अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 7
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्यापरिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
1
यदि॒ वासि॑ दे॒वकृ॑ता॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षैः कृ॒ता। तां त्वा॒ पुन॑र्णयाम॒सीन्द्रे॑ण स॒युजा॑ व॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । वा॒ । असि॑ । दे॒वऽकृ॑ता । यदि॑ । वा॒ । पुरु॑षै: । कृ॒ता । ताम् । त्वा॒ । पुन॑: । न॒या॒म॒सि॒ । इन्द्रे॑ण । स॒ऽयुजा॑ । व॒यम् ॥१४.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि वासि देवकृता यदि वा पुरुषैः कृता। तां त्वा पुनर्णयामसीन्द्रेण सयुजा वयम् ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । वा । असि । देवऽकृता । यदि । वा । पुरुषै: । कृता । ताम् । त्वा । पुन: । नयामसि । इन्द्रेण । सऽयुजा । वयम् ॥१४.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
(यदि वा) चाहे (देवकृता) गतिशील सूर्य आदि लोकों द्वारा की गयी (यदि वा) चाहे (पुरुषैः) पुरुषों से (कृता) की गयी (असि) तू है। (ताम् त्वा) उस तुझ को (पुनः) फिर (वयम्) हम (इन्द्रेण) ऐश्वर्य के साथ (सयुजा) समान संयोग से (नयामसि) लिये चलते हैं ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक विपत्तियों का प्रतिकार करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(यदि) (वा) (असि) (देवकृता) दिवु गतौ−पचाद्यच्। गतिशीलैः सूर्यादिलोकैः कृता (यदि वा) (पुरुषैः) मनुष्यैः (कृता) निष्पादिता (ताम्) (त्वा) (पुनः) (नयामसि) गमयामः (इन्द्रेण) ऐश्वर्येण (सयुजा) सम्पदादित्वात् क्विप्। समानसंयोगेन सह (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
विषय
इन्द्रेण सयुजा वयम्
पदार्थ
१. (यदि वा देवकृता असि) = यदि कोई विपत्ति देवकृत है, अर्थात् अतिवृष्टि व अनावृष्टि आदि के कारण कृषि आदि न होने का कष्ट आया है, (यदि वा) = अथवा यदि कोई कष्ट (पुरुषैः कृता) = पुरुषों से किया गया है, (तां स्वा) = उस तुझ आधिदैविक व आधिभौतिक कष्ट को इन्द्रेण (सयुजा वयम्) = प्रभु के साथ मिलकर अथवा राजा के साथ मिलकर हम (पुनः नयामसि) = फिर दूर ले-जाते हैं। २. प्रभु की उपासना करते हुए हम अपने को आधिदैविक व आधिभौतिक कष्टों से बचाने में समर्थ हों। इसीप्रकार राजा की सहायता से राजा को पूर्ण सहयोग देते हुए हम इन कष्टों को दूर करने के लिए यत्नशील हों।
भावार्थ
प्रभु-स्मरण के साथ राष्ट्र में राजा को पूर्ण सहयोग देते हुए हम आधिदैविक व आधिभौतिक कष्टों को दूर करने के लिए यत्नशील हों ।
भाषार्थ
(यदि वा असि) यदि है तू (देवकृता) राज्य के देव अर्थात् विजिगीषु सेनापति द्वारा संगृहीता, (यदि वा) अथवा (पुरुषै:) राज्य की प्रजाओं द्वारा (कृता) संगृहीता, तो (ताम् त्वा) उस तुझको (वयम्, पुन: नयामसि) हम सेनाधिकारी फिर वापस कर देते हैं, (सयुजा इन्द्रेण) सहयोगी सम्राट् [की आज्ञा] द्वारा।
टिप्पणी
[इन्द्र है सम्राट्, "इन्द्रश्च सम्राड वरुणश्च राजा" (यजुर्वेद ८।३७)। शत्रुराजा ने, सम्राट् के साम्राज्य पर, आक्रमण करने के लिए निज सेना भेजी, परन्तु उदार सम्राट् ने उस सेना का विनाश न कर, उसे निज आज्ञा या परामर्श द्वारा वापस कर दिया। 'संगृहीता' है शत्रु द्वारा संग्रह की हुई सेना।]
विषय
दुष्टों के विनाश के उपाय।
भावार्थ
जीवों पर प्राणसंहारी विपत्ति के प्रतिकार का उपदेश करते हैं। (यदि वा) यदि प्राणसंहारी विपत्ति (देवकृता) आधिदैविक, ईश्वरीय शक्तियों से अपने आप घटित होगई है (यदि वा पुरुषैः कृता) और चाहे वह पुरुषों द्वारा की गई हो अर्थात् उस विपत्ति को ला डालने वाले मनुष्य ही हों तो भी (तां त्वा) हे विपत्ते ! उस तुझको (वयम्) हम लोग (इन्द्रेण सयुजा) अपने सहायक इन्द्र = राजा के बैल पर (पुनः नयामसि) वार वार हटादें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। कृत्याप्रतिहरणं सूक्तम्। १, २, ४, ६, ७, ९ अनुष्टुभः। ३, ५, १२ भुरित्रः। ८ त्रिपदा विराट्। १० निचृद् बृहती। ११ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। १३ स्वराट्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Krtyapratiharanam
Meaning
O misfortune, whether you are brought on as an accident of nature or caused by humans, we counter you by the help of Indra, lord omnipotent and our own self-confidence, our inalienable friend and ally.
Translation
O fatal contrivance, you have been made by some enlightened one, or you have been made by men, you, as such, we in companionship of the resplendent Lord, lead you back again.
Translation
If this calamity of diseases is created by physical forces or is created by men we, with our God at our side for our rescue lead this back again.
Translation
O violence, whether thou hast been committed by the forces of nature or by men, with the aid of our friend, the king, we ward thee off.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(यदि) (वा) (असि) (देवकृता) दिवु गतौ−पचाद्यच्। गतिशीलैः सूर्यादिलोकैः कृता (यदि वा) (पुरुषैः) मनुष्यैः (कृता) निष्पादिता (ताम्) (त्वा) (पुनः) (नयामसि) गमयामः (इन्द्रेण) ऐश्वर्येण (सयुजा) सम्पदादित्वात् क्विप्। समानसंयोगेन सह (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
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