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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 140 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 140/ मन्त्र 4
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    मु॒मु॒क्ष्वो॒३॒॑ मन॑वे मानवस्य॒ते र॑घु॒द्रुव॑: कृ॒ष्णसी॑तास ऊ॒ जुव॑:। अ॒स॒म॒ना अ॑जि॒रासो॑ रघु॒ष्यदो॒ वात॑जूता॒ उप॑ युज्यन्त आ॒शव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒मु॒क्ष्वः॑ । मन॑वे । मा॒न॒व॒स्य॒ते । र॒घु॒ऽद्रुवः॑ । कृ॒ष्णऽसी॑तासः । ऊँ॒ इति॑ । जुवः॑ । अ॒स॒म॒नाः । अ॒जि॒रासः॑ । र॒घु॒ऽस्यदः॑ । वात॑ऽजूताः । उप॑ । यु॒ज्य॒न्ते॒ । आ॒शवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुमुक्ष्वो३ मनवे मानवस्यते रघुद्रुव: कृष्णसीतास ऊ जुव:। असमना अजिरासो रघुष्यदो वातजूता उप युज्यन्त आशव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुमुक्ष्वः। मनवे। मानवस्यते। रघुऽद्रुवः। कृष्णऽसीतासः। ऊँ इति। जुवः। असमनाः। अजिरासः। रघुऽस्यदः। वातऽजूताः। उप। युज्यन्ते। आशवः ॥ १.१४०.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 140; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    ये मुमुक्ष्वस्ते यथा रघुद्रुवो जुवोऽसमना अजिरासो रघुस्यदो वातजूता आशवः कृष्णसीतासः कृषीवलाः कृषिकर्मण्युपयुज्यन्ते तथा मानवस्यते मनवे विदुषे योगिन उपयुज्यन्ताम् ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (मुमुक्ष्वः) मोक्तुमिच्छन्तः। अत्र जसादिषु वा वचनमिति गुणाभावः। (मनवे) (मानवस्यते) मानवान् आत्मन इच्छते (रघुद्रुवः) ये रघून्यास्वादनीयान्यन्नानि द्रवन्ति (कृष्णसीतासः) कृष्णा कृषिसाधिनी सीता येषां ते (उ) (जुवः) जववन्तः (असमनाः) असमानमनस्काः (अजिरासः) प्राप्तशीलाः (रघुस्यदः) ये रघुषु स्यन्दन्ते (वातजूताः) वात इव जूतं शीघ्रगमनं येषान्ते (उप) (युज्यन्ते) अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (आशवः) शुभगुणव्यापिनः ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कृषीवलाः क्षेत्राणि सम्यक् कर्षित्वा सुसंपाद्य बीजानि उप्त्वा फलवन्तो जायन्ते तथा मुमुक्षवो दमेनेन्द्रियाण्याकृष्य शमेन मन उपशाम्य स्वात्मानं पवित्रीकृत्य ब्रह्मविदो जनान् सेवेरन् ॥ ४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जो (मुमुक्ष्वः) संसार से छूटने की इच्छा करनेवाले हैं वे जैसे (रघुद्रुवः) स्वादिष्ठ अन्नों को प्राप्त होनेवाले (जुवः) वेगवान् (असमनाः) एकसा जिनका मन न हो (अजिरासः) जिनको शील प्राप्त है (रघुस्यदः) जो सन्मार्गों में चलनेवाले (वातजूताः) और पवन के समान वेगयुक्त (आशवः) शुभ गुणों में व्याप्त (कृष्णसीतासः) जिनके कि खेती का काम निकालनेवाली हर की यष्टि विद्यमान वे खेतीहर खेती के कामों का (उ) तर्क-वितर्क के साथ (उप, युज्यन्ते) उपयोग करते हैं वैसे (मानवस्यते) अपने को मनुष्यों की इच्छा करनेवाले (मनवे) मननशील विद्वान् योगी पुरुष के लिये उपयोग करें ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे खेती करनेवाले जन खेतों को अच्छे प्रकार जोत बोने के योग्य भली भाँति करके और उसमें बीज बोय फलवान् होते हैं, वैसे मुमुक्षु पुरुष दम नियम से इन्द्रियों को खैंच और शम अर्थात् शान्तिभाव से मन को शान्त कर अपने आत्मा को पवित्र कर ब्रह्मवेत्ता जनों की सेवा करें ॥ ४ ॥

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    विषय

    प्रभु प्राप्ति के मार्ग का पथिक

    पदार्थ

    १. (मनवे) = ज्ञान के पुञ्ज [मन-अवबोधने] (मानवस्यते) = मानवमात्र के हितकारी प्रभु के लिए जो भी उपयुज्यन्ते उपासना आदि द्वारा युक्त होते हैं, वे ही (मुमुक्ष्वः) = वस्तुतः मोक्ष की कामनावाले हैं, (रघुद्रुवः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाले होते हैं, (कृष्णसीतासः) = [कृष्- to become master of, सीता-लाङ्गलपद्धति] हल-रेखा के पति बनते हैं, अर्थात् श्रमशील होते हैं (उ) = और (जुवः) = सदा कर्मों में प्रेरित होनेवाले हैं। २. ये प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर चलनेवाले पुरुष (असमनाः) = असाधारण मनवाले, उन्नत ज्ञानवाले तथा (अजिरासः) = गति के द्वारा सब मलिनताओं को अपने से दूर करनेवाले होते हैं, (रघुष्यदः) = तीव्र वेगवाले, (वातजूता:) = वायु से सहज कर्म

    भावार्थ

    की प्रेरणा लेनेवाले तथा आशवः शीघ्रता से स्वकर्तव्यों में व्याप्त होनेवाले होते हैं।

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    विषय

    अश्वों के तुल्य, मुमुक्षु जनों का वर्णन, वीरों, सूर्य रश्मियों के तुल्य विवेकी मुमुक्षुओं को वासना नाश कर मुक्त होने का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( मानवस्यते ) समस्त मनुष्यों को अपनी प्रजा बनाने की इच्छा करने वाले ( मनवे ) शत्रुओं को स्तम्भन और राष्ट्र को व्यवस्थित करने में समर्थ प्रधान पुरुष के लिये ऐसे ( आशवः ) शीघ्र गति से जाने वाले घोड़े ( उपयुज्यन्ते ) रथ में लगाये जाते हैं जो ( मुमुक्ष्वः ) एक दम भाग छूटने को तत्पर होते, (रघुद्रुवः) अति वेग से दौड़ते, ( कृष्णसीतासः ) रथ के खींच कर हल के समान भूमि पर रेखा डालने वाले हों, ( असचनाः ) एक एक से बढ़कर ( अजिरासः ) निरन्तर एक चाल से चलने वाले, ( रघुष्यदः ) मार्गों पर वेग से दौड़ते, और ( वातजूताः ) वायु के समान वेग से जाते हों। उसी प्रकार ( मानवस्यते ) समस्त मननशील पुरुषों को अपनाने वाले ( मनवे ) ज्ञान स्वरूप परमेश्वर को प्राप्त करने के लिये भी ( मुमुक्ष्वः ) अपने को संसार बंधन से मुक्त करने की इच्छा करने वाले ऐसे पुरुष ही ( उप युज्यन्ते ) उसके लिये उपयुक्त होते हैं, वे ही उस परमेश्वर की उपासना में लगा करते हैं जो ( रघुद्रुवः ) आस्वाद करने योग्य नाना अन्नों के समान भोग्य कर्म विपाकों में गति करते हैं, पर्याप्त भोग भोगकर उन से खिन्न हो चुकते हैं या उनमें भटक चुकते हैं । जो ( कृष्ण-सीतासः ) भूमि में हल चलाने वाले कृषकों के समान कर्षण अर्थात् तपस्या द्वारा अपने कर्मबंधनों को अन्त कर देते हैं और जो ( असमनाः ) अन्यों से असाधारण चित्त और ज्ञान वाले होते हैं, जो ( अजिरासः ) निरन्तर प्रयत्नशील और बाधक कारणों और विक्षेपक मलों को उखाड़ फेंकने में यत्नशील, ( जुवः ) स्वयं तीव्र वेग वाले हों, ( रघुस्यदः ) सन्मार्गों में वेग से जाने वाले, (वातजूताः) प्राणों को प्रेरित करने वाले अथवा ज्ञानवान् पुरुषों द्वारा प्रेरित होते हैं। और ( आशवः ) उत्तम शत्रु के गुणों में ही व्याप्त या रचे मिचे हों, उसी के चिन्तन में संलग्न रहें वे ( उप युज्यन्ते ) उपासना द्वारा समाहित चित्त होकर योगाभ्यास करने में तत्पर होते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा औचथ्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ५, ८ जगती । २, ७, ११ विराड्जगती । ३, ४, ९ निचृज्जगती च । ६ भुरिक् त्रिष्टुप् । १०, १२ निचृत् त्रिष्टुप् पङ्क्तिः ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे कृषक शेत नांगरून बीज पेरतात व धान्य काढतात तसे मुमुक्षु पुरुषाने दम इत्यादी नियमांनी इंद्रिये नियंत्रित करून शम अर्थात् शांत भावाने मनाला शांत करून आपल्या आत्म्याला पवित्र करून ब्रह्मवेत्त्या जनांची सेवा करावी. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    All lovers of liberation, dynamic pioneers, explorers of the unknown paths of the world, smartest, diverse minded, fast and wind-inspired, shooting to the goal at the speed of light join on the yajna vedi with the man of thought for the man of self-esteem and honour.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of good food for farmers are given.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The farmers taking nourishing food are active. They do farming with plough and other implements and are men of good character and conduct. Obviously they differ from each other in ideas and attitudes and quickness in action. The Yogis should help persons who desire the welfare of all human beings and are learned and thoughtful.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The farmers get their crops after ploughing their fields well, having sown the seeds and made irrigation arrangements etc. Likewise, those who are seeking the final emancipation should go at the feet of Brahma-Jnanis (spiritual experts) by restraining their senses through the exercise of self-control.

    Foot Notes

    (रघुद्रुवः) ये रघूनि आस्वादनीयानि अन्नानि द्रवन्ति ते = Who take nourishing and tasty food. (अजिरासः ) प्राप्तशीला: = Possessing good character and conduct. (रघुस्यदः ) ये रघुषु स्यन्दन्ते = Treading upon the path of righteousness.

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