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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 128/ मन्त्र 7
    ऋषिः - विहव्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    धा॒ता धा॑तॄ॒णां भुव॑नस्य॒ यस्पति॑र्दे॒वं त्रा॒तार॑मभिमातिषा॒हम् । इ॒मं य॒ज्ञम॒श्विनो॒भा बृह॒स्पति॑र्दे॒वाः पा॑न्तु॒ यज॑मानं न्य॒र्थात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । धा॒तॄ॒णाम् । भुव॑नस्य । यः । पतिः॑ । दे॒वम् । त्रा॒तार॑म् । अ॒भि॒मा॒ति॒ऽस॒हम् । इ॒मम् । य॒ज्ञम् । अ॒श्विना॑ । उ॒भा । बृह॒स्पतिः॑ । दे॒वाः । पा॒न्तु॒ । यज॑मानम् । नि॒ऽअ॒र्थात् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता धातॄणां भुवनस्य यस्पतिर्देवं त्रातारमभिमातिषाहम् । इमं यज्ञमश्विनोभा बृहस्पतिर्देवाः पान्तु यजमानं न्यर्थात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । धातॄणाम् । भुवनस्य । यः । पतिः । देवम् । त्रातारम् । अभिमातिऽसहम् । इमम् । यज्ञम् । अश्विना । उभा । बृहस्पतिः । देवाः । पान्तु । यजमानम् । निऽअर्थात् ॥ १०.१२८.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 128; मन्त्र » 7
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः) जो (धातॄणाम्) पृथिवी सूर्यादि धारकों का भी (धाता) धारक-धारण करनेवाला है (भुवनस्य पतिः) जगत् का स्वामी है (त्रातारं देवम्) उस त्राण करनेवाले देव (अभिमातिषाहम्) अभिमानियों पर अधिकार करनेवाले परमात्मा की स्तुति करता हूँ (उभा-अश्विना) दोनों दिन रात या अध्यापक और उपदेशक (बृहस्पतिः) सूर्य या विद्यासूर्य-आचार्य (देवाः) ये सब देव (यज्ञं यजमानम्) यज्ञ और यजमान की (न्यर्थात्) पाप से (पान्तु) रक्षा करें ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा पृथिवी सूर्य आदि धारक पिण्डों का भी धारण करनेवाला है, वह दुःखों से त्राण करनेवाला और दुःखद अभिमानियों को दबानेवाला है, उसके रचे दिन, रात, सूर्य और अन्य देव या अध्यापक, उपदेशक या आचार्य ये भी रक्षा करनेवाले हैं ॥७॥

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    विषय

    प्रभु-स्तवन से 'हीनता का विनाश'

    पदार्थ

    [१] मैं उसका स्तवन करता हूँ जो कि (धातॄणां धाता) = धाताओं का भी धाता है, धारकों का भी धारक है । (यः भुवनस्य पतिः) = जो सारे ब्रह्माण्ड का रक्षक है। (देवम्) = उस प्रकाशमय प्रभु को, (त्रातारम्) = जो मेरा त्राण व रक्षण करनेवाले हैं, (अभिमातिषाहम्) = जो मेरे अभिमान आदि शत्रुओं को कुचलनेवाले हैं, उन प्रभु का मैं स्तवन करता हूँ । [२] उस प्रभु की कृपा से (इमं यज्ञम्) = मेरे इस जीवन यज्ञ को (उभा अश्विना) = दोनों प्राणापान, (बृहस्पतिः) = ज्ञानियों के भी ज्ञानी प्रभु स्वयं तथा (देवाः) = सब विद्वान् व सूर्यादि देव पान्तु रक्षित करें। इनकी कृपा से मेरा जीवनयज्ञ ठीक प्रकार से चले। ये सब (यजमानम्) = यज्ञशील पुरुषों को (न्यर्थात्) = निकृष्ट अर्थों से पाप से अथवा निरुद्देश्यता से बचाएँ । यह यज्ञशील पुरुष निकृष्ट बातों की ओर न झुके, पापों में प्रवृत्त न हो और इसका जीवन सोद्देश्य हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारे रक्षक हों। हमारा जीवनयज्ञ सुन्दरता से चले। हमारा जीवन निरुद्देश्य न हो ।

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    विषय

    प्रभु से प्रार्थना।

    भावार्थ

    (यः भुवनस्य पतिः) जो इस महान् विश्व का पालक, स्वामी है, और जो (धातॄणां धाता) सब पालकों का, जौर जगत्-स्रष्टाओं का स्रष्टा है, उस (देवं) सर्वप्रकाशक, सर्वसुखदाता, (त्रातारं) सर्वपालक, (अभि-माति-साहं) सब अभिमानों वाले शत्रुओं वा अभिमान आदि के नाशक प्रभु की मैं स्तुति करता हूँ, उससे प्रार्थना करता हूँ। (उभा अश्विना) दोनों सूर्य चन्द्र, दिन रात, और (बृहस्पतिः) बड़े लोकों का स्वामी, (इमं यज्ञं) इस यज्ञ को और (इमं यजमानम्) इस यजमान को (नि-अर्थात्) निकृष्ट पदार्थ पाप आदि अनर्थ से (पान्तु) बचावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्विहव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:—१, ३ विराट् त्रिष्टुप्। २, ५, ८ त्रिष्टुप्। ३, ६ निचृत् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः धातॄणां धाता) यः पृथिवी-सूर्यादीनां धारकाणामपि धारकः (भुवनस्य पतिः) जगतः-स्वामी (देवं त्रातारम्-अभिमातिषाहम्) तं देवं रक्षकं तथाऽभिमानिनोऽभिभवितारं परमात्मानं स्तौमि-इति शेषः (उभा-अश्विना बृहस्पतिः-देवाः-यज्ञं यजमानं न्यर्थात्-पान्तु) उभावश्विनौ परमात्मना रचितावहोरात्रौ सूर्यश्च यद्वा-अध्यापकोपदेशकौ, विद्या सूर्यः-इत्येते देवाः पापात् यज्ञं यजमानं च रक्षन्तु ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The one lord sustainer of all sustainers of the world such as sun and earth, the one that is the supreme lord creator, ruler and protector of the universe, the one that subdues the proudest of the enemies of life and humanity, the one that saves and gives fulfilment, that One I worship and adore. May the Ashvins, twin divine complementarities of nature and humanity, Brhaspati, lord of Infinity and the sage dedicated to Infinity, and the infinite divine voice and all other divinities of the world, we pray, promote this yajna and save this yajamana from sin and evil.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा पृथ्वी, सूर्य इत्यादी धारक पिंडांनाही धारण करणारा आहे. तो दु:खाचा त्राण नाहीसा करणारा आहे व दु:खद अभिमानी लोकांचे दमन करणारा आहे. त्याने निर्माण केलेले दिवस, रात्र, सूर्य व अन्य देव किंवा अध्यापक, उपदेशक किंवा आचार्य हेही रक्षण करणारे आहेत. ॥७॥

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