस्य षः। संग्रामजेता (पृतनाः) अ० ३।२१।३। संग्रामान् (सहस्व) अभिभव (पुनः) अवश्यम् (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (प्रतिहरणेन) प्रतिकूलनयनेन। निरोधेन (हरामसि) नाशयामः ॥
विषय
प्रतिहरणेन
पदार्थ
१.हे (अग्ने) = राष्ट्र को उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले राजन्! आप (पृतनाषाट्) = शत्रु-सैन्यों का पराभव करनेवाले हैं, (पृतना: सहस्व) = इन शत्रु-सैन्यों का पराभव कीजिए। २. (कृत्याम्) = छेदन भेदन की क्रिया को (कृत्याकृते) = इस छेदन क्रिया करनेवाले के लिए (पुन:) = फिर (प्रतिहरणेन) = वापस लौटाने के द्वारा (हरामसि) = विनष्ट करते हैं। कृत्या जब इस कृत्याकृत् को प्राप्त होती है तब उसे इसकी हानि का प्रत्यक्ष अनुभव होता है और वह इसे न करने का निश्चय करता है। इसप्रकार कृत्या का विनाश हो जाता है।
भावार्थ
राजा सैन्यों के द्वारा आक्रान्ता शत्रु-सैन्यों का पराभव करता हुआ उन्हें पुनः छेदन-भेदन करने की क्रिया से रोकता है ।
भाषार्थ
(पृतनाषाट्) सेनाओं का पराभव करनेवाले (अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (पृतनाः) शत्रु की सेनाओं का (सहस्व) तू पराभव कर। तदनन्तर (कृत्याम्) शत्रु की प्रत्येक हिंस्रसेना को (कृत्याकृते ) हिंस्रसेनाओं के संग्रहकर्त्ता शत्रु राजा के लिए, (प्रतिहरणेन) वापस हटाने की विधि द्वारा, (पुनः) फिर (हरामसि) हम सेनाध्यक्ष वापस कर देते हैं।
टिप्पणी
[प्रधानमन्त्री प्रथम, निज साम्राज्यसेनाओं द्वारा शत्रुसेनाओं का पराभव करे। तदनन्तर अवशिष्ट सेना का वध न कर, उसे मानपूर्वक, शत्रु राजा के राज्य में स्वसेनाध्यक्ष द्वारा पहुंचा दें।]
भावार्थ
हे (अग्ने) राजन् ! हे (पृतनाषाट्) सेनाओं और प्रजाओं को वश करने वाले ! तू (पृतनाः सहस्व) समस्त सेनाओं को वश कर। (पुनः) तब (कृत्याकृते) राष्ट्रवासियों पर विपत्तियों को लाने वाले पर (प्रतिहरणेन) प्रतिहरण विधि से (कृत्यां) उस घातक्रिया को हम (हरामसि) उसी पर डालते हैं अर्थात् यदि सेनापति अपनी सेनाओं को वश करके बाहर की सेनाओं पर वश कर ले तो भीतरी षड्यन्त्रकारियों को पकड़ कर उनको वही दण्ड भुगतावे जो कष्ट वे औरों पर डालना चाहते हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Krtyapratiharanam
Meaning
O Agni, refulgent ruler, leader and commander, fighter and victor of battles, face and fight the battles against misfortune. With our powers of defence and offence we counter and turn evil and violence back to the evil doer.
Translation
O adorable leader, conqueror of invading hordes, may you conquer the invaders. We lead the fatal contrivance back to him again, who had made that fatal contrivance, by means of a counter-measure.
Translation
This fire is the destroyer of diseases and it overpowers all sort of diseases. We cast back this misery on the originator of it through the counter-acting means.
Translation
O King, victorious in fight, subdues the armies of our foes! Back on the violent person we cast his violence, and beat it home!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(अग्ने) हे विद्वन् सेनापते (पृतनाषाट्) छन्दसि षहः। पा० ३।२।६३। इति पृतना+षह अभिभवे−ण्वि। सहेः साडः सः। पा० ८।३।५६। इति सस्य षः। संग्रामजेता (पृतनाः) अ० ३।२१।३। संग्रामान् (सहस्व) अभिभव (पुनः) अवश्यम् (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (प्रतिहरणेन) प्रतिकूलनयनेन। निरोधेन (हरामसि) नाशयामः ॥
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