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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 128 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 128/ मन्त्र 6
    ऋषिः - विहव्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अग्ने॑ म॒न्युं प्र॑तिनु॒दन्परे॑षा॒मद॑ब्धो गो॒पाः परि॑ पाहि न॒स्त्वम् । प्र॒त्यञ्चो॑ यन्तु नि॒गुत॒: पुन॒स्ते॒३॒॑ऽमैषां॑ चि॒त्तं प्र॒बुधां॒ वि ने॑शत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । म॒न्युम् । प्र॒ति॒ऽनु॒दन् । परे॑षाम् । अद॑ब्धः । गो॒पाः । परि॑ । पा॒हि॒ । नः॒ । त्वम् । प्र॒त्यञ्चः॑ । य॒न्तु॒ । नि॒ऽगुतः॑ । पुन॒रिति॑ । ते॒ । अ॒मा । ए॒षा॒म् । चि॒त्तम् । प्र॒ऽबुधा॑म् । ने॒श॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने मन्युं प्रतिनुदन्परेषामदब्धो गोपाः परि पाहि नस्त्वम् । प्रत्यञ्चो यन्तु निगुत: पुनस्ते३ऽमैषां चित्तं प्रबुधां वि नेशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । मन्युम् । प्रतिऽनुदन् । परेषाम् । अदब्धः । गोपाः । परि । पाहि । नः । त्वम् । प्रत्यञ्चः । यन्तु । निऽगुतः । पुनरिति । ते । अमा । एषाम् । चित्तम् । प्रऽबुधाम् । नेशत् ॥ १०.१२८.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 128; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणायक ! (परेषाम्) परजनों-शत्रुओं के (मन्युम्) क्रोध को तेज को (प्रतिनुदन्) प्रतिहत करता हुआ (अदब्धः) स्वयं अहिंसित (गोपाः) रक्षक (त्वम्) तू (नः) हमारी (परि पाहि) सब ओर से रक्षा कर (ते पुनः) वे पुनः (निगुतः) भय से मलविसर्जन करते हुए (प्रत्यञ्चः) उलटे मुख-पछाड़ खाते हुए (यन्तु) चले जावें (एषां प्रबुधाम्) इन प्रबुद्धों-चतुरों के (चित्तम्) चित्त को (अमा वि नेशत्) एक साथ नष्ट कर दे ॥६॥

    भावार्थ

    सेनानायक शत्रुओं के क्रोध व तेज को नष्ट करता हुआ स्वयं अहिंसित हुआ और अपनों की रक्षा करता हुआ शत्रुओं पर ऐसा प्रहार करे कि वे मलविसर्जन करते हुए भय से उल्टे मुँह भाग जाएँ और जो प्रमुख बुद्धिमान् हैं, उनके चित्त को नष्ट कर दें ॥६॥

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    विषय

    शत्रुरहित्य

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (परेषाम्) = शत्रुओं के (मन्युम्) = क्रोध को (प्रतिनुदन्) = वापिस धकेलते हुए (त्वम्) = आप (नः) = हमें (पाहि) = सुरक्षित करिये। आप सदा (अदब्धः) = अहिंसित हैं, (गोपाः) = रक्षक हैं। आप से रक्षित हुए हुए हम शत्रुओं के क्रोध के शिकार न हों। शत्रु हमारे पर प्रबल न हो सकें। [२] (ते) = वे सब शत्रु (निगुतः) = पीड़ा के कारण अव्यक्त शब्द करते हुए (प्रत्यञ्चः) = प्रतिनिवृत्त होते हुए (पुन: यन्तु) = फिर लौट जाएँ । राष्ट्र में राजा भी इस प्रकार रक्षण व्यवस्था करे कि शत्रु पीड़ित होकर वापिस ही लौट जाए। [३] (प्रबुधाम्) = जागनेवाले (एषाम्) = इन शत्रुओं का (चित्तम्) = चित्त (अमा) = साथ-साथ ही (विनेशत्) = नष्ट हो जाए। ये शत्रु जागें और जागते ही इनका चित्त काम न करे, इनका चित्त विनष्ट हो जाए। इस प्रकार ये हमें हानि न पहुँचा पाएँ। अथवा जागने पर इनका शत्रुत्व की भावनावाला चित्त विनष्ट हो जाए। इनका हृदय हमारे प्रति शत्रुतावाला रहे ही नहीं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम शत्रुओं के ही क्रोध पात्र न होते रहें। हमारी सारी शक्ति उनके साथ युद्धों में ही न लगी रहे । हम शान्ति में आगे बढ़ सकें ।

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    विषय

    रक्षक के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्रगी ! नायक ! हे तेजस्विन् ! शत्रुओं को भस्म करने हारे ! तू (परेषाम् मन्युम् प्रति नुदन्) दूसरे शत्रुओं के क्रोध और अभिमान को दूर करता हुआ, (अदब्धः गोपाः) स्वयं अहिंसित रक्षक होकर (त्वं नः परि पाहि) तू हमारी रक्षा किया कर। (ते पुनः निगुतः) वे फिर नित्य, अव्यक्त, अप्रकट बातें करने वाले, उपजापक लोग (प्रत्यञ्चः यन्तु) पराङ्मुख होकर जावें। वा वे गिड़गिड़ाते हुए हमारे प्रत्यक्ष हों। (एषां प्र-बुधां चितम्) इन शत्रुओं, वा उत्तम ज्ञान वालों का चित्त (अमा वि नेशत्) एक साथ नष्ट हो जावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्विहव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:—१, ३ विराट् त्रिष्टुप्। २, ५, ८ त्रिष्टुप्। ३, ६ निचृत् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्नि) हे अग्रणायक ! (परेषां मन्युं प्रतिनुदन्) परजनानां शत्रूणां क्रोधं तेजो वा प्रतिहतं कुर्वन् (अदब्धः-गोपाः-त्वं नः परि पाहि) अहिंसितो रक्षकस्त्वमस्मान्परितो रक्ष (ते पुनः-निगुतः प्रत्यञ्चः-यन्तु) ते पुनर्भयान्मलोत्सर्जनं कुर्वन्तः “गु मलोत्सर्जने” [तुदादि०] ततः क्विप् प्रत्यङ्मुखाः सन्तो गच्छन्तु (एषां प्रबुधां चित्तम्-अमा वि नेशत्) एषां प्रबुध्यमानानां चित्तं सह विनश्येत् ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Agni, sovereign ruling lord of light and fire, ever awake and protective, warding off the anger and attack of foreign and negative powers, defend, protect and promote us without relent. Let our enemies withdraw and go back, repulsed, frustrated and routed. Howsoever clever, intelligent tacticians they think they are, destroy their mind, morale and intelligence altogether.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सेनानायकाने शत्रूचा क्रोध व तेज नष्ट करत स्वत: अहिंसक बनून आपल्या लोकांचे रक्षण करत शत्रूंवर असा प्रहार करावा, की त्यांनी मलविसर्जन करत भयाने विरुद्ध तोंड करून पळून जावे व जे त्यात प्रमुख बुद्धिमान असतात त्यांचे चित्त नष्ट करावे. ॥६॥

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