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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 11
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यापरिहरणम् छन्दः - त्रिपदासाम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    1

    उदे॒णीव॑ वार॒ण्य॑भि॒स्कन्धं॑ मृ॒गीव॑। कृ॒त्या क॒र्तार॑मृच्छतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ए॒णीऽइ॑व । वा॒र॒णी । अ॒भि॒ऽस्कन्द॑म् । मृ॒गीऽइ॑व । कृ॒त्या । क॒र्तार॑म् । ऋ॒च्छ॒तु॒ ॥१४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदेणीव वारण्यभिस्कन्धं मृगीव। कृत्या कर्तारमृच्छतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । एणीऽइव । वारणी । अभिऽस्कन्दम् । मृगीऽइव । कृत्या । कर्तारम् । ऋच्छतु ॥१४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (वारणी) हथिनी, अथवा (एणी इव) कृष्णमृगी के समान (मृगी इव) और मृगी के समान (अभिस्कन्दम्) धावा करनेवाले पुरुष पर, (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (कर्तारम्) हिंसक को (उद्) उछल कर (ऋच्छतु) प्राप्त होवे ॥११॥

    भावार्थ

    हमारी सेना शत्रुओं पर इस प्रकार शीघ्र धावा करे, जैसे घेरा हुआ पशु अपने आखेटक पर दौड़ता है ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(उत्) उद्गत्य (एणी) इण् गतौ−ण, णस्य नेत्वम्, ङीप्। कृष्णमृगी (इव) यथा (वारणी) वृञ् आवरणे−णिच्, ल्युट्, ङीष्। गजी (अभिस्कन्दम्) अभि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः−पचाद्यच्। प्रतिकूलगन्तारम् (मृगी) हरिणी (इव) यथा (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (ऋच्छ) गच्छतु ॥

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    विषय

    एणी इव, वारणी इव, मृगी इव

    पदार्थ

    १. (कृत्या) = छेदन-भेदन की क्रिया (कर्तारम् उदऋच्छत) = इस कृत्याकृत् को इसप्रकार प्रास हो (इव) = जैसेकि (एणी) = एक मृगी आक्रान्ता पर झपटती है, (वारणी) = हथिनी जैसे (अभिस्कन्दम्) = आक्रान्ता पर आक्रमण करती है, अथवा (इव) = जैसे (मृगी) = एक वन्य व्यानी [हिंन जन्तु] शिकारी पर झपट्टा मारती है।

    भावार्थ

    कृत्या कृत्याकृत् पर ही आक्रमण करे। उसे ही यह विनष्ट करनेवाली हो।

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    भाषार्थ

    (एणी इव) कृष्णवर्णवाली मृगी दे सदृश, (मुगी इव) या तद्भिन्न वर्णवाली मृगी के सदृश, अथवा (वारणी) हथिनी के सदृश (कृत्या) सम्राट् को छेदनपटू सेना, (अभिस्कन्दम्) आक्रमणकारी (कर्तारम्) शत्रूसेना के निर्माता के प्रति (उद् ऋच्छतु) उत्थान करके पहुँचे।

    टिप्पणी

    [मृगी चाहे किसी भी वर्णवाली हो, वह शान्त स्वभाववाली होती है, बदला नहीं ले सकती; हथिनी बदला ले सकती है। शत्रु राजा यदि सम्राट् के किसी भी प्रान्त पर आक्रमण करता है, तो सम्राट् की 'कृत्या' या तो प्रेमभावनापूर्वक सन्धिवार्ता करने के लिए अथवा बदला लेने के लिए प्रत्याक्रमण भावना से निज छावनी से उत्थान कर शत्रु की ओर जाए—यह भावना मन्त्र में है। युद्धनीति के ६ गुण हैं, सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध, आश्रय। उत्थान है विग्रह अर्थात युद्ध के लिए सेना का उठना। उत्थानम् War, battle (आप्टे)। कृत्या=कृती छेदने (तुदादिः, रुधादिः), छेदनपटु सेना, यथा 'कृतव्यधनि' (मन्त्र ९)।]

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    भावार्थ

    दण्ड किस निश्चित विधि से दिया जावे इसका उपदेश करते हैं। वही (वारणी कृत्या) अपराधों को रोकने वाली पीड़ा जो अपराधी को दी जाती है (कर्त्तारम् ऋच्छतु) पीड़ाकारी को इस प्रकार प्राप्त हो (अभिस्कन्दं एणी इव उत्) हरिणी जिस प्रकार अपने आक्रमणकारी पर कूद कर झपटती है या (वारणी) सेना या हथिनी जिस प्रकार अपने पर पड़े घेरे पर झपटती है या (मृगी इव) बाघनी जिस प्रकार शिकारी पर टूटती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Krtyapratiharanam

    Meaning

    Let the evil deed turn upon the perpetrator like a doe at bay, a female elephant or a tigress pouncing upon the hunter.

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    Translation

    Up like a she-deer or timid antelope, like a she cow elephant (varani) or like a leaping hind, may this fatal contrivance go to its applier.

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    Translation

    Let this misery go back to its originator like the female elephant, or black tigress or lioness who pounces on the assailant.

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    Translation

    Just as a female antelope, or a female elephant ora female deer jumps at her assailant, so should violence overtake him who resorts to violence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(उत्) उद्गत्य (एणी) इण् गतौ−ण, णस्य नेत्वम्, ङीप्। कृष्णमृगी (इव) यथा (वारणी) वृञ् आवरणे−णिच्, ल्युट्, ङीष्। गजी (अभिस्कन्दम्) अभि+स्कन्दिर् गतिशोषणयोः−पचाद्यच्। प्रतिकूलगन्तारम् (मृगी) हरिणी (इव) यथा (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (ऋच्छ) गच्छतु ॥

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