Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यापरिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    1

    रि॑श्यस्येव परीशा॒सं प॑रि॒कृत्य॒ परि॑ त्व॒चः। कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ देवा नि॒ष्कमि॑व॒ प्रति॑ मुञ्चत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रिश्य॑स्यऽइव । प॒रि॒ऽशा॒सनम् । प॒रि॒ऽकृत्य॑ । परि॑ । त्व॒च: । कृ॒त्याम् । कृ॒त्या॒ऽकृते॑ । दे॒वा॒: । नि॒ष्कम्ऽइ॑व । प्रति॑ । मु॒ञ्च॒त॒ ॥१४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रिश्यस्येव परीशासं परिकृत्य परि त्वचः। कृत्यां कृत्याकृते देवा निष्कमिव प्रति मुञ्चत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रिश्यस्यऽइव । परिऽशासनम् । परिऽकृत्य । परि । त्वच: । कृत्याम् । कृत्याऽकृते । देवा: । निष्कम्ऽइव । प्रति । मुञ्चत ॥१४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (रिश्यस्य) हिंसक के (परिशासम्) हिंसासामर्थ्य को (इव) अवश्य (त्वचः परि) उसके चर्म वा शरीर से (परिकृत्य) काट डालकर, (देवाः) हे विद्वानों ! (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले के लिये (कृत्याम्) हिंसा को (निष्कम् इव) तलछट के समान (प्रति मुञ्चत) फेंक दो ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य दुष्कर्म को मूलसहित निकम्मी वस्तु के समान त्यागें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(रिश्यस्य) रिश हिंसायाम्−क्यप्। हिंसकस्य (इव) अवधारणे (परिशासम्) शसु हिंसायाम्−घञ्। हिंसासामर्थ्यम् (परिकृत्य) कृती छेदने−ल्यप्। परिच्छिद्य (परि) सर्वतः (त्वचः) चर्मणः। शरीरादित्यर्थः (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (देवाः) हे विद्वांसः (निष्कम्) नौ सदेर्डि च। उ० ३।४५। इति षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कन्, सच डित्। निषदनम्। किट्टम् (इव) यथा (प्रति) प्रतिकूलम् (मुञ्चत) त्यजत ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वन्य पशु के समान ध्वंसक का वशीकरण

    पदार्थ

    १. हे (देवा:) = विद्वानो! (त्वचः परि) = त्वचा को चारों ओर से (परिकत्य) = छिन्न करके (रिश्यस्य) = एक वन्य पशु के [मृगविशेष के] (परीशासं इव) = पूर्ण वशीकरण के समान (कृत्याम्) = एक दुष्ट पुरुष से किये गये छेदन-प्रयोग को (कृत्याकृते) = इस छेदन करनेवाले के लिए ही (निष्कम् इव) = स्वर्णहार के समान (प्रतिमुञ्चत) = धारण कराओ। २. एक दुष्ट पुरुष हमारा विनाश करने के लिए कुछ प्रयोग करता है। उसके प्रति हमारा व्यवहार ऐसा हो कि वह विनाश-क्रिया उस विनाशक के ही गले का स्वर्णहार बने। हम उस कृत्या से प्रभावित न हों। बुद्धिपूर्वक व्यवहार करते हुए इन छेदन भेदन के प्रयोगों से हम अपने को सुरक्षित रक्खें।

    भावार्थ

    जैसे एक मृग को वश में किया जाता है, उसी प्रकार ध्वंसक पुरुष को वश में करके हम उससे की जानेवाली कृत्या को उसी के लिए लौटानेवाले बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (रिश्यस्य१) हिंस्र या हिंसनीय पशु की (त्वचः परि) त्वचा अर्थात् छाल से (परीशासम्) गोल छाल-खण्ड को ( परिकृत्य ) काटकर और उसे (इव) जैसे (कृत्याम् ) हिंस्रक्रिया के रूप में (निष्कम्, इव ) निष्क के सदृश, (देवाः) हे विजय चाहनेवाले सैन्यनायको ! तुम (कृत्याकृते ) सेनासंग्रह करनेवाले के लिए [उसकी ग्रीवा में] (प्रति मुञ्चत) पहनाओ।

    टिप्पणी

    [निष्क है, सुवर्णमुद्रा। हिंस्रपशु के गोल छाल-खण्ड को, निष्क के रूप में, युद्धेच्छुक राजा की ग्रीवा में पहनाने का कथन हुआ है, उसे यह सुझाने के लिए कि अभी तक तो तुम सुवर्णमुद्रा के पैण्डल को ग्रीवा में पहनते रहे हो, युद्ध करने पर और हार जानने पर, तुम्हारी ग्रीवा पर चमड़े का पैण्डल होगा। यह क्रिया भी युद्ध की तैयारी न करने में प्रेरिकारूप ही है। निष्क=प्रायः १६ माशे की सुवर्णमुद्रा (आप्टे)। देवा:= दिवु क्रीडा 'विजिगीषा' अदि (दिवादिः)।] [१. रिश्यः=रिश हिंसायाम् (तुदादि:)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दुष्टों के विनाश के उपाय।

    भावार्थ

    हे (देवाः) विद्वान् पुरुषो ! (रिश्यस्य) जिस प्रकार हिंसक जन्तु के (त्वचः परि) त्वचा के चारों ओर (परिशासं) चारों ओर से उसको चुभने वाली बर्छियां सी (परि कृत्य) लगा कर या (परिशा सं) उसको चारों तरफ़ से चोट पहुंचाने वाले छड़ लगाकर वश कर लिया जाता है उसी प्रकार (कृत्या-कृते) दूसरों की जीवहत्या करने वाले पुरुष के (कृत्यां परि कृत्य) चारों ओर भी उसी प्रकार का कष्टदायी उपाय करके उसको (निष्कम् इव) नीचे दबा कर, निश्चेष्ट सा करके (अव मुञ्चत) छोड़ो। अर्थात् मारे मृत्यु के और कष्टों की पीड़ा के उसे दबा कर सिर मत उठाने दो, अथवा उसके गले में।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Krtyapratiharanam

    Meaning

    O men of wisdom, like the barbed girdle of a violent animal round his body, having turned the evil man’s deed into a golden necklace for him in return for his deed, send it back to him as a barbed leash for him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Having cut a strip of his skin going around (his neck), as if it were of an antelope, O enlightened ones, may you send the fatal contrivance back to the applier of the fatal contrivance like a niska (a golden ornament worn around the neck).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O ye men of learning! Remove Certainly the trouble-creating infliction of the disease driving away its effect from the skin and throw away the violence of the violent person like the dirt.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O learned persons, just as a violent animal is controlled by piercing his skin all round with daggers, so should a man-eating cannibal, being put to distress from all sides, be overpowered and left to his fate!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(रिश्यस्य) रिश हिंसायाम्−क्यप्। हिंसकस्य (इव) अवधारणे (परिशासम्) शसु हिंसायाम्−घञ्। हिंसासामर्थ्यम् (परिकृत्य) कृती छेदने−ल्यप्। परिच्छिद्य (परि) सर्वतः (त्वचः) चर्मणः। शरीरादित्यर्थः (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्याकृते) हिंसाकारिणे (देवाः) हे विद्वांसः (निष्कम्) नौ सदेर्डि च। उ० ३।४५। इति षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कन्, सच डित्। निषदनम्। किट्टम् (इव) यथा (प्रति) प्रतिकूलम् (मुञ्चत) त्यजत ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top