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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 128/ मन्त्र 2
    ऋषिः - विहव्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मम॑ दे॒वा वि॑ह॒वे स॑न्तु॒ सर्व॒ इन्द्र॑वन्तो म॒रुतो॒ विष्णु॑र॒ग्निः । ममा॒न्तरि॑क्षमु॒रुलो॑कमस्तु॒ मह्यं॒ वात॑: पवतां॒ कामे॑ अ॒स्मिन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मम॑ । दे॒वाः । वि॒ऽह॒वे । स॒न्तु॒ । सर्वे॑ । इन्द्र॑ऽवन्तः । म॒रुतः॑ । विष्णुः॑ । अ॒ग्निः । मम॑ । अ॒न्तरि॑क्षम् । उ॒रुऽलो॑कम् । अ॒स्तु॒ । मह्य॑म् । वातः॑ । प॒व॒ता॒म् । कामे॑ । अ॒स्मिन् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मम देवा विहवे सन्तु सर्व इन्द्रवन्तो मरुतो विष्णुरग्निः । ममान्तरिक्षमुरुलोकमस्तु मह्यं वात: पवतां कामे अस्मिन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मम । देवाः । विऽहवे । सन्तु । सर्वे । इन्द्रऽवन्तः । मरुतः । विष्णुः । अग्निः । मम । अन्तरिक्षम् । उरुऽलोकम् । अस्तु । मह्यम् । वातः । पवताम् । कामे । अस्मिन् ॥ १०.१२८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 128; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विहवे) विविध आह्वानप्रसङ्ग में-संग्राम में या यज्ञ में (सर्वे देवाः) सब युद्ध की कामना करते हुए सैनिक या विद्वान् (मम सन्तु) मेरे सहायक हों (इन्द्रवन्तः-मरुतः) विद्युत्वाले शस्त्रधारी सैनिक या-यजमान के साथ ऋत्विज (विष्णुः-अग्निः) व्यापक वायु या वायव्यास्त्रवान् तथा आग्नेयास्त्रवान् (मम-उरु-लोकम्) मेरा बहुत दर्शनीय (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष के समान राष्ट्र या यज्ञस्थान (अस्तु) होवे (अस्मिन् कामे) इस कमनीय राष्ट्र में या कामेष्टियज्ञ में (मह्यम्) मेरे लिए (वातः) वायु (पवताम्) बहे-चले ॥२॥

    भावार्थ

    राष्ट्र के अन्दर भाँति-भाँति के शस्त्रधारी संग्राम में विजय पानेवाले होने चाहिये तथा राष्ट्र भी सुखों से पूर्ण दर्शनीय अच्छे वातावरणवाला होना चाहिये एवं ऋत्विक् विद्वान् अनेक विद्याओं के जाननेवाले, बहुत दर्शनीय यज्ञ को रचानेवाले, यज्ञस्थान सुगन्धवायु से परिपूर्ण होना चाहिये ॥२॥

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    विषय

    'उरुलोक अन्तरिक्ष '

    पदार्थ

    [१] (मम विहवे) = मेरी पुकार के होने पर (सर्वे देवाः सन्तु) = सब देव मेरे हों। आराधना को करता हुआ सब देवों को मैं अपने में प्रतिष्ठित कर पाऊँ । कौन देव ? इ(न्द्रवन्तः) = इन्द्रवाले । 'इन्द्र' जिनका अध्यक्ष है, जिनमें इन्द्र की ही शक्ति काम कर रही है, वे सब देव मुझे प्राप्त हों । (मरुतः) = प्राण मुझे प्राप्त हों। (विष्णुः) = [विष् व्याप्तौ ] व्यापकता - उदारता - विशालता की देवता मुझे प्राप्त हो । (अग्निः) = मेरे अन्दर आगे बढ़ने की भावना हो, 'अग्रेणीत्व' हो । मैं प्राणशक्ति सम्पन्न बनूँ, उदार बनूँ, अग्रगति की भावनावाला बनूँ । [२] (मम) = मेरा (अन्तरिक्षम्) = हृदयान्तरिक्ष (उरुलोकम्) = विस्तृत प्रकाशवाला व बहुत जगहवाला हो। मेरा हृदय अन्धकार से रहित हो और उसमें सभी के लिए स्थान हो । (अस्मिन् कामे) = इस हृदय के (उरुलोकत्व) = प्रकाशमय व विशाल होने की कामना में (वातः मह्यं पवताम्) = वायु मेरे लिए अनुकूल होकर बहे । सारा वातावरण ऐसा हो कि मैं अपने हृदय को विशाल बना पाऊँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मेरा जीवन प्रभु के स्मरण के साथ प्राण-शक्ति-सम्पन्न, विशाल हृदयतावाला प्रगतिशील हो। मैं कभी अनुदार व अन्धकारमय जीवनवाला न हो जाऊँ । बस, यही मेरी आराधना हो। प्रभु सारे वातावरण को मेरी इस कामना के अनुकूल बनाएँ ।

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    विषय

    इन्द्र वा स्वामी वा नायक पति का अधीनों के प्रति आदेश।

    भावार्थ

    (मम वि-हवे) मेरे संग्राम और यज्ञ में (सर्वे देवाः) समस्त देव, विद्वान् विजयाभिलाषी जन (मरुतः) वायुओं के तुल्य वेग वाले, वा शत्रुओं को मारने वाले तथा (इन्द्र-वन्तः) इन्द्र सेनापति को प्रमुख मानने वाले (सन्तु) हों। और वह (अग्निः विष्णुः) तेजस्वी व्यापक पुरुष सामर्थ्यवान् हो। (मम अन्तरिक्षम्) मेरा अन्तरिक्ष के समान (ऊरु लोकम् अस्तु) विशाल लोक हो। अथवा मेरा अन्तरिक्ष, अन्तःकरण अधिक प्रकाशवान् हो। (मह्यं) मेरे (अस्मिन् कामे) इस कामना योग्य कार्य में (वातः पवताम्) वायुवत् प्रबल वीर आगे बढ़े और कण्टक शोधन करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्विहव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:—१, ३ विराट् त्रिष्टुप्। २, ५, ८ त्रिष्टुप्। ३, ६ निचृत् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विहवे) विविधाह्वानप्रसङ्गे सङ्ग्रामे यज्ञे वा (सर्वे देवाः-मम सन्तु) सर्वे युद्धकामाः सैनिकाः, विद्वांसो वा मम सहायकाः भवन्तु (इन्द्रवन्तः-मरुतः) शत्रुभेदकेन विद्युत्सदृशेन सेनानायकेन सह सैनिकजनाः यजमानेन सह वा खल्वृत्विजः “मरुत ऋत्विग्नाम” [निघ० ३।१८] (विष्णुः-अग्निः) व्यापको वायव्यास्त्रवान् अग्निराग्नेयास्त्रवान् (मम-उरुलोकम्-अन्तरिक्षम्) मम बहु दर्शनीयमन्तरिक्षमिव राष्ट्रम्, यज्ञस्थानं वा (अस्तु) भवतु (अस्मिन् कामे) अस्मिन् कमनीये राष्ट्रे यद्वा कामयज्ञे (मह्यं वातः पवताम्) विस्तृतो वायुश्चलतु ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    In the battle of life when the clarion call is given, let all the Devas, divinities of nature and nobilities of humanity be for me. Let the Maruts, Vishnu and Agni, all with Indra, stormy troops, all pervasive people power, and the leading lights of humanity, all inspired with passion and energy, all wielding weapons of fire, wind and electric power, be with me. Let the sky and space be the vast world for me. And let the winds blow for me in this beautiful world for the fulfilment of this yajnic ambition for personal and collective expansion.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राष्ट्रात वेगवेगळे शस्त्रधारी युद्धात विजय प्राप्त करणारे असावेत. व राष्ट्रही सुखाने पूर्ण दर्शनीय चांगल्या वातावरणातले असले पाहिजे व ऋत्विक विद्वान अनेक विद्या जाणणारे, अत्यंत दर्शनीय यज्ञ करणारे असावेत. यज्ञस्थानही सुगंधित वायूने परिपूर्ण झाले पाहिजे. ॥२॥

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